सोशल मीडिया की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए सचमुच कड़े नियमों की दरकार है। इन माध्यमों का दुरूपयोग करके, खासकर महिलाओं के खिलाफ आपतिजनक सामग्री पर लगाम लगाने की आज सख्त आवश्यकता है। देश की अखंडता, एकता और सुरक्षा के साथ, सामाजिक व्यवस्था के हितों को ध्यान मे रख कर भी इनके लिए नए कानून होने चाहिए। सोशल मीडिया पर भी सहमति-असहमति की दशा में कानूनी कदम उठाने के लिए नियम-कायदे होने चाहिए। भारत का इंटरनेट समाज अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया कंपनियों के लिए बहुत बड़ा बाजार है, जिनका उपयोग निश्चित तौर पर देश के संविधान और कानूनों के तहत ही होना चाहिए।

  • नरेश कानूनगो, बंगलुरु

हार से हताशा

पाकिस्तान विश्व के हर मंच पर अपना कश्मीर राग अलापता है, पर उसको कोई कामयाबी आज तक नहीं मिल पाई है। चीन एलएसी और गलवान घाटी की घटना से भारत की ताकत का अनुमान लगा चुका है कि यह भारत 1962 वाला भारत नहीं है। इसीलिए वह पाकिस्तान जैसे एक कमजोर देश के साथ खड़ा नजर आ रहा है। असलियत यह है कि चीन सिर्फ अपने फायदे के लिए पाकिस्तान जैसे देश का इस्तेमाल कर रहा है, जिसका पाकिस्तान को भी आभास है, पर उसके पास भी चीन के अलावा कोई और चारा नही है। ऐसे में तो चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।

भारत आर्थिक रूप से मजबूत होता हुआ देश है। इसने जिस तरह अपनी अर्थव्यवस्था और रक्षा जैसे संवेदन शील मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए अपने को आत्मनिर्भर देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है, उसको देख कर नहीं लगता कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी कुछ ऐसा आश्वासन पाकिस्तान को देने वाले हैं, जिसका विपरीत प्रभाव भारत और रूस के संबंधों पर पड़े।

पाकिस्तान आतंकवादियों को जिस तरह अपना समर्थन देता रहा है, उसकी वजह से शांति में विश्वास रखने वाले देश कभी उसके साथ आकर नही खड़े होने वाले। पाक अधिकृत कश्मीर का मुद्दा भारत-पाक का एक आंतरिक मामला है, इस पर किसी अन्य देश का हस्तक्षेप कभी स्वीकार्य नहीं होगा। इतने देशों में घूम-घूम कर पीओके पर अपने लिए समर्थन जुटाने से अच्छा है कि पाकिस्तान, भारत के साथ बैठ कर, शांतिपूर्ण ढंग से इस मसले का हल निकाले, जो दोनों देशों को स्वीकार्य हो। अपनी आतंकवादियों को शह देने वाली प्रवृत्ति को छोड़ दे, तो काफी हद तक पाक अधिकृत कश्मीर पर बातचीत करने के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार हो सकता है।

  • राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा