पांच राज्यों, जहां विधानसभा चुनाव इसी माह शुरू हो रहे हैं, उनमें एक अहम राज्य पंजाब है, जिसे यूपी की तुलना में, मीडियाकर्मी कम तबज्जो दे रहे हैं। शायद इसका कारण एक ही है, राष्ट्रीय संसद का मार्ग लखनऊ से होकर जाता है चंडीगढ़ से नहीं। फिर भी जबसे किसान आंदोलन शुरू हुआ तबसे यही लग रहा था, पंजाब बड़ी आसानी से कांग्रेस के पास ही रहेगा। मगर अब कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं रह गई है। पार्टी पर दबाव है कि वो छह फरवरी तक सीएम प्रत्याशी का नाम घोषित करे।

मगर उसके सामने दुविधा यह है कि उसके पास चन्नी का नाम होते हुए भी नवजोत सिंह सिद्धू के डर से घोषित नहीं कर पा रहा है। कांग्रेस अगर पंजाब चुनाव हारती है तो उसके लिए पार्टी आलाकमान जिम्मेदार होगा। क्योंकि उसने एक ऐसे अनुसाशनहीन और बड़बोले सिद्धू को पार्टी में बनाए रखा, जो अगर नहीं होता तो, अच्छा होता। कांग्रेस के लिए इस समय आगे खाई और पीछे कुआं वाली स्थति हो गई है। अगर वह सिद्धू का नाम लेती है तो पंजाब समेत बाकी राज्यों के दलित वर्ग का नाराजगी, उसके लिए बहुत महंगा पड़ने वाला है।

  • जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर

धरोहर की सुध

देश की सरकारें अपने ऐतिहासिक प्रतीक-चिह्नों को बनाए रखने के बजाय बदलाव और विकास के नाम पर अगर उनको एक के बाद एक नष्ट करती चली जाएं, तो इसे क्या कहेंगे? यह इस दौर का एक दुखद सत्य है और इसके पीछे सत्तापक्ष की मंशा भी साफ समझ में आती है, यानी पुराने को हटा-मिटा कर अपना एक अलग इतिहास गढ़ा जाए। अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए देश के असल इतिहास का विध्वंस किया जाना कहां तक उचित है? प्रामाणिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि भारत ने अपने इतिहास के कई दौर देखे हैं। कुछ लंबे दौर गुलामी के भी रहे, अच्छे थे या बुरे, पर आखिर वे हमारे इतिहास का एक हिस्सा हैं।

दरअसल, पांच-सात सालों से देश में पांच सितारा संस्कृति ने एक अलग तरह की दिशा पकड़ी है। नवीनीकरण के नाम पर बनी-बनाई प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों पर प्रहार किए जा रहे हैं, जबकि होना यह चाहिए कि थोड़े-बहुत क्षतिग्रस्त हिस्सों को उनका पुरानापन बरकरार रखते हुए समय-समय पर दुरुस्त करते रहने की प्रक्रिया चलती रहे। दुखद बात तो यह है कि जनसामान्य की आस्थाओं से जुड़े प्राचीन धर्मस्थल और राष्ट्रीय स्मारक भी इस चकाचौंध से छूट नहीं पाए। इतिहास के साथ ऐसी निर्मम छेड़छाड़ से अहं की तुष्टि के अतिरिक्त सरकारों को और क्या हासिल होता है, यह समझ से बाहर है।

  • शोभना विज, पटियाला