कर्ज के संकट में फंसे यस बैंक को उबारने के लिए पूंजी लगाने वाले फेडरल बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक ने महज दो सप्ताह के भीतर ही अपनी हिस्सेदारी कम कर दी थी। यस बैंक की ओर से स्टॉक एक्सचेंज की दी गई जानकारी में यह बात सामने आई है। डेटा के मुताबिक फेडरल बैंक हिस्सेदारी 17 मार्च को यस बैंक में 2.39 फीसदी की थी, जो 31 मार्च तक कम होते हुए महज 1.92 पर्सेंट ही रह गई। इसी तरह निजी सेक्टर के आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की हिस्सेदारी भी 1.99 पर्सेंट से घटकर 1.67 पर्सेंट ही रह गई। इसके अलावा कोटक महिंद्रा बैंक ने भी अपनी हिस्सेदारी को घटाते हुए 3.98 पर्सेंट की बजाय 3.61 पर्सेंट तक ही सीमित कर लिया। हालांकि यस बैंक को रिवाइव करने के लिए आगे आने वाले अन्य संस्थानों की हिस्सेदारी पहले की तरह ही बरकरार रह सकती है। भारतीय स्टेट बैंक की यस बैंक में सबसे ज्यादा 48.21 फीसदी की हिस्सेदारी है।
बता दें कि इसी साल 5 मार्च को भारतीय रिजर्व बैंक ने यस बैंक पर पाबंदियां लगा दी थीं। केंद्रीय बैंक की ओर से यस बैंक के बोर्ड को भंग कर दिया गया था और अपनी ओर से प्रशासक की नियुक्ति करते हुए कामकाज को नियंत्रण में ले लिया था। इसके बाद यस बैंक को फंसे हुए कर्ज के संकट से उबारने के लिए एसबीआई समेत कई दिग्गज बैंक आगे आए थे। तभी ज्यादातर बैंकों ने कम से कम तीन साल के लिए अपने निवेश के 75 फीसदी हिस्से को बरकरार रखने पर सहमति जताई थी। यस बैंक में निवेश करने वाले अन्य दिग्गज बैंकों की बात की जाए तो आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, बंधन बैंक और एचडीएफसी ने भी यस बैंक में निवेश किया है।
बैंकिंग सेक्टर के विश्लेषकों का कहना है कि यस बैंक के पुनर्गठन के चलते उसका भविष्य सुरक्षित हुआ है। गौरतलब है कि यस बैंक के संकट में घिरने के पीछे उसकी ओर से नियमों को ताक पर रख कर डिफॉल्टर कारोबारियों को लोन देने की बात सामने आई थी। रिलायंस ग्रुप के मुखिया अनिल अंबानी की कंपनियों पर ही यस बैंस का करीब 13,000 करोड़ रुपये का बकाया है। इसके अलावा वाधवन परिवार समेत कई अन्य डिफॉल्टर्स भी इस लिस्ट में शामिल हैं। बता दें कि यस बैंक के लोन स्कैम के मामलों की जांच खुद प्रवर्तन निदेशालय की ओर से की जा रही है।
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