पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए हैं, और अधिकांश लोग मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा कर रहे हैं, जिन्होंने भाजपा के सांप्रदायिक प्रचार को एक जोरदार झटका दिया (टीएमसी को पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा में कुल 294 सीटों में से 213 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 77) मिले। अब परेशान करने वाली खबर टीएमसी के गुंडों द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं और उनके घरों और कार्यालयों पर हमला करने, दुकानों में तोड़फोड़ करने आदि की आ रही है।

भाजपा पर अक्सर फासीवादी होने का आरोप लगाया जाता है। लेकिन ममता कोई कम फासीवादी नहीं हैं और आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। जो भी उनकी आलोचना करता है वह अक्सर जेल में बंद होता है। उदाहरणस्वरूप जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा, जिन्हें केवल इसलिए जेल में डाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने ममता के कुछ कार्टून सोशल मीडिया पर साझा किए थे।

या किसान शिलादित्य चौधरी, जिसने केवल ममता को यह बताया था कि उन्होंने अपने चुनावी वादों को नहीं पूरा किया। उन्हें माओवादी घोषित कर दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। ममता की कार जब सड़क पर जाती थी और लड़के जय श्री राम के नारे लगाते थे तो ममता पुलिस को उन को गिरफ्तार करने के आदेश दे देती थीं।

जब 2012 में कोलकाता के पार्क स्ट्रीट पर एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था तो ममता ने इसे ‘मनगढ़ंत घटना’ कहा था। लेकिन जब बहादुर पुलिस अधिकारी दमयंती सेन ने इसकी जांच करने पर जोर दिया, तो इस बात ने ममता को इतना क्रुद्ध किया कि उन्होंने तुरंत सेन को एक महत्वहीन पद पर स्थानांतरित कर दिया था।

सच्चाई यह है कि ममता एक तानाशाह प्रवृत्ति की घमंडी हैं, जिसके सिर में कुछ भी नहीं है। उनके पास जनता की भारी समस्याओं (ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव,  किसानों पर संकट,  भ्रष्टाचार, आसमान छूती दाम बढ़ोत्तरी, आदि ) को  हल करने का कोई विचार नहीं है। बंगालियों ने अभी हाल के चुनावों में उनके लिए मतदान किया क्योंकि उन्होंने सोचा कि जो भी हो वह अपनी हैं।

जबकि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो पश्चिम बंगाल वास्तव में दिल्ली से शासित होगा, और गैर बंगाली लोगों द्वारा जो बांग्ला  नहीं बोलते हैं। अब जब टीएमसी चुनाव जीत गई है तो उसके गुंडे बेखौफ हो गए हैं और पूरे पश्चिम बंगाल में उधम और हड़कंप मचाये  हैं। अब ‘खेला’ होगा।

(जस्टिस मार्कंडेय काटजू, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)