कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। ओमीक्रान फैलने का खतरा भी है। मगर भारत में आगामी चुनावों के मद्देनजर सभाएं और रैलियां बेपरवाह होकर आयोजित की जा रही हैं। उसके लिए भारी भीड़ भी जुटाई जा रही है।
सरकारें इसे प्रोत्साहित करती नजर आ रही हैं। यह असंवेदनशीलता संकट पैदा कर सकती है। विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों ने कोरोना की तीसरी लहर की संभावना जारी कर दी है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को राजनीति के बजाय स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति गंभीर होना चाहिए। अगर कोरोना के मामलों में वृद्धि होती है, तो खासकर बच्चे और वृद्धों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
मनु प्रताप सिंह शेखावत, तोपदड़ा, अजमेर
लापरवाही की भरपाई
‘लापरवाही के निशाने’ संपादकीय (7 दिसंबर) चिंतन-मनन योग्य है। नगालैंड में उग्रवाद से निबटने के लिए तैनात सेना के हाथों जो अघन्य अपराध हुआ, वह वाकई संवेदनशील घटना है। जवानों का अपने अनुमान से काम करना चौदह परिवारों के लिए मातम का विषय बन गया।
माना कि सेना को ऐसे क्षेत्रों में बहुत संवेदनशील रहने की जरूरत होती है, पता नहीं किस भेष में उग्रवादी अपने मकसद में कामयाब हो जाएं, मगर इतनी अनुभवहीनता ठीक नहीं कि आम आदमी और उग्रवादियों में फर्क न कर सके। इस घटना ने एक बार फिर चौकस निगरानी और अधिकतम सतर्कता बरतने की जरूरत रेखांकित की है। सरकार पीड़ित परिवार को उचित मदद और उनके भरण पोषण का जिम्मा ले, ताकि वहां के लोगों में सरकार और सुरक्षा बलों के प्रति अविश्वास न पनपे।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार मप्र