देश में कैसा लोकतांत्रिक और समाजवादी व्यवस्था है कि कोई खाए बिना मरे और कोई पुश्त-दर-पुश्त बैठ कर खाए और विलासिता करे। आर्थिक समानता और आजादी बिना स्वतंत्रता किस काम का। संविधान में अनेक शक्तियां दी गई हैं, लेकिन इस पर अमल सरकार को ही करना पड़ता है। सरकार अपनी कुर्सी की रक्षा के हिसाब से नीति बनाती है।
इस मामले में तमिलनाडु के सीएम स्टालिन अपने बेबाक निर्णय के लिए जाने जाते हैं। अब वहां मंदिरों में पुजारी किसी भी जाति का बन सकता है, क्योंकि यह आय का मामला है। दूसरा, राज्य में सवर्णों को दस फीसद आरक्षण नहीं मिलेगा, क्योंकि इनकी आबादी राज्य में 3.5 फीसद ही है। यही कारण है कि बिहार में सवर्ण आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि यहां भी इनकी आबादी दस फीसद से कम है और गरीब सवर्ण का आरक्षण का लाभ दस फीसद मिल रहा है। आखिर यह कहां तक उचित है?
‘वेल्थ ओनरशिप ऐंड इनइक्वलिटी इन इंडिया : ए सोशियो-रिलीजियस एनालिसिस’ शीर्षक अध्ययन के मुताबिक अनुसूचित जाति के मुकाबले हिंदुओं की कथिति उच्च जातियों यानी सवर्णों के पास चार गुना ज्यादा संपत्ति है। अध्ययन के मुताबिक देश में हिंदू उच्च जातियों की जनसंख्या में हिस्सेदारी करीब 22.28 फीसद ही है, लेकिन कुल संपदा में उनका हिस्सा इसके करीब दोगुना है। हिंदू अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 35.66 फीसद है और उनकी देश की कुल संपदा में हिस्सेदारी इकतीस फीसद तक है। इसी तरह एससी-एसटी की कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी करीब सत्ताईस फीसद है, लेकिन देश की संपदा में उनकी हिस्सेदारी महज 11.3 फीसद है।
करीब दो साल तक चला यह अध्ययन 2015 से 2017 के बीच सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ दलित स्टडीज द्वारा कराया गया। इसके लिए विभिन्न राज्यों के 1.10 लाख परिवारों के एनएसएसओ डेटा को आधार बनाया गया है। अध्ययन के अनुसार, देश में संपत्ति के दो प्रमुख वर्ग- जमीन और मकान- इमारत माने जाते हैं और कुल संपदा में इनका हिस्सा करीब नब्बे फीसद है। यही नहींं, देश में जो असमानता है, उसमें तिरासी फीसद हिस्सा इन्हीं दो वर्गों से है।
देश की कुल संपदा का 17.5 फीसद हिस्सा महाराष्ट्र में, 11.6 फीसद हिस्सा यूपी, 7.4 फीसद केरल, 7.2 फीसद तमिलनाडु और 6 फीसद हिस्सा हरियाणा में है। कम संपदा वाले गरीब लोगों की बात करें तो इसमें ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य हैं। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में संपदा का सत्तर फीसद हिस्सा शीर्ष बीस फीसद परिवारों के पास है। दूसरी तरफ, झारखंड, ओडिशा, बिहार जैसे राज्यों के बीस फीसद सबसे ज्यादा गरीब परिवारों के पास महज दो फीसद संपदा है।
हाल में आए आक्सफैम के एक अध्ययन में भी दावा किया गया था कि देश के शीर्ष एक फीसद अमीर लोगों के पास तिहत्तर फीसद संपदा है। एक साल के दौरान देश के शीर्ष अमीरों की संपदा में 20.9 लाख करोड़ रुपए की बढ़त हुई है। एक अनुमान के अनुसार देश में सबसे ज्यादा वेतन वाले एक शीर्ष एग्जीक्यूटिव की जितनी कमाई है, उतना कमाने में किसी दैनिक मजदूर को 941 साल तक काम करना पड़ेगा।
- प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना