करीमा बलूच की हत्या पूरे विश्व समुदाय को शर्मिंदा करने वाली घटना के रूप में देखा जा रहा है। इस घटना से अब लगने लगा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित संयुक्त राष्ट्र की कोई अहमियत नहीं रह गई है। तमाम कोशिशों के बावजूद इस हत्याकांड में लिप्त व्यक्ति या देशों को आज चिह्नित नहीं किया जाना यह बताता है कि इस जघन्य कृत्य के पीछे लगे व्यक्ति या देश कितने महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली हैं। यह दुनिया के लिए शर्मसार करने वाली बात लगती है । सवाल है कि क्या अब दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानव अधिकार की लड़ाई के क्षेत्र में एक गंभीर संकट के तौर पर देखा जाना चाहिए?
बलूच आंदोलन की सबसे बड़ी हस्ती के रूप में प्रसिद्ध वैचारिक शक्ति की प्रबल स्तंभ करीमा बलोच कोई साधारण महिला नहीं थी। उन्होंने बलूच राष्ट्रवाद की हर समय वकालत की। पाकिस्तान की साठ फीसद से अधिक खनिज संपदा इसी क्षेत्र में है। इसलिए पाकिस्तान को बलूचों की आजादी की मांग पसंद नहीं आ रही है। पाकिस्तान में चीन के बढ़ते साम्राज्य के कारण करीमा बलोच की वैश्विक प्रतिक्रिया चीन को भी परेशान कर रही थी।
जाहिर है कि पाकिस्तान करीमा बलोच की वैश्विक सक्रियता से गहरे दबाव में था। करीमा बलोच बलूचिस्तान में चीनी परियोजनाओं के खिलाफ सशक्त जन आंदोलन करते हुए लगातार वहां के लोगों में शक्ति भर रही थीं। विश्व के सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन से अपेक्षा की जाती है कि बलूचों की आजादी को ध्यान में रखते हुए करीमा बलोच की हत्या पर एक ठोस निर्णय ले, दोषी लोगों और देशों को जरूरत और नियम के अनुसार दंड दे।
’अशोक, पटना ,बिहार।