5 Big Controversies related to ratan tata tenure: रतन टाटा ने साल 1991 में टाटा ग्रुप की बागडोर अपने हाथों में ली। टाटा को ब्रैंड बनाने में रतन नवल टाटा (Rtan Naval Tata) का योगदान अमूल्य रहा। 2012 में टाटा के चेयरमैन पद से रिटायर होने बाद तक कई ऐसे विवाद भी टाटा ग्रुप (Tata Group) से जुड़े। साइरस मिस्त्री, टाटा टेप लीक कांड, राडिया टेप, नस्ली वाडिया और सिंगूर-नैनो जैसे विवादों के चलते टाटा ग्रुप काफी चर्चा में रहा।
सिंगूर-नैनो विवाद
गुरुवार (10 अक्टूबर) को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने X (twitter) लिखा, ‘रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत के अग्रणी नेता और लोगों की भलाई करने वाले दानवीर थे। उनका निधन, भारतीय व्यापार जगत और समाज के लिए एक अपूर्णीय क्षति होगी।’ आपको बता दें कि ममता बनर्जी ही वह शख्स थीं जिनकी वजह से कई साल पहले टाटा ग्रुप को पश्चिम बंगाल से अपनी छोटी कार नैनो का प्रोजेक्ट हटाना पड़ा था। साल 2006 में लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने टाटा ग्रुप को सिंगूर में नैनो कार प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन भूमि अधिग्रहण विवादों में आ गया।
लेकिन साल 2007 में जब ममता बनर्जी सत्ता में आईं तो उन्होंने प्रदर्शन किया और नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गईं। इस विरोध-प्रदर्शन के खिलाफ जब पुलिस ने कार्रवाई की तो हिंसा भड़क गई। इसके बाद टाटा मोटर्स ने 2008 में पश्चिम बंगाल से नैनो के प्रोजेक्ट को हटाने का फैसला किया। इसके बाद गुजरात के सानंद में नैनो प्रोजेक्ट लगा। टाटा की ड्रीम कार के प्रोडक्शन में इस पूरे विवाद के चलते देरी हुई। इसका लॉन्च कुछ महीने तक टला। लेकिन बाद में लॉन्च के बाद सड़कों पर खूब नैनो दौड़ती दिखाई दी लेकिन ग्राहकों से मिले निगेटिव रिस्पॉन्स और कम डिमांड के चलते बाद में नैनो का प्रोडक्शन बंद हो गया।
साइरस मिस्त्री विवाद
2012 के मिड की बात है जब पल्लोनजी मिस्त्री ग्रुप के साइरस मिस्त्री जो टाटा संस में स्टेकहोल्डर थे, उन्हें एक सिलेक्शन पैनल ने टाटा ग्रुप का मुखिया चुना और दिसंबर में कार्यभार संभाला। लेकिन, इसके बाद चीजें खराब होनी शुरू हुईं और एक्सपेंशन व डाइवर्सिफिकेशन जैसे कई मुद्दे ऐसे थे जिन पर टाटा और मिस्त्री के बीच सहमति नहीं बनी। 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस के बोर्ड ने मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया।
इसके बाद मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की ओवरऑल फंक्शनिंग को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए और कॉरपोरेट गवर्नेंस का पूरी तरह अभाव बताया। टाटा ग्रुप ने मिस्त्री द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को पूरी तरह से नकार दिया। टाटा और मिस्त्री दोनों ने एक दूसरे पर जमकर आरोप लगाए और ये खबरें मीडिया में खूब छाई रहीं।
नस्ली वाडिया विवाद
बॉम्बे डाइंग के मुखिया नस्ली वाडिया और रतन टाटा कई दशकों तक करीबी दोस्त रहे। हालांकि, साल 2016 में साइरस मिस्त्री विवाद के समय टाटा-वाडिया के रिश्तों में खटास आ गई। साल 2016 में टाटा संस ने वाडिया को टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स के बोर्ड से हटा दिया। इसकी वजह थी कि साइरस मिस्त्री को टाटा संस से हटाए जाने के बाद वाडिया ने मिस्त्री को सपोर्ट किया था।
वाडिया ने टाटा, टाटा संस और दूसरे डायरेक्टर्स के खिलाफ सिविल और क्रिमिनल डिफेमेशन केस फाइल किया। और 3000 करोड़ रुपये मानहानि के लिए मांगे। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और वाडिया व रतन टाटा से इस मामले को कोर्ट के बाहर सुलझाने को कहा। वाडिया ने इसके बाद मानहानि के सभी मामले वापस ले लिए लेकिन उनके बीच आई रार इसके बाद ठीक नहीं हो सकी।
टाटा टेप विवाद
साल 1997 में The Indian Express ने उद्योगपति नस्ली वाडिया की रतन टाटा, कारोबारी केशुब महिंद्रा और फील्ड मार्शन सैम मानेकशॉ के साथ हुई टेलिफोनिक बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट छापी थी। यह बातचीत टाटा टी और असम सरकार के बीच चल रही समस्याओं के बारे में थी। असम सरकार ने Tata Tea पर आतंकी संगठन United Liberation Front of Asom (ULFA) को मदद करने के आरोप लगाए थे। टाटा इस मामले में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की मांग कर रहे थे। क्योंकि ULFA असम में कई टी कंपनियों से पैसों की उगाही कर रहा था। टाटा टी ने कहा था उन्हें ULFA कनेक्शन के बारे में जानकारी नहीं थी और दावा किया था कि कंपनी ने असम के लोगों के लिए मेडिकल हेल्प उपलब्ध कराने के लिए ही वित्तीय मदद दी थी।
राडिया टेप कांड
नवंबर 2010 में कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया और कई दूसरे उद्योगपतियों, राजनेताओं, पत्रकारों और नौकरशाहों के बीच हुई टेलिफोन पर बातचीत के टेप मीडिया में लीक हो गए। इन बातचीत में गलत व्यवहार के आरोप लगे और सबसे खास कि ये टेप कांड तब हुआ जब पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा के खिलाफ आरोप लगे थे। जो 2जी टेलिकॉम स्कैम मामले में मुख्य आरोपी थे। हालांकि, बाद में उन्हें दोषमुक्त करार दिया गया इन टेप में जिन उद्योगपतियों से राडिया की बात हुई थी, उनमें रतन टाटा भी थे। इन टेप के लीक होने के बाद टाटा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इस तरह के दूसरे टेप प्रसारित होने पर रोक लगाने की अपील की।