हाल ही में तवांग इलाके में दोनों देशों की सेना के दरमियान संघर्ष देखने को मिला था, जिसमें भारतीय सेना ने बड़ी बहादुरी से चीनी सेना को वापस खदेड़ दिया था। उसके बाद ही लद्दाख क्षेत्र के लंबित मुद्दों को लेकर भारत और चीन के सेनाधिकारियों ने सत्रहवें दौर की बातचीत प्रारंभ की।
ज्ञातव्य है कि लद्दाख क्षेत्र में विगत दो वर्ष से दोनों सेनाओं के बीच तनाव बना हुआ है। पंद्रह दौर की बैठकों और वार्ता के बाद भी उस इलाके में कई मुद्दों पर समझौता नहीं हो सका है, जिसे लेकर एक बार फिर यह वार्ता आयोजित की गई थी। इस स्थिति से स्पष्ट है कि दोनों तरफ से कोई कठोर रुख नहीं अपनाया जा रहा है और दोनों पक्ष इस समस्या का शांतिपूर्वक समाधान चाहते हैं। देखा जाए तो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बहुत पुराना है और भारत वाले कुछ हिस्सों को अपना बताकर चीन अक्सर कुछ विवाद खड़े करता रहता है, हालांकि सैन्य अधिकारियों के बीच बैठकों से ये विवाद निपटाए भी जाते रहे हैं।
इस बार तवांग इलाके में चीन की तरफ से घुसपैठ की नाकाम कोशिश की गई तो स्वाभाविक ही हमारे देश में तनाव की स्थिति निर्मित हो गई। संसद में विपक्ष द्वारा सरकार को घेरने का प्रयास किया गया, पर मामला बहुत बड़ा नहीं था, इसलिए सब कुछ सामान्य रहा। दो देशों के बीच सीमाओं के विवाद जटिल होते हैं, लेकिन सैन्य अधिकारियों के बीच निरंतर चलती रही वार्ता और चीन के लचीले रुख से यह संदेश तो बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत-चीन के दरमियान चल रहे सीमा विवाद को सकारात्मक वार्ताओं के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।
सब जानते हैं कि युद्ध किसी समस्या का स्थायी हल नहीं है और यह सदैव विनाश को आमंत्रण देता है। इस सिद्धांत के मद्दे नजर, भारत और चीन को अपना सीमा विवाद, ठोस और सकारात्मक बातचीत के माध्यम से ही सुलझाना चाहिए।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल
विकल्प की ऊर्जा
विगत दस माह से रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है। इस दौरान दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी की वजह से पेट्रोलियम पदार्थों में कीमतों में इजाफा हुआ है। भारत अपनी जरूरत का नब्बे फीसद कच्चा तेल आयात करता है। हम अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए दूसरों देशों पर निर्भर हैं। किसी भी देश के सतत विकास के लिए ऊर्जा की उपलब्धता अनिवार्य है। हमारे देश में खनिज तेल, पेट्रोलियम और उत्तम गुणवत्ता के कोयले का प्राकृतिक संसाधन सीमित है।
देश की बढ़ती आबादी के साथ बिजली ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है। बिजली ऊर्जा सुगमता से हमारी जरूरतों को पूरा करती है। देश की अधिकतर बिजली कंपनियां कोयले से संचालित होती हैं। कोयले का भंडार सीमित है, जो आने वाले वक्त में समाप्त हो सकता है। हमें आवश्यकतानुसार ही बिजली का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि ऊर्जा का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। यूक्रेन संकट ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का संदेश देता है। सूर्य ऊर्जा का एक असीमित भंडार है। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाकर हम ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया
मंदी की आहट
आज के समय में दुनिया के कई देश मंदी की चपेट में आ चुके हैं। नतीजतन, बड़ी-बड़ी कंपनियां भी कर्मचारियों की छंटनी कर रही है। ट्विटर, फेसबुक, माइक्रोसाफ्ट, अमेजन से लेकर ओला, उबर की भी हालत पतली है। भारत के संदर्भ में बात करें तो सरकार के कथनानुसार देश की अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में है।
इसलिए मंदी के प्रभाव से भारत पर कोई असर नहीं होगा। वर्तमान में भले ही मंदी का असर हमारे देश पर न हो, पर मीडिया जगत और बड़ी तकनीकी और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में भारत में भी छंटनी का दौर प्रारंभ हो चुका है। किसी बात को बहाना बना कर मुनाफे के लिए की जाने वाली ऐसी कवायदें देश को किस दिशा में ले जाएंगी?
ललित महालकरी, इंदौर</p>
फर्जी चिकित्सक
विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर तिहत्तर डाक्टर देश में अनिवार्य परीक्षा पास किए बिना ही फर्जी तरीके से लोगों की चिकित्सा कर रहे थे। एफएमजीई परीक्षा में फेल होने के बावजूद मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत या बिना पंजीकृत हुए ही देश में डाक्टर की प्रैक्टिस करते हुए पाए गए।
उज्जैन में खुद को न्यूरो व रेडियोलाजिस्ट बताने वाले एक ‘मुन्ना भाई’ डाक्टर ने दो-तीन वर्षों तक फर्जी डिग्री के आधार पर इलाज करता रहा। उसने इलाज के नाम पर लाखों रुपए ठग लिए। फायदा नहीं होने पर प्रशासन को शिकायत की गई, तब ज्ञात हुआ डाक्टर की सभी डिग्रियां फर्जी हैं। फर्जी डाक्टर ने कई मरीजों को लूटा और उनकी सेहत के साथ खिलवाड़ किया।
शासन को नियम बनाना चाहिए, जिसके तहत चिकित्सक का कार्य प्रारंभ करने के पूर्व सभी दस्तावेजों का स्थानीय प्रशासन से सत्यापन करवाना अनिवार्य किया जाए। उसके बाद डाक्टरों को प्रैक्टिस करने का प्रमाण पत्र जारी किया जाए और इसके लिए अनुमति दी जाए। अनुमति पत्र कार्य स्थल पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। गलत तरीके से बने डाक्टरों पर तभी अंकुश लगेगा।
अरविंद जैन ‘बीमा’, उज्जैन
तनातनी के बीच
भारत का व्यापार घाटा निरंतर बढ़ रहा है। चीन से तनातनी के बीच भी उससे हमारा आयात पहले की अपेक्षा बढ़ा है। सरकार व्यापार घाटा कम करने और विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए के उद्देश्य से कई वस्तुओं पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी करती रही है। दवाइयों और कुछ अन्य औद्योगिक उत्पादों के कच्चे माल में भी उत्पाद शुल्क में वृद्धि की गई है।
इससे उनका आयात महंगा हुआ है और जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हुई है। लागत में वृद्धि के कारण निर्यात में भी कमी आई है। इसलिए ऐसे उत्पादों की लागत को कम करने के लिए उनके कच्चे माल पर आयात शुल्क में कटौती की जानी चाहिए, ताकि भारत से निर्यात में वृद्धि हो और व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिले।
नवीन थिरानी, नोहर