भारत की संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा घोषित किया जाना सभी भारतीयों की आशा और आकांक्षाओं के अनुरूप लिया गया ऐतिहासिक फैसला था। इस ऐतिहासिक फैसले की पृष्ठभूमि में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक सभी भारतीयों को एक सूत्र में पिरो कर रखने की परिकल्पना थी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर महाराष्ट्र से होने के बावजूद हिंदी को राजभाषा जाने के प्रबल समर्थक थे। 4 अक्तूबर 1977 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रीय अधिवेशन में हिंदी में भाषण देकर हिंदी को अंतरराष्ट्रीय पटल पर रखने का ऐतिहासिक काम किया था।
सभी भारतीयों को राजभाषा के संवर्धन के लिए जरूर योगदान देना चाहिए, लेकिन भारत के अनेक राज्यों में हिंदी को खुले मन से स्वीकार नहीं किया जाता है और क्षेत्रवाद सामने खड़ा हो जाता है। कर्नाटक में हिंदी दिवस मनाने पर विवाद का हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य है।
अगर कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो हिंदी प्रेमियों के लिए यह अच्छी खबर नहीं हो सकती। इस बात को अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए भी राज्य और केंद्र सरकार काम करे। लेकिन हिंदी राजभाषा जो कि आम बोलचाल की राष्ट्रव्यापी भाषा है, किसी भी तरह से विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए।
- वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली</strong>