चीन अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने के लिए भारत की घेराबंदी करने का प्रयास कर रहा है। वह सीमा के निकट कई गांव बसा कर अपनी सैन्यशक्ति को मजबूती प्रदान कर रहा है। अब उसने भूटान की जमीन पर कब्जा कर गांव बसा लिया है, जिससे वह भारत की घेराबंदी मजबूती से कर सके। भूटान सहित कई देश चीन के कर्ज के जाल में उलझ चुके हैं। उन देशों के लिए चीन के चंगुल से निकलना बेहद मुश्किल काम है। भारत से लगने वाली तिब्बत की सीमा पर भी चीन सैनिकों की संख्या एवं सुविधाएं बढ़ाता जा रहा है।

चीन के मंसूबों को रोकने में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा है। जापान की पहल पर चीन की विस्तारवादी नीति पर नकेल लगाने के लिए क्वाड संगठन का उदय हुआ। इस संगठन में भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया है। इस संगठन के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन हो चुका है। अब इस संगठन को अब अपने कार्यों को मूर्त रूप देने का वक्त आ चुका है। चीन से त्रस्त देशों में इसमें शामिल कर संगठन को मजबूती प्रदान करना चाहिए। अगर चीन की विस्तारवादी नीति को नहीं रोका गया, तो वह हांगकांग और तिब्बत की तरह कई और देशों को निगल जाएगा।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>

मदद के हाथ

‘मदद और मैत्री’ (संपादकीय, 13 दिसंबर) पढ़ा। भारत ने सदैव संकटग्रस्त देशों की मदद की है। कोरोना काल में अमेरिका को पैरासिटामोल दवा भेज कर भारत ने अपनी विश्व बंधुत्व की भावना को उजागर किया था। अफगानिस्तान इस समय संकट के दौर में है। लुंज-पुंज अर्थव्यवस्था से वहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। ऐसे में जीवन रक्षक दवाओं की मदद कर भारत ने मानवता की मिसाल पेश की।

हालांकि भारत कभी भी बदले में सहयोग की भावना का महत्त्वाकांक्षी नहीं रहा है और वसुधैव कुटुंबकम के सहारे दुनिया की मौके-बेमौके के मदद करता आया है। अब अफगानिस्तान के शासक तालिबान को भारत में आतंकवाद को प्रश्रय देने के अपने एजेंडे पर फिर से विचार करना चाहिए। इससे उसे आगे भी मदद के रास्ते खुलेंगे। विश्व समुदाय भी उसके बारे में अपनी मानसिकता बदलेगा।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र