चाहे घोषणा-पत्रों में राजनीतिक दलों द्वारा रोजगार का वादा हो या विश्वासघात का इरादा, कोई न कोई तो जरूर पूरा हो जाता है। इक्कीसवीं सदी का भारत भले तारीख, महीने और साल में बदल गया हो, लेकिन आज भी वोट, उन्हीं आधारों पर दिया जा रहा, जिस पर दशकों से दिया जाता रहा है। चुनाव के दौरान, शिक्षित होते हुए भी हमें, बैनर, प्रचार और अच्छी बातों में फंसा लिया जाता है। संवैधानिक पद पर विराजमान दिग्गज और अनुभवी नेता, भारत को सबसे युवा देश अपने भाषण और बातों में तो कहते हैं, लेकिन स्वयं युवाओं को रोजगार का अंगूर देकर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं। सभी राजनीतिक दल मानो रोजगार शब्द सुनते ही तिलमिला जाते या चली आ रही परंपरा को बढ़ावा देते हैं। यह सिलसिला फार्म के भरे जाने से लेकर, पेपर लीक से होता हुआ कोर्ट पहुंचता है।
महामारी के दौरान जिन विद्यार्थियों का यूपीएससी, पीसीएस या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में उम्र के कारण आखिरी प्रयास रहा हो, उनको सरकार और उक्त विभाग मानवीय आधार पर एक और मौका दे। आइआइटी और आइआइएम जैसे सर्वोच्च संस्थानों के युवा मस्तिष्क भी आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं, लेकिन सरकार को न दिखाई दे रहा और न सुनाई। युवाओं का एक ही सवाल है, क्या हुआ तेरा वादा? इन सबके बाद भी क्या चुनाव, रोजगार के मुद्दों पर होगा या जनता का वोट, इस आधार पर दिया जाएगा?
’अमन जायसवाल, दिल्ली विश्वविद्यालय
हमारी जिम्मेदारी
आखिर सड़क दुर्घटना क्यों होती है? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर-सी बात है, हम लोग। हम अकसर अखबारों में पढ़ते और सुनते रहते हैं कि सड़क दुघर्टना में लोगों की जान चली गई। इसका कारण हेलमेट न पहनना, ट्रैफिक नियमों का पालन न करना, तेज गति में गाड़ी चलाना और गाड़ी चलाते समय फोन पर बातें करना आदि हो सकतें हैं। यातायात विभाग और राज्य प्रशासन अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं और नियम भी बनाते हैं, सड़क दुर्घटना सिर्फ गाड़ी चलाने वाले लोगों के साथ नहीं होता, बल्कि इसका शिकार सड़क पर पैदल चलने वाले लोग भी होते हैं।
सोचिए जरा, जिनकी कोई गलती नही होती, उनकी जान आपकी एक लापरवाही की वजह से चली जाए। नियमों का पालन कर हम अपनी जान के साथ-साथ सामने वाले की भी जिंदगी का खयाल रख सकते हैं। दुर्घटनाओं से बचने के लिए नियमों का पालन करना और अपनी जिंदगी का खयाल रखना हमारी जिम्मेदारी है।
’स्मिता उपाध्याय, प्रयागराज