जी-20 की बैठक देश के लिए अत्यंत गौरव का पल है, पर यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हम दिल्लीवासी इसके लिए तैयार हैं? दिल्ली अपनी ही समस्याओं से बुरी तरह ग्रस्त है, पर दिल्ली के शासकों को यह दिखाई नहीं दे रही।
दिल्ली के अंदरूनी इलाकों, गलियों मोहल्लों की ओर नजर डालें तो दिखाई देते हैं कूड़े के ढेर, गंदगी ओर पानी से भारी नालियां, टूटी-फूटी गलियां, गड्ढों से भरी सड़कें ओर नाममात्र की सफाई व्यवस्था, जबकि जिस प्रकार इंदौर जैसे शहर में रात्रि को सड़कों की सफाई और धुलाई हो जाती है और सुबह सारा शहर साफ-सुथरा और चमकता दिखाई देता है, वैसी दिल्ली क्यों नहीं हो सकता?
यह एक विचारणीय प्रश्न है। दिल्ली के चुने हुए प्रतिनिधि ओर सभी पार्टियों के निगम पार्षदों को एकजुट होकर इस पर सोच-विचार करना होगा और खुद आगे आकर उदाहरण पेश करना चाहिए। आधी से ज्यादा दिल्ली अनधिकृत निर्माण, अवैध नर्सरियों और रेत बजरी वालों के कब्जे और गलियों-सड़कों पर अवैध विस्तार और यहां तक की सड़कों पर अवैध धार्मिक स्थलों के कब्जों से कराह रही है।
इसमें प्रशासन और पुलिस की निष्क्रियता साफ नजर आती है। दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल को अहंकार की लड़ाई को छोड़ कर एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए, क्योंकि दिल्ली के नागरिकों को बेहतर सुविधाएं और बेहतर कानून व्यवस्था बनाए रखना और जन सुविधाएं प्रदान करना दोनों की ही जिम्मेदारी है।
दिल्ली के नागरिकों की उम्र कम हो रही है और वे लगातार बीमारियों से ग्रस्त हों रहे हैं, क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण ने उनका रहना दुभर कर दिया है। लोग लगातार दिल्ली छोड़ दूसरे प्रदेशों में बस रहे हैं। दिल्ली की सड़कें सारा दिन भारी जाम के कारण हांफती रहती हैं। बरसात में पानी की निकासी न होना भी यहां जगह-जगह से जाम होना यह दर्शाता है कि दिल्ली प्रशासन और उसकी एजेंसियां पूरी तरह पंगु हो गई हैं। विभागीय योजना ओर जिम्मेदारी केवल कागजों तक सिमट कर रह गई है।
आरके शर्मा, रोहिणी, दिल्ली।
साइबर संजाल
जैसे-जैसे आनलाइन का दायरा बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे अपराध के नए-नए रास्ते भी सामने आ रहे हैं! साइबर अपराधियों ने अनेक फर्जी खाते बना कर कई तरीकों से लोगों को ठगना शुरू कर दिया है! मसलन रोजगार दिलाने, लाटरी या सस्ता सोना खरीदने के नाम पर वे लोगों की स्मार्टफोन पर गतिविधियों के आधार पर उनके लिए जाल बिछाते हैं और लोग उसमें फंस जाते हैं! देखा जाए तो इन सबमें मुख्य वजह हमारा लालच ही है।
हम एक-रुपए की दो अठन्नी के बजाय चार अठन्नी बनाना चाहते हैं! यह नहीं सोचते हैं कि जो हमको बिना वजह पुरस्कार भेंट और कुछ दिया जा रहा है, तो क्या देने वाला मूर्ख है? वह ऐसा क्यों कर रहा है? इन सब बातों को सोचने का वक्त न मिले, इसके लिए साइबर अपराधी किसी को दो मिनट के भीतर ही ओटीपी आदि भेजने का कहते हैं! कई बार बैंक वाले बनकर और कई विभागों का अफसर बनकर वे किसी से संपर्क साधते हैं! और उनकी कमजोरियों के अनुसार उन्हें आसानी से ठग ले जाते हैं!
हाल के दिनों में युवा लड़कियों के नाम से बने फर्जी खाते पर वाट्सऐप पर वीडियो फोन करके और उसे संपादित करके आपत्तिजनक वीडियो भेज कर पैसे की मांग करना आम बात हो गई है! ऐसे लोग किसी के मोबाइल को हैक करके उनके रिश्तेदार और परिजनों के फोन नंबर भी चुराकर उन्हें ऐसे वीडियो दिखाने का डर बताकर बड़ी ठगी कर लेते हैं! अगर आधुनिक सुविधाएं किसी को चाहिए तो इसके साथ-साथ उसे समझदार और सावधान भी रहना जरूरी है!
विभूति बुपक्या, खाचरोद, मप्र।
बाकी सब ठीक
हम नागरिकों के लिए कोई संकट नहीं है! गरीबी, भुखमरी, महंगाई, बेरोजगारी, समान अवसरों का न मिलना, शिक्षा-स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हमें परेशान तो करती हैं, लेकिन कोई बात नहीं, गुजर-बसर हो जाती है! संगठन या नेतृत्व के अभाव में हमलोग एकजुट न भी हो पा रहे हों, तो भी अपने-अपने स्तर पर जिंदगी की गाड़ी अपनी चाल चलती रहती है! हम हर हाल में खुश रह सकते हैं, अगर हमारी आपसी सद्भावनाएं बनी रहें।
हिंसा और नफरत की बातें सुनकर हम भयभीत हो जाते हैं और तब अपनी-अपनी प्रार्थनाओं का सहारा ले लेते हैं। हमें इस बात का अहसास तो होता है कि हमारे आसपास बहुत सारी मुश्किलें हैं, लेकिन बड़ी मुश्किल तब आती है, जब मुश्किल की बात न हो रही हो। जब सच्चाई को समझने वाले लोग कम या कमजोर पड़ जाएं या फिर झूठ के साथ खड़े हुए दिखाई दें, तो हम नागरिकों के लिए बस यही संकट है, बाकी सब ठीक है।
शोभना विज, पटियाला, पंजाब।
जीएसटी का हिसाब
‘राजस्व में सेंध’ (संपादकीय, 1 जुलाई) पढ़ा। जीएसटी लागू करने के पीछे शासन की मंशा यह थी कि व्यापारियों को कई तरह के कर नहीं देने पड़े। एक ही प्रकार का कर अदा कर वे अपना व्यापार सुविधा से करते रहें। लेकिन जीएसटी कार्य में सबसे पेचीदा पहलू है हर माह हिसाब रखना और जीएसटी का भुगतान करना। इसमें व्यापारियों को अपने कर सलाहकार की मदद भी लेनी पड़ती है। इसके लिए उसे हर महीने अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है और समय भी बहुत खराब होता है।
इसलिए व्यापारी जीएसटी से बचना चाहता है। जीएसटी की दरें भी अलग-अलग होने से हिसाब रखने में परेशानी होती है। जीएसटी सभी वस्तु पर समान अधिकतम दस फीसद होना चाहिए और हर माह भुगतान के स्थान पर तिमाही करना चाहिए। इसका हिसाब रखने का तरीका भी सरल करना चाहिए। स्थिति यह है की व्यापारी व्यापार करने के बजाय सिर्फ हिसाब-किताब रखने में ही लगा रहता है। इसलिए इसे सरल करना अति आवश्यक है, तभी व्यापारी ईमानदारी से पूर्ण जीएसटी का भुगतान करेंगे।
अरविंद जैन ‘बीमा’, फ्रीगंज, उज्जैन।