जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की पटियाला हाउस अदालत में पेशी के दौरान वकीलों के एक गुट द्वारा उनके, उनके समर्थकों और पत्रकारों के साथ की गई मारपीट की घटना निंदनीय और चिंताजनक है। चिंता इसलिए ज्यादा बढ़ जाती है कि सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद दूसरी बार भी मारपीट और गाली-गलौज की गई और इस दौरान दिल्ली पुलिस चुपचाप रही।

किसी भी अभियुक्त की गिरफ्तारी के बाद उसकी सुरक्षा पुलिस की जिम्मेदारी होती है। चाहे आरोप कितना ही गंभीर हो, केवल न्यायालय द्वारा तथा विधिसम्मत तरीके से ही उसे दंडित किया जा सकता है। भारत के संविधान ने यह अधिकार किसी ‘स्वयंभू देशभक्त’ को नहीं दिया।
विधि का शासन नहीं रहेगा तो भारत का लोकतंत्र भी नहीं बचेगा।

इस कृत्य का आरोप वकीलों पर है, जिनकी आस्था न्याय प्रणाली में ही होनी चाहिए थी। क्या आम लोगों के साथ-साथ वकीलों का भरोसा भी कानून-व्यवस्था से उठ रहा है? हमारी कानून और न्याय व्यवस्था में अनेक गंभीर कमियां हैं, जिनमें अदालती प्रक्रिया पूरी होने और सजा मिलने में सालों लगना मुख्य है। इतने विलंब के बावजूद अनेक अपराधी सजा से बच निकलते हैं। राजनीतिक दलों द्वारा अपनी विचारधारा के उग्र समर्थकों को हिंसा, मारपीट या तोड़फोड़ की खुली छूट देना भी ऐसी वारदातों की वजह है। जाहिर है, भारत में अतिवादी प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं।
’कमल कुमार जोशी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड</strong>