पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार के निर्णय के अनुसार अब पंजाब के पूर्व विधायकों को केवल एक कार्यकाल के लिए पचहत्तर हजार रुपए पेंशन दी जाएगी। पूर्व विधायकों के सभी कार्यकाल को आधार बना कर दी जाने वाली पेंशन को समाप्त कर दिया गया है। इससे पंजाब सरकार पर राजस्व का बोझ कम होगा और वह उस धन का उपयोग जन कल्याण के कार्यों पर कर पाएगी।

यह देखना भी महत्त्वपूर्ण होगा कि अन्य राज्य सरकारें इस दिशा में क्या कदम उठाती हैं। इस संदर्भ में जनता में एक रोष साफ दिखाई पड़ता है कि इस तरह की कई पेंशन हमारे जनप्रतिनिधि ले रहे हैं, जबकि सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बंद है। भारत की संसद को भी इसी तरह का कदम उठाना चाहिए और पूर्व सांसदों को केवल एक पेंशन उपलब्ध करा कर बाकी अन्य पेंशन बंद कर दी जाए। राज्य की कल्याणकारी अवधारणा को मजबूत कर जन कल्याणकारी योजनाएं उपलब्ध कराएं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली</p>

तुष्टीकरण की कोशिश

अपनी विशिष्ट संस्कृति, कला के विभिन्न क्षेत्रों में एक विशिष्ट पहचान रखने वाला, भद्रलोक के नाम से जाना जाने वाला पश्चिम बंगाल अब हिंसा, खंूरेजी, लूटमार और बमबाजी का पर्याय बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में देखते ही देखते वर्ग संघर्ष की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिसका परिणाम बमबाजी और अंतत: लाशों का ढेर होता है। पिछले विधानसभा चुनावों में तो हद हो गई।

विभिन्न समुदायों के बीच ऐसा वैमनस्य उत्पन्न हुआ, जिसका अंजाम दलित समुदाय को न केवल मार-काट, बलात्कार आगजनी के रूप में झेलना, बल्कि पड़ोसी राज्य असम में भाग कर शरण लेने को मजबूर होना पड़ा, जो अब भी भयवश लौट कर नहीं आए हैं, न आना चाहते हैं। कारण स्पष्ट है कि जहां तुष्टीकरण के कारण आतताइयों को राजनीतिक संरक्षण खुलेआम मिल रहा है, वहीं पलायन कर गए निरीह दलित हिंदुओं को पुचकारने वाला भी सामने नहीं आया।

पश्चिम बंगाल की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी मानवीय मूल्यों से अधिक खंूरेजी की खुली छूट आतताइयों को देकर अपनी कुर्सी और सत्ता सुरक्षित रखना चाहती है। यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है। वर्तमान मुखिया ममता बनर्जी अपने तीखे बयानों और असंतुलित व्यव्हार को अपना राजनीतिक अस्त्र समझ बैठी हैं। वे सुलगता बंगाल और विस्थापितों को वापस लाने की चिंता छोड़ यूपी के चुनाव में कूद जाती हैं। उनके प्रदेश के राज्यपाल समय-समय पर उन्हें प्रदेश की बिगड़ी कानून-व्यवस्था और अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर जब चेताते हैं, तो वे भड़कते हुए अभ्रद और अशोभन शब्दों का प्रयोग करने से नहीं चूकतीं। जबकि मुख्यमंत्री चाहें तो सधे हुए शब्दों में अपना पक्ष रख अपनी छवि और खराब होने से बच सकती हैं।

नाकाम चालाकी दिखाते हुए वे अपने सांसदों को गृहमंत्री के पास राज्यपाल को हटाने की मांग के साथ भेजती हैं। उन्हें मालूम है कि ऐसा होना नहीं। असल मंशा ध्यान भटकाने की है। अंतत: मुख्यमंत्री ही पुलिस प्रशासन चुस्त-दुरुस्त कर कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाएगा। यहां तुष्टीकरण और वोटबैंक की राजनीति सही इलाज होने नहीं देती। ईमानदार पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी प्रताड़ना के भय से उचित फैसले नहीं करते।
ममता बनर्जी को चाहिए कि वे भाजपा के देश भर में बढ़ते प्रभाव की चिंता छोड़, अपने राज्य में कानून-व्यवस्था दुरुस्त करें।
सुशील कुमार बतरा, मेरठ

दोहरी जवाबदेही

चुनावों के बाद पांचों राज्यों के मुख्यमंत्री शपथ ले चुके हैं। अब दोहरी जवाबदेही सत्ताधीशों पर है। बिजली, गैस और अन्य मुफ्त की सुविधाओं जैसी लोकलुभावन घोषणाएं हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में मुख्य रूप से सामने आई हैं, जिन पर विश्वास करके मतदाताओं ने संबंधित दलों को वोट दिए। निश्चित रूप से राजनीतिक कलाबाजी में जनता पर अतिरिक्त भार बढ़ाने वाला यह पहलू था, मगर आजकल चुनाव इन्हीं के बल पर जीते जाने की वजह से ये सब चीजें गौण हो गई हैं।

इन घोषणाओं के निर्वहन में अब राजनीतिक दलों को उन पर अमल और जनता का विश्वास जीतने की दोहरी जवाबदेही है। भले ये वादे महज सत्ता प्राप्ति के लिए किए हों, अगर इन पर सरकारें अमल करती हैं तो उनके भविष्य की राह आसान होगी। जनता के साथ दगाबाजी का मतलब सत्ता तो ठीक, विपक्ष का ओहदा भी खोना है, यह बात नेताओं को अपने जेहन में ठीक से बिठा लेनी चाहिए।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र

योगी का आसन

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ पचास मंत्रियों ने भी शपथ ली। योगी को विपक्ष ने बुलडोजर बाबा का तमगा दिया है। उनके दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद इतना तो तय हो गया है कि जिस व्यक्ति को यूपी की बागडोर सौंपी गई है, वह बहुत बड़ा जौहरी है। मोदी खतरों के खिलाड़ी हैं। योगी के रूप में यूपी को एक प्रतीक पुरुष मिल गया। हालांकि किसी संन्यासी को सिंहासन पहली या आखिरी बार नहीं है। और न ही भारतीय जनता पार्टी ने यह करतब पहली बार किया है। इसके पहले भगवाधारिणी उमा भारती मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इतने सालों में मोदी ने हिंदुत्ववादी छवि बनाई है। इस छवि को बनाए रखना चाहते हैं। यूपी को जातियों में बांटने वालों को देखना चाहिए कि हर हिंदू जाति से ऊपर है।

भाजपा सबका साथ सबका विकास के मंत्र से बार-बार सत्ता हासिल कर रही है। इससे जाति आधारित वोट बैंक के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती। जो पार्टियां तुष्टीकरण को ज्यादा अहमियत दे रही हैं, उन दलों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। उनके इस कदम से 2024 के लोकसभा चुनाव में हिंदू वोट संगठित हो गया है। यह भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खांचे में भी फिट बैठती है।

केंद्र के लिए भाजपा ने यूपी में जो पत्ते फेंटे हैं, वे कहीं न कहीं तुरुप के पत्तों में तब्दील हो जाएंगे। मोदी की लोकप्रियता का फायदा चार राज्यों में मिला है। पंजाब में अकाली दल से गठबंधन और कैप्टन अमरिंदर सिंह की घटती लोकप्रियता से भाजपा को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। कांग्रेस के कुशासन से जनता ने तीसरा विकल्प चुना, जिसका सीधा फायदा आम आदमी को हुआ है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत