सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 का 39.45 लाख करोड़ का बजट पेश किया है। यह आम लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरी तरह तो नहीं, पर बहुत हद तक संतुष्ट करने वाला बजट है। पिछले दो वर्षों में कोरोना के कारण, जो देश की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई, इस बजट के माध्यम से उसे संतुलित किया जा सकता है। इस बजट में दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी और घटोतरी दोनों देखी जा सकती है।

जैसे विदेशी छाता, कैपिटल गुड्स, इमिटेशन ज्वेलरी आदि के दाम बढ़ा दिए गए हैं, तो मोबाइल फोन चार्जर, ज्वेलरी, जूते चप्पल, खेती का सामान आदि सस्ते किए गए हैं। बजट में टैक्स के संदर्भ में आम लोगों को बिल्कुल राहत नहीं दी गई है। देश में आर्गेनिक खेती को इस बजट के माध्यम से बढ़ावा दिया जाएगा।

युवाओं के लिए साठ लाख नौकरी का प्रावधान रखा गया है। जिन्होंने कोरोना के दौरान आर्थिक तंगी झेली, उन्हें इससे काफी राहत मिलेगी। इस बजट में गरीबों के हित की बात की गई है। पीएम आवास योजना के तहत अस्सी लाख घर गरीबों को दिए जाएंगे। इस बजट की खास बात है अर्थव्यवस्था को डिजिटल रूप से बढ़ावा देने की। निर्मला सीतारमण ने भी पेपरलेस बजट पेश किया। कोरोनाकाल में शिक्षा में जो क्षति हुई उसको बढ़ावा देने के लिए डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान किया गया है। इस बजट में पीएम ई-विद्या के तहत टीवी चैनल 12 से बढ़ा कर 200 कर दिया गया। इससे पता चलता है सरकार को शिक्षा की चिंता तो है। कह सकते हैं कि संतुलित है यह आम बजट।

भ्रष्टाचार की जड़ें

प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार पर क्षोभ व्यक्त करते हुए इसके उन्मूलन के लिए युवाओं से सहयोग की अपील की। यह कटु सत्य है कि भ्रष्टाचार हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में घुस गया है और यह दीमक की तरह उसे खोखला कर रहा है। विभिन्न सरकारें इसे खत्म करने का वादा तो करती हैं, पर व्यवस्था का अभिन्न अंग बन जाने के कारण इसे समाप्त नहीं कर पातीं। यही बात वर्तमान सरकार पर भी लागू होती है। राजनीति में चुनाव के लिए टिकट पाने, चुनाव लड़ने, चुनाव जीतने के बाद सरकार बनाने तथा मलाईदार मंत्री पद पाने के लिए भ्रष्टाचार के बिना काम चलता ही नहीं।

नौकरी लगवानी हो, तबादला करवाना हो या तबादला रुकवाना हो या फिर भीड़भाड़ वाले मंदिर में जल्दी दर्शन करना हो, भ्रष्टाचार के बिना काम चल ही नहीं सकता।भ्रष्टाचार इसलिए चल रहा है कि एक तो लोग कानूनी लड़ाई लड़ कर इससे बच जाते हैं और दूसरे हमारे समाज ने भी इसे व्यवस्था का एक हिस्सा मान कर स्वीकार कर लिया है। प्रधानमंत्री ने सत्ता की बागडोर संभालते ही कहा था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। पर हकीकत यह है कि विभिन्न विभागों में भ्रष्टाचार पहले के मुकाबले बढ़ गया है।

तभी तो प्रधानमंत्री ने इसे लेकर चिंता व्यक्त की है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो सरकारी एजेंसियां भ्रष्टाचार रोकने के लिए बनाई गई हैं, उनमें खुद भ्रष्टाचार व्याप्त है। भ्रष्टाचार का निवारण तभी हो सकता है, जब इसके उन्मूलन के लिए त्वरित अजालतें बनाई जाएं, पक्के सुबूत हों, गवाह मुकर न जाएं, पैसा देने और पैसा लेने वाले के मन में भ्रष्टाचार के खिलाफ विचार उत्पन्न हो। इससे पहले कि भ्रष्टाचार रूपी दीमक हमारे जीवन के मूल्यों का हनन कर दे और हमारा एक-दूसरे पर विश्वास ही खत्म हो जाए, हमें मिलजुल कर इसका उन्मूलन करना चाहिए। नैतिकता भी आखिर कोई चीज होती है।

  • शाम लाल कौशल, रोहतक, हरियाणा