कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2021 में होने वाली प्रस्तावित जनगणना समय से नहीं हो सकी है और अब इसे अगले साल यानी 2022 में कराने की बात चल रही है। सामान्य प्रक्रिया के पालन की स्थिति में मुख्य जनगणना के एक वर्ष पहले घरों की सूची तैयार की जाती है। उसके बाद सरकार द्वारा निर्धारित प्रपत्र में विभिन्न जानकारियों के साथ जनगणना की जाती है। आगे होने वाली जनगणना की प्रक्रिया की चर्चा प्रारंभ होने के साथ ही हमारे कुछ राजनीतिक नेताओं की बौद्धिक दुर्बलता भी सामने आ रही है और वे अगली जनगणना में जाति की भी गणना करने की मांग कर रहे हैं।
हमारे समाज को जातियों में बांट कर पहले ही काफी नुकसान उठाना पड़ा है और अब जबकि समय के साथ जातीय कट्टरता कुछ कम हो रही है, फिर से समाज को जातीय सरगर्मी की चर्चा में झोंकना बौद्धिक दुर्बलता की निशानी है। वास्तव में कुछ नेताओं द्वारा जातीय गणना की मांग करना, उनकी जाति-राजनीतिक स्वार्थ का प्रमाण है। जातीय जनगणना की मांग वही जातिवादी नेता कर रहे हैं जिनकी राजनीतिक दुकानदारी ही सिर्फ जातीय आधार पर ही चलती है। इसलिए जातीय गणना की मांग करने वाले नेताओं से आग्रह है कि वे कृपया अपनी सोच को जातीय संकीर्णता से मुक्त करें और सरकार से आग्रह है कि वह संकीर्ण जातीय सोच वाले लोगों की प्रतिगामी मांग पर ध्यान नहीं देते हुए सही ढंग से जनगणना कराना सुनिश्चित करे।
’राधा बिहारी ओझा, पटना</p>
शर्मसार हुआ लोकतंत्र
हाल में लोकसभा और राज्यसभा में जिस तरह की स्थितियां देखने को मिलीं उससे सदन की गरिमा गिरी है और लोकतंत्र शर्मसार हुआ है। जबरदस्त हंगामा, नारेबाजी, तख्तियां लहराने व कागज फाड़ने के साथ आसन पर चढ़ना और महिला मार्शल से हाथापाई और अमर्यादित आचरण जैसी घटनाओं के कारण सदन बाधित हुआ और बिना चर्चा के सत्ता पक्ष ने भी जरूरी विधेयक भी पास कर लिए।
लेकिन कोरोना महामारी, किसान आंदोलनम और अर्थव्यवस्था की हालत जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी। “हंगामे का सत्र” सम्पादकीय में उल्लेख है कि सरकार ने विपक्ष की नहीं सुनी और बहस के लिए तैयार नहीं हुई तो विपक्ष ने सदन के बजाय सड़क पर उतरना उचित समझा। मजबूत सरकार को तो अंतिम दिन तक चर्चा के लिए तैयार रहना चाहिए था, क्योंकि होना वही था जो सत्ता को पसंद हो, और वही हुआ भी। नियम, प्रक्रिया तथा मयार्दा के पालन के साथ सदन में चर्चा के कारण भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश में समय से पूर्व सदन का अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने तथा सदन में कदाचरण होने से सत्ता और विपक्ष को कोई हानि या परेशानी नहीं हुई, बल्कि कार्यों लंबित होने से जनता का नुकसान हुआ है।
’बीएल शर्मा”अकिंचन”, उज्जैन
नई खेल संस्कृति
टोक्यो ओलंपिक में भारत ने एक स्वर्ण, दो रजत पदक सहित कुल सात पदक जीत कर यह स्पष्ट कर दिया कि देश में नई खेल संस्कृति का उदय हो चुका है। ओलंपिक के इतिहास में यह भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। एथलेटिक्स में भारत को पहली बार स्वर्ण पदक मिला। ओलंपिक टीम के सभी खिलाड़ी बधाई के पात्र है, क्योंकि उन्होंने सीमित संसाधनों के बीच अपनी मेहनत और लगन के दम पर यह मुकाम हासिल किया है। हमारे देश में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं है, सिर्फ उन्हें उचित अवसर और मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया

