‘चीन की हरकतें’ (23 सितंबर) पढ़ कर लगा कि चीन की नीयत कभी बदलने वाली नहीं है। वार्ता करके पीछे हट कर चीन ने हमेशा हमें भुलावे में रखने की कोशिश की है। अब फिर सीमा क्षेत्र में हजारों चीनी सैनिकों का जमावड़ा निश्चित रूप से किसी न किसी अनहोनी जैसा लग रहा है। भारत ने अब तक जितना संयम बरता, अगर उसकी जगह दुनिया का कोई और राष्ट्र होता तो कब का युद्ध छिड़ गया होता। जब तक चीन को जैसे को तैसा नहीं मिलेगा, तब तक वह आदत से बाज आने वाला नहीं है।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र
भ्रम की योजना
सरकारी कार्यक्रम लोकतंत्र की नींव हैं। प्रचार पर टिके इन कार्यक्रमों को पिछले छह-सात वर्ष से ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा है, मानो नित नई योजना परोसी जा रही हो। प्रचार की यह धारा जब समझ से परे बहने लगती है, तब वास्तविकता के धरातल पर खड़ी जनता में संदेह पैदा होने लगता है। आजकल अधिकतर सरकारी योजनाएं तंत्र (तकनीक) आधारित हैं। चाहे वह पोषण संबंधी हो या पेंशन, महिला जल सशक्तीकरण हो या कृषि या गरीब कल्याण से जुड़ा अनाज वितरण, सबके आंकड़े पोर्टल पर डाले जाते हैं। पोषण शक्ति निर्माण से लेकर बच्चों की घटती लंबाई तक की जानकारी हर साल हर राज्य में नाम बदल कर ऐसे दर्शाए जाते हैं, जैसे नए कार्यक्रम की शुरुआत हो रही हो, जबकि सत्य इससे परे है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में सिर से पैर तक के इलाज की व्यवस्था है, जिसकी उपलब्धि दर्शाई भी जाती है, पर कोविड काल में आंकड़ों की सच्चाई जगजाहिर हो चुकी है। एक गर्भवती को आशा, आंगनवाड़ी, एएनएम तीनों एक-सी सेवा देती हैं, पर तीनों के आंकड़े में वह अलग इकाई बन जाती है। यही वेबसाइट/ एप्प में संख्या का कमाल दिखने लगता है। जल एक है, पर नल का जल, कुएं का जल, तालाब का जल ऐसे समझाया जाता है, मानो तीन जल हों और धरती पर जल ही जल हो। मिड डे मील और प्रधानमंत्री पोषण योजना में कोई फर्क नहीं है, दोनों में ही विद्यार्थी खाना खाते हैं, पर पिछले नए के चक्कर में योजना का नाम ही बदल दिया गया।
सरकारी योजनाओं के बदले हुए नाम एप्प या पोर्टल किसी कार्यक्रम की सफलता के सूचक नहीं हैं, बल्कि ये मात्र भ्रम हैं। जब देश की मुख्य समस्या शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी है, तब इसमें पहल की जरूरत है, न कि धरे-धराए नाम में सेंध लगा कर एप्प, पोर्टल पर रिपोर्ट डाल कर भरमाने की।
’लिली सिंह, गोमती नगर विस्तार, लखनऊ</p>