दुनिया में जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। विश्व के हर क्षेत्र में बाढ़, आंधी, तूफान, चक्रवात, सुनामी, भूकंप आदि कोई नई बात नहीं है, क्योंकि जिस तरह वैश्विक तापमान में वृद्धि, मौसम में बदलाव हो रहा है, उससे ऐसी घटनाएं लाजिमी हैं। जब 2015 में पेरिस समझौता हुआ और कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और वैश्विक तापमान में 1.5/2 डिग्री तक कमी करने का लक्ष्य रखा गया, तब लगा कि अब सभी देश इस पर कार्य करेंगे। मगर छह वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उन समझौतों पर अमल नहीं किया गया। अब एक बार फिर सीओपी 26 की बैठक में वही संकल्प दोहराए गए हैं।
वर्तमान में समस्त विश्व जिस गहरे संकट का सामना कर रहा है वह जलवायु परिवर्तन ही है। अगर अभी इसे रोकने के प्रयास नहीं किए गए तो आने वाला समय भयंकर तबाही का होगा, जिसके जिम्मेदार विश्व के समस्त देश होंगे। इसे रोकने के लिए राष्ट्र प्रमुखों को हर संभव प्रयास करना होगा, तभी हम विश्व के आने वाली पीढ़ियों को संकट से बचा पाएंगे।
’रिंकू जायसवाल, सिंगरौली (मप)
आजादी का दुरुपयोग
आज अभिव्यक्ति का दुरुपयोग एक बड़ी समस्या है। हाल ही में इसका एक उदाहरण देखने को मिला। पिछले दिनों जब भारतीय क्रिकेट टीम को शिकस्त मिली तो कई लोगों ने अपनी नाराजगी जताते हुए कुछ ऐसा लिखा और बोला जो सभ्य समाज के उसूलों के बिल्कुल विरुद्ध था। दरअसल, कुछ लोगों ने सरेआम अलग-अलग माध्यमों से धर्म को खेल के बीच लाकर अपनी रूढ़िवादी मानसिकता का परिचय फिर दे दिया। एक तरफ जहां कुछ लोग टीम का हौसला बढ़ाते दिख रहे थे, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल नफरत के गोले दागने के लिए कर रहे थे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 नागरिकों को अभिव्यक्ति का हक प्रदान करता है। यानी व्यक्ति अपनी राय और रोष बिना डरे व्यक्त कर सकता है, लेकिन जब इसी ताकत का कुछ लोग दुरुपयोग करते हैं, तब यह दर्द के सिवाय कुछ नहीं देता। आज खेल को एक खेल की तरह न देख कर ऐसे नजरिए से देखा जा रहा है, जो सिर्फ दकियानूसी सोच और नफरत पर आधारित है। जब खेल हार-जीत के अधीन है, तो क्यों कुछ लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं? आगे फिर ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो इसके लिए सोच को समय के साथ बदलने की जरूरत है। यानी लोग खेल को खेल की तरह देखें और अपनी अभियक्ति का सकारात्मक उपयोग करें।
’निखिल रस्तोगी, अंबाला कैंट (हरियाणा)