नया साल आते ही अक्सर हम लोग नई योजनाएं व नए संकल्प लेते हैं, लेकिन कभी वे पूरी होती हैं या फिर कभी पानी के बुलबुले की भांति विलीन हो जाती हैं। अगर आप पिछले वर्षों की शुरुआत में लिए गए अपने संकल्पों की सूची बनाएं तो हैरान हो जाएंगे कि हमने इतने संकल्प संजोए थे… कुछ पूरे हुए होंगे या फिर एक ने भी सूरज की रोशनी नहीं देखी होगी। ऐसा क्यों होता है? कभी सोचा! इसका कारण तो यह है कि हमें अपने ही मन की पहचान नहीं है। बस दूसरों की देखा-देखी हम फैसले ले लेते हैं।

हमारा संकल्प इसलिए भी पूरा नहीं होता, क्योंकि संकल्प में विकल्प छिपा होता है। क्या हम उन योजनाओं व संकल्पों में पर्यावरण को शामिल करते हैं? क्या हम अपने आसपास के वातावरण के प्रति सजग हैं? अगर हैं तो बहुत अच्छा, अन्यथा खराब तो है ही! पिछले साल ने हमें भविष्य के लिए सचेत कर दिया है और बताया है कि आने वाला समय कैसे चलेगा। अगर हमने मनुष्य और जीव-जंतुओं के बीच की दीवार को तोड़ दिया तो अंजाम घातक होंगे। इसमें कोई दोराय नहीं।

पूर्णबंदी के दौरान हमने देखा और अनुभव भी किया होगा कि पृथ्वी के तापमान और पर्यावरण में किस हद तक सुधार हो गया था। काफी दूर से पर्वतों का नजर आना, पशु-पक्षियों का बदला व्यवहार व उनका दिखना, प्रदूषण का हैरतअंगेज तरीके से कम हो जाना। यह सब पृथ्वी के अस्तित्व व जीवन के लिए एक सकारात्मक लक्षण हैं। मगर हम सुधरेंगे, तभी पृथ्वी पर जीवन रहेगा! आज पर्यावरण संरक्षण भी एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। कई दशकों से विश्व भर के पर्यावरण वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता इस दिशा में काम किए जाने की जरूरत को रेखांकित कर रहे हैं, लेकिन समस्या गहराती जा रही है।

सच तो यह है कि आज सभ्यता को सबसे बड़ा खतरा मानव जाति से ही है। बड़े-बड़े सम्मेलनों, कॉन्फ्रेंसों आदि आयोजनों में पर्यावरण को बचाने की बातें की जाती हैं, लेकिन विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को कुचलने का काम भी किया जाता है। नतीजा यह होता है कि न तो जलवायु में कोई सुधार होता है और न प्रजातियों के लुप्त होने में कोई कमी आती है। विश्व भर में तरह-तरह के प्रदूषण अपना मुंह बाएं खड़े हैं। कार्बन उत्सर्जन की समस्या अपनी जगह कायम है ही। बड़े बड़े कल-कारखानों और कंक्रीट के जंगलों के कारण पर्यावरण वैसे ही खतरे में पड़ता जा रहा है और सब कुछ जानते हुए भी इस पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। नतीजन, पर्यावरण क्षरण का दुष्प्रभाव सभी को झेलना पड़ रहा है। ऐसे में जरूरी यह है कि इन समस्याओं का हल ईमानदारी के साथ खोजा जाए।

नए साल की उन योजनाओं और संकल्पों में दैनिक जीवन की अपनी जरूरतों के साथ साथ हमें पृथ्वी संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने, खनन रोकने, प्रदूषण न फैलने, पूल वाहन प्रणाली अपनाने के प्रति खुद को और समाज को जागरूक करने जैसी योजनाएं बनानी ही होंगी। तभी इस सुंदर ग्रह और इस पर पनपते जीवन की रक्षा सुदृढ़ हो पाएगी। पर्यावरण और प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी एक व्यक्ति विशेष की नहीं है। हम सबको एक साथ खड़े होकर आने वाले कल के लिए बचना है। सदियों पहले सोलजेनित्सिन ने कहा था- ह्लसुंदरता ही संसार को बचाएगीह्व। सुंदरता से उनका तात्पर्य था- करुणा, प्रेम, सहानुभूति, इंसानियत और पूरी सृष्टि के प्रति प्रेमभाव।

अभिनंदन भाई पटेल, लखनऊ, उप्र