खोखले दंभ में चूर देश के मौजूदा हाकिम महीनों से किसानों के प्रति जिस उपेक्षापूर्ण रवैये पर अड़े हैं, वह बेहद दुखदायी है। इन लोगों ने लोकतंत्र को सत्तातंत्र बना कर रख दिया है। शायद वे यह दिखाना चाहते हैं कि एक मजबूत सरकार का कुछ नहीं बिगड़ सकता। वे जनता को जैसे चाहेंगे, हांकेंगे। ऐसा होता भी रहा है और ऐसा ही होता आ रहा है। पिछले कुछ सालों का लेखा-जोखा करें तो किस-किस को सत्ताधीशों की उपेक्षाओं का दंश नहीं झेलना पड़ा? यह सूची बहुत लंबी है। लेकिन जहां तक देश के अन्नदाता की अस्मिता का सवाल है, तो हुक्मरानों को चाहिए कि अपने अहंकार को ताक पर रख कर भीतर झांकें। महंगी थाली में परोसा भोजन देख कर ठंडे दिमाग से सोचें और खुद से सवाल करें। आज हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि आम नागरिक सरकार से सवाल करने का साहस तक नहीं जुटा पाता।
आज हम अपने किसानों को सड़कों पर जाड़े, आंधी-तूफान और देह को झुलसाती हुई गर्मी जैसी विकट स्थितियों में एक सख्त और इतना लंबा संघर्ष करते हुए देख रहे हैं। और दूसरी ओर उनके पवित्र आंदोलन को बदनाम करने के षड्यंत्र रचे जाते हैं, धमकियां दी जाती हैं। विडंबना यह है कि आज विपक्षी दल भी अपना मनोबल गंवा बैठे हैं। ऐसे नाजुक मौके पर विपक्षियों को यह भय क्यों सताने लगा कि किसानों के लिए आवाज बुलंद करने से किसान आंदोलन एक राजनीतिक आंदोलन हो जाएगा। मैं समझती हूं कि विपक्ष को सभी आशंकाओं से मुक्त होकर एक सुर में किसानों के पक्ष में खड़े हो जाना चाहिए। यह ठीक है कि आज ज्यादातर लोगों का समर्थन किसानों के साथ है। मेरा मानना है कि स्वतंत्र स्वर के रूप में जनता की आवाज किसानों की सबसे बड़ी ताकत होगी। जनता की आवाज बेदम नहीं होनी चाहिए।
’शोभना विज, पटियाला, पंजाब</p>
भय में बचपन
एक चिंताजनक खबर के मुताबिक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के डॉक्टरों की एक टीम ने भयावह रोना वायरस के संक्रमण से फैली कोविड महामारी से उत्पन्न भय, मानसिक अवसाद, बीमारी का डर, अपनों से बिछुड़ने का डर, अकेलेपन का डर, अपने मम्मी-पापा के बेरोजगार हो जाने का भय आदि गंभीर समस्याओं पर भारत सहित दुनिया के अन्य दस देशों के 22,996 बच्चों पर पड़ने वाले मानसिक तनाव पर एक शोध किया है। इस शोध के अनुसार कोरोना संबंधित समस्या से 22.5 फीसद बच्चे कोरोना रोग की भयावहता से डरे हुए मिले। 30.8 फीसद बच्चों में एकाग्रचित्तता की समस्या से गंभीर रूप से पीड़ित पाया गया। 34.5 फीसद बच्चे तनावग्रस्त मिले। 35.2 फीसद बच्चों को अनिद्रा जैसे रोग से ग्रसित पाया गया। 42.3 फीसद बच्चे अपने चिड़चिड़ेपन से परेशान थे। सबसे अधिक 79.4 फीसद बच्चे अपने मम्मी-पापा या परिजनों से दूर रहने की समस्या, जिसे अकेलापन या एकांतवास कहते हैं, से बहुत भयभीत थे।
एम्स के बालरोग विशेषज्ञ के अनुसार उक्त लक्षण से ग्रसित बच्चों को उनके हाल पर ज्यादा दिनों तक नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसे लक्षण दिखने पर इन बच्चों को जितनी जल्दी संभव हो, उतनी जल्दी किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाया जाना उनके वर्तमान और भविष्य के लिए तथा इस इस देश के भावी नागरिकों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही जरूरी है। साथ ही देश की स्वास्थ्य समितियों और अधिकारियों को इस देश के इतनी बड़ी संख्या में भयग्रस्त या मानसिक तनाव से ग्रस्त बच्चों के अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए तुरंत आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है।
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र