‘पलायन के पीछे’ (संपादकीय, 11 फरवरी) पढ़ा। विगत बारह वर्षों में सोलह लाख से अधिक प्रतिभा पलायन के आंकड़े निस्संदेह यह सोचने को विवश करते हैं कि जब हम दुनिया की बेहतरीन अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में अच्छे पायदान पर अपने को पा रहे हैं तो आखिर लुभावने रोजी-रोजगार और व्यापार के लिए देश का त्याग क्यों किया जा रहा है।
यह आकलन सही है कि वे अपने देश में समुचित संभावनाओं की उपलब्धता से निराश होकर ही विवशता में दूसरे देश का रुख कर रहे हैं। यह कृत्य किसी भी देश के लिए नकारात्मक प्रभाव का संदेश है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के अनेक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने अपने देश में व्याप्त अस्थिरता के कारण अमेरिका की ओर रुख किया था।
1966 में जाने-माने आणविक जीव विज्ञानी डाक्टर हरगोविंद खुराना को जब अपने देश में समुचित सम्मानजनक दायित्व नहीं मिला तो वे भी परदेस चले गए। इससे अपने देश को उनके ज्ञान के लाभ से वंचित होना पड़ा था और हम सब को ‘ब्रेन ड्रेन’ यानी प्रतिभा पलायन जैसे नूतन शब्दों के अर्थ से परिचित होने की घड़ी आई थी।
यह सही कहा गया है कि निवेश और आय में अनिश्चितता के कारण व्यापार जगत का देश से पलायन होना मुख्य कारण है, जबकि अच्छे रोजगार की कमी, उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों की अपर्याप्तता सह अनुसंधान और लैब का अभाव, कम वेतन, करों में असमानता और असुरक्षा की स्थिति भी युवा पलायन के लिए उत्तरदायी माना जाना चाहिए।
हालांकि यह भी लग रहा है कि कोरोना कहर और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे संसार में आई आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका और अन्य कुछ विकासशील देशों ने नौकरीपेशा लोगों की छंटनी की है, जिसके कारण भारत के अनगिनत युवा विदेश से भारत लौटकर यहां नियोजन के लिए संघर्षरत हैं। इसके बावजूद पलायन दर में वृद्धि देश के लिए अत्यंत चिंताजनक है। खासतौर पर इसलिए कि पहले देश से बाहर जाना प्रतिभा पलायन के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब अन्य कारणों से भी लोग विदेश में बसना चुनने लगे हैं।
उपाय यही है कि भारत सरकार इस विषय को अति गंभीरता से लेते हुए देश में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में आधुनिक तकनीक विधाओं को समाहित कर वृद्धि करे। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तरों से संबद्ध करे, निजी नौकरियों में स्थिरता और कौशल के अनुरूप वेतन को स्थिरता और अनुसंधान एवं प्रशिक्षण सहित उच्च कोटि की प्रयोगशाला की स्थापना भी करे।
इसी प्रकार व्यापार जगत में पलायन को रोकने के लिए देश में औद्योगीकरण में तेजी, विभिन्न महंगे करों में राहत, भारतीय बाजार को अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ना और इस क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं को विकसित करना मुख्य है। पलायन परिधि में चिकित्सक, वैज्ञानिक तथा इंजीनियर की संख्या अत्यधिक है, जिन्हें देश में उनकी योग्यता के अनुसार मान-सम्मान के साथ समुचित जिम्मेवारी दी जाए तो राष्ट्रीय हित में होगा।
अशोक कुमार, पटना, बिहार
सेहत के लिए
शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्त्व रहते हैं। शाकाहारी भोजन को विदेशों में पसंद किया जाने लगा है। बीज, वनस्पतियों से बनाए गए आहार को शाकाहार कहा जाता है। इसका उपयोग हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है।
भोजन तत्त्व की हमारे शरीर को आवश्यकता होती है, जैसे प्रोटीन, वसा, ऊर्जा (कैलोरी) चाहिए, वह शाकाहारी भोजन से पूर्ण हो जाती है। प्राचीन समय से ही जीवन शैली में शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य का प्रतीक माना गया है। दूसरी ओर, मांसाहार का विज्ञापन टीवी विज्ञापन में बड़े जोर-शोर से दिखाया जाता है, वही सोशल मीडिया पर मांसाहार के नए नए खाने की विधियां बताई जाती हैं।
आजकल यह भी कहा जाता है कि व्यंजनों का नामकरण भ्रमित हुआ जा रहा है। जैसे कबाब का अर्थ होता है- भूना हुआ मांस। शादी-विवाह और अन्य कार्यक्रमों में बनाए गए व्यंजनों के नाम पनीर कबाब, हाट कबाब, वेज बिरयानी आदि रखे जाने लगे, ताकि कबाब शब्द जबान पर चढ़ जाए और वे भविष्य में कबाब को मांस न समझें। भ्रमित और अपभ्रंश करने वाले शब्दों को प्रयोग करने पर रोक लगे। कभी-कभी मांसाहार भोजन में सदैव एक भय निर्मित होता है कि कहीं पशु-पक्षी बीमार या विषाणु ग्रस्त तो नहीं है।
दरअसल, अक्सर नए-नए विषाणु बाहरी देशों से या पशु-पक्षियों के जरिए मनुष्य में रोगों को जन्म देते आए है। यही वजह है कि विकसित देशों में भी शाकाहारी भोजन का अनुसरण करने की सोच विकसित होने लगी है। साहार की तुलना में शाकाहार सस्ता और सुलभ होता है। शकाहारी भोजन शीघ्र पच कर बीमारियों को आने से रोकता है और इससे शरीर में प्रतिरोध क्षमता बढ़कर जीवन में स्वास्थ्य का लाभ होता है।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, धार, मप्र
विश्व बंधुत्व
आज न केवल भारत, बल्कि देश के कई संगठन हों या आम मध्यमवर्गीय भारतीय नागरिक, तुर्की और सीरिया में आए भयानक भूकंप पीड़ितों के लिए जरूरत का सामान अपनी ओर से वहां भिजवा रहे हैं, क्योंकि हर भारतीय को विश्वकल्याण के लिए विश्व के दुखी नागरिकों की हमेशा चिंता रहती है। हमारे देश का हर नागरिक आमतौर पर हर किसी के दुख-दर्द की चिंता करना अपना फर्ज और कर्तव्य समझता है।
कोरोनाकाल में पूरे देश ने दुख-तकलीफें देखी थीं। हिंदू, मुसलिम, सिख, इसाई सब राष्ट्रीयता का धर्म स्वीकार करते हैं, क्योंकि इसने उनमें विश्व बंधुत्व की भावना भी भरी है। आज विश्व कल्याण की भावना ही लोगों को कहीं भी कोई परेशानी या दुख की तकलीफ की घटना दिखाई देती है तो वह उनके दर्द को दूर करने की बात सोचने लगता है। दरअसल, हमारा देश सारे विश्व को अपना एक परिवार मानता है। इसलिए विश्व बंधुत्व के लिए कुर्बानी अपना फर्ज समझता है।
मनमोहन राजावत राज, शाजापुर, मप्र