भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिकी पूंजीसाधकों की नैया भाजपा सरकार के हाथों पार होने की जो उम्मीद बंधी थी, वह बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के तूफान से ही डगमगा चुकी थी। उसके बाद गुजरात में भी हलचल मच गई, जहां शहरी निकायों और पंचायतों के चुनावों में भाजपा की गत बिगड़ गई। केरल के स्थानीय निकायों में भी उसे वांछित नहीं मिल सका। केरल की जनता ने भाजपा की सांप्रदायिक गोलबंदी की कोशिशों को नकार दिया। वहां वाममोर्चा नीत एलडीएफ को मिला समर्थन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी बेहतरी की ओर संकेत करता है।
इसके अलावा, पिछले दिनों कुछ उपचुनावों के नतीजे भी भाजपा के खिलाफ रूझानों को ही दर्शाते हैं। मध्यप्रदेश की रतलाम-झाबुआ की लोकसभा सीट भाजपा से झिटक कर कांग्रेस के खाते में चली गई। इसके बावजूद, भाजपा ने चुनाव परिणामों से कोई सबक नहीं लिया है। प्रधानमंत्री मोदी के ब्रिटेन दौरे से पहले पंद्रह क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बिना संसद को विश्वास में लिए ही ढील दे दी गई थी। एकल ब्रांड खुदरा व्यापार क्षेत्र, विमानन, बैंकिग, निर्माण, प्रतिरक्षा, मीडिया, बगान आदि में सरकार की बिना इजाजत के निवेश की छूट दे दी गई है। ये सब निर्णय संसद के शीतकालीन सत्र का इंतजार किए बिना कर लिए गए थे। यह संसदीय लोकतंत्र का मजाक है।
अपनी विफलताओं के लिए बार-बार पूर्ववर्ती शासन को दोष देते रहना अब लोगों को रास नहीं आ रहा है। सत्ता में रह कर विपक्षियों पर हमले और असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए जब-तब सांप्रदायिक धुव्रीकरण के मकसद से बयानबाजी करना एक राजनीति हो गई है। अपने से असहमत लोगों को देशद्रोही या पाकिस्तान भेजने जैसे गैर मुद्दों पर सरकार और उसके मंत्रियों के बयान और रोजमर्रा के सवालों और उसकी रोजी-रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, सुख-शांति और आपसी सद्भाव की अनदेखी से जनता का विचलित होना स्वाभाविक है। मोदी के कथित सुधारों से जीवन सुधार के हालात बनने के उलट बिगाड़ के हालात ही सामने है। विदेश यात्राओं की चक्करघिन्नी के बाद भी विदेश नीति की विफलता सबके सामने है। नेपाल के रास्ते बंद हैं तो पाकिस्तान से बात नहीं करने के बताए गए कारणों के यथावत रहते अचानक बात करना क्या दर्शाता है!
’रामचंद्र शर्मा, तरूछाया नगर, जयपुर</strong>