गुजरात के सूरत स्थित एक प्रमुख जलपोत निर्माण कंपनी की बैंक धोखाधड़ी सुर्खियों में है। कंपनी ने बैंकों से 22,842 करोड़ की धोखाधड़ी की है। इसे बैंक जगत की अब तक की सबसे बड़ी धोखाधड़ी माना जा रहा है। एवीजी शिपयार्ड लिमिटेड ने बैंको से ऋण के रूप में प्राप्त पैसे को सिंगापुर स्थांतरित कर दिया। बैंकों से धोखाधड़ी का यह कोई पहला प्रकरण नहीं है। इससे पहले भी विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी बैंकों से लगभग 22,586.83 करोड़ की धोखाधड़ी की और आज तक इन पत्यार्पण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है।
एक आम आदमी को अगर बैंक से मकान बनाने या छोटा-मोटा धंधा शुरू करने किए ऋण लेना हो या बच्चे की शिक्षा के लिए ऋण लेना हो, तो बैंक वाले उसको नाकों चने चबवा देते हैं। बैंक जब इतने छोटे छोटे ऋण देने के लिए कागजों की इतनी जांच करते हैं और अन्य एजेंसियों से करवाते हैं, तब फिर इतने बड़े-बड़े घोटाले कैसे हो जाते हैं, यह बात समझ से परे है। पर एक बात तय है कि कोई भी अकेला व्यक्ति या कंपनी बैंकों के साथ धोखाधड़ी के लिए जिम्मेवार नहीं होता, बल्कि बैंकों का स्वयं का तंत्र भी इसमें जुड़ा होता है, तभी इतने बड़े घोटाले किए जाते हैं और घोटालेबाज देश छोड़ कर विदेशों में शाही जीवन व्यतीत करते रहते हैं।
बैंकों से होने वाली धोखाधड़ी पर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक गंभीर क्यों नहीं हैं। क्यों एक के बाद एक बैंक घोटाले होते जा रहे हैं। सरकार को ऐसे घोटाले और धोखाधड़ी को रोकने के लिए कानून को और सख्त बनाने की आवश्यकता है, जिसमें ऐसे अपराधियों के लिए भी कठोर कारावास की सजा का प्रावधान रखा जाना चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक को बैंकों के उन भ्रष्ट कर्मचारियों पर लगाम कसने की जरूरत है, जो चंद रुपयों के लालच में आंख बंद करके कर्ज पर कर्ज देते जाते हैं और कर्ज कहां पर प्रयोग हुआ, कितना प्रयोग हुआ, लोन की कितनी रिकवरी हुई, पर कोई ध्यान नहीं देते। और फिर एक दिन पता लगता है की बैंक के साथ धोखाधड़ी हो गई। निश्चित ही इसे बैंक व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए। बैंक का शाब्दिक अर्थ ही विश्वास है और आज वह बैंक ही खतरे में है।
- राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा
चिकित्सक का काम- सभी आयु के लोगों के स्वस्थ्य जीवन और चिकित्सा देखभाल को प्रोत्साहित करने के लिए सतत विकास आवश्यक है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रति एक हजार की आबादी पर एक डाक्टर होना चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता तथा स्वास्थ्य में मानव संसाधन के लिए डब्ल्यूएचओ के मानकों को पूरा करने के लिए योजनाओं का प्रस्ताव किया गया है, ताकि स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक मानव संसाधन हो, यानी देश में अधिक डाक्टर और नर्स उपलब्ध हों। मगर भारत में प्रत्येक तेरह हजार नागरिकों पर केवल एक डाक्टर मौजूद है। जाहिर है, हमारे यहां डाक्टरों पर काम का बोझ अधिक है। कभी-कभी डाक्टरों को अठारह-बीस घंटे काम करना पड़ता है, जिसके कारण वे कई बीमारियों से भी ग्रसित हो जाते हैं।
हमारा देश अपनी सकल घरेलू आय का 1.2 प्रतिशत हिस्सा ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करता है, जो कि कई अल्पविकसित देशों, जैसे सूडान आदि, से भी कम है। भारतीय डाक्टर मरीजों की भीड़, अपर्याप्त कर्मचारियों, दवाओं और बुनियादी ढांचे की कमी जैसी चिंतनीय परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं। इन सभी के प्रभाव से उनकी कार्यकुशलता में कमी आती है और जीवन रक्षा के कार्य में वे अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान नहीं दे पाते। देश में एक ओर आधे से अधिक राज्यों में चिकित्सा सुरक्षा अधिनियम लागू है, पर इसके बावजूद समय-समय पर हिंसक घटनाएं सामने आती रहती हैं। डाक्टरों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के साथ ही डाक्टरों और मरीजों के बीच विश्वास की कमी भी धीरे-धीरे चिंता का विषय बनती जा रही है।- प्रत्यूष शर्मा, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश