धुंध के दरवाजे पर दस्तक देने से पहले प्रदूषित हवा पर अंकुश लगाने के लिए देश की राजधानी में एक शुरुआती कदम उठाया गया है। दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थापित धुंध और धुआं रोधी या एंटीस्मॉग टॉवर प्रोटोटाइप प्रति सेकेंड एक हजार क्यूबिक मीटर हवा को शुद्ध करने का दावा करता है। हालांकि पांच हजार फिल्टर से लैस चौबीस मीटर ऊंचा टावर अब सवालों के घेरे में है।
कई विशेषज्ञों ने एंटी-स्मॉग टावर की अवधारणा पर तर्क दिया है और दिल्ली के मुख्यमंत्री को टावर लगाने के बजाय स्रोत पर उत्सर्जन में कटौती करने का सुझाव दिया। सकारात्मक रूप से नतीजों से पहले निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा। दिल्ली सरकार द्वारा उठाया गया कदम आंखों के सामने धुंध जैसा ही है और इसकी रिपोर्ट जारी होने तक प्रभावशीलता की तस्वीर स्पष्ट नहीं होगी। फिलहाल हमें काम पर विश्वास करना चाहिए और सर्वोत्तम परिणामों की आशा करनी चाहिए।
’निखिल रस्तोगी, अंबाला कैंट, हरियाणा
असहमति की जगह
सदनों में पेश किए विधेयकों पर पर्याप्त बहस के बिना पास किए गए कानून को लोकप्रिय नहीं, सियासतप्रिय कानून कहना अनुचित नहीं होगा, क्योंकि विपक्ष के मत की उपेक्षा होने से कानून बनाने का उद्देश्य भी अस्पष्ट ही रहता है। स्वतंत्रता दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने वकीलों और जजों को संबोधित करते हुए बताया कि कानून बनाते समय बहुत सावधानी बरती जाए, ताकि संविधान संशोधन की नौबत नहीं आए। कानून की खामियों को दूर करने के लिए संसदीय समिति के पास भेज कर कानून विशेषज्ञ से जांच भी जरूरी होती है और ऐसा न होने पर कानून में रह गई खामियों से निर्णय न्यायिक नहीं हो पाता, क्योंकि कोर्ट तो केवल कानून समीक्षा कर सकती है, न कि संशोधन।
उल्लेखनीय है कि इस मानसून सत्र में बीस विधेयक बिना बहस और संसदीय समिति के पास भेजे बिना पास हुए हैं, क्योंकि विपक्ष को भी हंगामे से फुर्सत नहीं मिली। ‘विपक्ष सत्ता पक्ष का विरोधी नहीं होता’, बल्कि केवल एक पक्ष होता है, जिसका ध्यान विशेष रूप से सत्ता पक्ष को रख कर ही बिल पास करना चाहिए। वर्तमान लोकसभा में केवल बारह फीसद बिल ही संसदीय समिति के पास भेजे गए, शेष विधेयकों को न भेज कर पास करने को भी सियासीप्रिय कानून ही कहना होगा। सीजेआई के विचारों के प्रति सरकार को संजीदा होना होगा, ताकि भविष्य में कानून बनाते हुए यह ध्यान रखा जा ज सके।
’बी एल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन, मप्र