रमजान के दौरान रुह अफजा की कमी की खबरें आने के बाद यह 113 साल पुराना शरबत का ब्रांड एक बार फिर से चर्चा में है। सोशल मीडिया पर लोग रमजान के महीने में रुह अफजा की कमी की शिकायत कर रहे हैं। वहीं पाकिस्तानी हमदर्द कंपनी ने वाघा सीमा के जरिये रूह अफजा की सप्लाई करने की भी पेशकश की है।
इन सब के बीच हमर्दद कंपनी का कहना है कि जल्द ही रूह अफजा की आपूर्ति फिर से शुरू हो जाएगी। कंपनी का कहना था कि कच्चे सामान की कमी के कारण इसका उत्पादन कुछ समय के लिए रोक दिया गया था।
ऐसे हुई थी रूह अफजा की शुरुआतः साल 1906 में हाकिम अब्दुल माजिद ने पुरानी दिल्ली के लाल कुंआ में ‘हमदर्द’ क्लिनिक की शुरुआत की। बताया जाता है कि हकीम माजिद ने दिल्ली की लू और गर्मी से बचने के लिए इस रुह अफजा नाम के पेय की खोज की थी। 1907 में इसे शीशे की बोतल में बाजार में उतारा गया।
खास स्वाद से बनाई लोगों के बीच पहचानः अपने खास स्वाद के कारण यह लोगों को बीच काफी पसंद किया जाने लगा। इसमें पीसलेन, चिक्सर,यूरोपीय सफेद लिली जड़ी बूटियों के साथ ही संदल और नारंगी, नींबू, अनानास, सेब, जामुन व अन्य फलों का रस मिलाया जाता था।
इसके अलावा इसमें गुलाब, केवड़ा भी मिलाया जाता है। रुह अफजा के बढ़ती लोकप्रियता का आलम यह था कि हमदर्द दवाखाना को लोग रूह अफजा के नाम से जानने लगे थे। रूह अफजा दवा न रहकर लोगों को गर्मी से राहत देने वाला शरबत बन चुका था।
मिर्जा मोहम्मद ने डिजाइन किया था लोगोः आज रुह अफजा की बोतल पर हम जिस लोगो को देखते हैं उसे डिजाइन करने का श्रेय मिर्जा मोहम्मद नूर को जाता है। बताया जाता है कि रूह अफजा की बोतल पर लगने वाले स्टीकर उस समय बॉम्बे से छपकर आते थे।
रूह अफजा का नाम पंडित दया शंकर ‘नसीम’ की किताब ‘मसनवी गुलजार ए नसीम’ के एक पात्र से प्रभावित होकर रखा गया था।
1947 में देश के साथ रूह अफजा का भी बंटवाराः 1922 में हकीम अब्दुल माजिद की मौत के बाद उनकी पत्नी और दो बेटों ने कारोबार को संभाला। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ उस समय रूह अफजा भी दो हिस्सों में बंट गया। बंटवारे के बाद हाकिम अब्दुल माजिद के छोटे बेटेपाकिस्तान चले गए।
उन्होंने पाकिस्तान में जाकर कराची में ‘हमदर्द पाकिस्तान’ की शुरुआत की। इस तरह से भारत का रूह अफजा पाकिस्तान भी पहुंच गया। पाकिस्तान में आज भी यह जाना माना ब्रांड है।
बांग्लादेश में भी है मौजूदगीः सईद ने रूह अफजा का पूर्वी पाकिस्तान में भी पहुंचाया। साल 1971 में पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बांग्लादेश बना तो सईद ने वहां से अपना कारोबार नहीं समेटा। वहां के कर्मचारी ही इसके मालिक बन गए। इस तरह भारत से शुरू हुआ पेय बंटवारे के बावजदू आज भी तीनों देशों में बना हुआ है।
बड़े बेटे बने वक्फ के प्रमुखः रूह अफजा के संस्थापक हाकिम हाफिज अब्दलु माजिद के बड़े बेटे हमदर्द वक्फ के प्रमुख बने। 1964 में उन्होंने अपने दो बेटों अब्दुल मुईद और हम्माद अहमद को वक्फ का मुत्तवालिस (ट्रस्ट का सदस्य) बनाया। 1995 में वक्फ ने उनके पोते अब्दुल माजिद (अब्दुल मुईद के बड़े बेटे) और हामेद अहमद (हम्माद अहमद के बड़े बेटे) को ट्रस्ट का सदस्य बनाया।
कानून विवाद की शुरुआतः साल 2015 में विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब वक्फ प्रमुख अब्दुल मुईद का निधन हो गया। सवाल उठा कि अब्दुल मुईद की जगह वक्फ का प्रमुख कौन होगा। परिवार के सदस्यों द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में वक्फ का प्रमुख बनने के लिए कई याचिकाएं दाखिल की गईं।
हम्माद अहमद ने कहा कि वह परिवार के सबसे वरिष्ठ जीवित सदस्य हैं तो इस पद पर उनका हक है। इस बीच अब्दुल मुईद के बेटे अब्दुल माजिद ने एक ऑफिस का आदेश जारी कर खुद को इस पद का प्रमुख होने का दावा किया।
हम्माद अहमद के पक्ष में निर्णयः दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस संबंध में अगस्त 2017 में परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य हम्माद अहमद के पक्ष में निर्णय दिया। इस आदेश को हम्माद अहमद के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित होने व अन्य आधार पर चुनौती दी गई।
डिविजन बेंच ने नवंबर 2018 में एकल पीठ के फैसले को दरकिनार कर दिया। इसके बाद हम्माद अहमद अंतरिम राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अंतरिम आदेश के रूप में डिविजन बेंच के फैसले को खारिज करने का निर्णय लिया था। इस संबंध में हम्माद अहमद को हमदर्द के कामकाज को देखने की हरी झंडी मिल चुकी है।