सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2019 में भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम द्वारा चिह्नित किए गए साइबर हमलों की संख्या चार लाख से नीचे थी, लेकिन इस वर्ष जून तक ही 6,74,021 घटनाएं दर्ज की गई। साइबर सुरक्षित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार को एक मजबूत रणनीति बन बनानी होगी जो सरकारी प्रणालियों, नागरिकों और व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करे। यह न केवल नागरिकों को साइबर खतरों से बचाने में मदद करेगा, बल्कि अर्थव्यवस्था में निवेशकों का विश्वास भी बढ़ाएगा।
हाल ही में देश के महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में साइबर हमला हुआ। यह एजेंसियों द्वारा सुलझा भी नहीं था कि फिर साइबर हमलावरों ने सरकारी जलशक्ति मंत्रालय के ट्विटर अकाउंट को आंशिक रूप से हैक कर लिया। देश के सरकारी वेबसाइटों पर यह दूसरा साइबर हमला था।
साइबर अपराधों में बेतहाशा वृद्धि को देखते हुए उपभोक्ताओं को डिजिटल दुनिया में अधिक जागरूक रहना होगा। डिजिटल उपभोक्ताओं को यह समझने की जरूरत है कि हम एक बड़ी साइबर श्रृंखला से जुड़े हुए हैं। उनको अपने यंत्र, कंप्यूटर और लैपटाप को सुरक्षित बनाए रखने के लिए उचित फायरवाल, एंटीवायरस और सुरक्षा मानकों को अपनाना चाहिए। कोई जानकारी आनलाइन साझा करने के दौरान लापरवाही नहीं करनी चाहिए। किसी तीसरे पक्ष द्वारा दिए लिंक पर क्लिक नहीं करना चाहिए। देश को अधिक साइबर सुरक्षित बनाने के लिए हमें अपने स्तर पर सहयोग देने की आवश्यकता है।
दीपा अधिकारी, नैनीताल, उत्तराखंड</p>
अमानवीयता का खेल
आंकड़े बताते हैं कि कैसे कतर के जिस दिन से 2022 का फुटबाल विश्वकप की मेजबानी करने का घोषणा हुई, उसी समय से वहां प्रवासी मजदूरों के साथ घोर अत्यचार का दौर भी शुरू हो गया। मजदूरों को प्रताड़ित किया जाना, उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाना, उनका वेतन भुगतान समय पर नहीं किया जाना, पासपोर्ट जब्त कर लेने से लेकर बारह से लेकर अठारह घंटों तक काम कराना।
पुष्ट खबरों के अनुसार भारत, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के आंकड़ों से पता चला है कि 2011-2020 की अवधि में 5,927 प्रवासी श्रमिकों की मौत हो हुई। अलग से कतर में पाकिस्तान के दूतावास के आंकड़ों ने 2010 और 2020 के बीच 824 पाकिस्तानी श्रमिकों की मौतों की पुष्टि की है। कतर की हुकूमत इन मृतकों के परिवारजनों से सहानुभूति जताने के स्थान पर आज भी उनका उपहास उड़ा रही है।
इससे दुनिया भर के मानवाधिकार संगठों एवं कार्यकर्ताओं में रोष फैल गया है। क्या अब भी फीफा को यही लग रहा है कि कतर को मेजबानी देना एक सही फैसला था?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर