उद्भव शांडिल्य

भारत में तंबाकू से जुड़े सर्वेक्षणों के मुताबिक देश में इस्तेमाल होने वाले पूरे तंबाकू का अस्सी प्रतिशत उपभोग मुख्य रूप से गरीब, अशिक्षित, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों द्वारा किया जाता है। यह आंकड़ा अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के सर्वांगीण विकास के लिए चलाए जा रहे सरकारी योजनाओं की पोल खोलता है।

भारत युवाओं के संख्याबल और जनसांख्यिकीय विभाजन के कारण संभावनाओं का देश कहा जाता है। यहां की कुल जनसंख्या में अकेले बाईस प्रतिशत यानी लगभग 26.1 करोड़ की जनसंख्या सिर्फ अठारह से उनतीस साल के युवाओं की है, जो कि पड़ोसी देश पाकिस्तान की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। मगर तंबाकू और इससे संबंधित उत्पादों का इस्तेमाल भारत की संभावनाओं का गला घोंटता दिखाई पड़ रहा है।

‘ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे’ (गैट्स) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 26.7 करोड़ युवा, जिनकी उम्र पंद्रह वर्ष और उससे अधिक है तथा पूरी युवा जनसंख्या का 29 प्रतिशत है, तंबाकू उत्पादों का सेवन करता है। तंबाकू और इससे संबंधित उत्पादों के इस अंधाधुंध उपयोग ने भारत को विश्व में चीन (तीस करोड़) के बाद दूसरे सबसे बड़े तंबाकू उपभोक्ता देश की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर तंबाकू सेवन से सालाना लगभग अस्सी लाख लोगों की मृत्यु होती है, जिसमें भारत में अकेले साढ़े तेरह लाख लोग इसका शिकार होते हैं। भारत में पुरुषों और महिलाओं में होने वाले कैंसर का क्रमश: आधा और एक-चौथाई कैंसर तंबाकू और इससे निर्मित पदार्थों के सेवन से होता है।

अब तक के शोधों के मुताबिक तंबाकू में बेंजीन, निकोटीन, हाइड्रोजन सायनाइड, अल्डीहाइड, शीशा, आर्सेनिक, टार और कार्बन मोनो आक्साइड आदि जैसे सत्तर प्रकार के खतरनाक तत्त्व शामिल होते हैं, जिनका हमारे स्वास्थ्य पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत के राष्ट्रीय कैंसर पंजीकरण (एनसीआरआइ) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012-16 के बीच कैंसर के कुल मामलों में 27 प्रतिशत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तंबाकू से संबंधित थे।

तंबाकू शरीर के परिवहन तंत्र के संरक्षक हृदय को भी बहुत प्रभावित करता है, जिसके कारण कार्डियोवस्कुलर बीमारियां और दिल के दौरे की आशंका अधिक बढ़ जाती है। तंबाकू का प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर भी बहुत घातक होता है। यह हमारी कल्पनाशीलता, मानसिक चेतना और स्थिरता को भी प्रभावित करता है, जिसके कारण सुस्ती और पक्षाघात जैसी खतरनाक बीमारी के झटके भी आते हैं।

तंबाकू से प्रभावित होने वाले शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों में फेफड़ा भी शामिल है। तंबाकू का निरंतर उपयोग हमारे फेफड़ों की कार्यशैली को घटाता है। इससे फेफड़ों का कैंसर तथा ‘क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी’ बीमारी भी होती है। आधुनिक तकनीकी युग में ई-सिगरेट की मांग भी भविष्य में होने वाली एक गंभीर समस्या को इंगित करती है।

ई-सिगरेट मुख्य रूप से एक औजार है, जिसमें एक द्रव को एरोसोल बनाने के लिए गर्म किया जाता है, जिसे तंबाकू उपभोक्ता कश लगाने के लिए प्रयोग में लाते हैं। भले इस पर अभी शोध होने हैं और आंकड़े स्पष्ट नहीं हैं, पर बच्चों द्वारा इसका प्रयोग उनमें हृदय और फेफड़ों की बीमारी को बढ़ावा देता है। तंबाकू और इससे संबंधित उत्पादों ने देश के कई महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को भी अपने चंगुल में फांस लिया है।

मनाली, कसौल, शिमला, ऋषिकेश, हरिद्वार और बनारस जैसे महत्त्वपूर्ण भारतीय पर्यटन स्थलों पर बड़ी आसानी से लोग तंबाकू का सेवन करते मिल जाएंगे। इनमें विदेशी यात्रियों का प्रतिशत अधिक है और यह हमारे यहां के कमजोर तंबाकू कानूनों के क्रियान्वयन का परिचायक है। साथ ही धर्म की आड़ में तंबाकू का कालाबाजार अपने चरम पर पहुंच गया है।

भारत ने तंबाकू की भयावहता को बड़ी गंभीरता से लिया है और इसके लिए अनेक ठोस कदम भी उठाए हैं। भारत में तंबाकू नियंत्रण हेतु वर्ष 2001 में तंबाकू नियंत्रण अधिनियम पारित किया गया था। फिर वर्ष 2003 में ‘सिगरेट एवं तंबाकू उत्पाद अधिनियम’ पारित किया गया, जिसे ‘कोटपा’ भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिषेध तथा इसके व्यापार, वाणिज्यिक उत्पादन और वितरण का विनियमन करना था।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तंबाकू के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2003 में तंबाकू नियंत्रण पर डब्लूएचओ रूपरेखा समझौता पारित किया। यह समझौता मुख्यत: तंबाकू उत्पादों के अवैध व्यापार को समाप्त करने से संबंधित है। भारत इस समझौते में शामिल है तथा इसने 2016 में ग्रेटर नोएडा में इस प्रोटोकाल में शामिल पक्षों का एक सम्मेलन काप-7 भी आयोजित किया था।

तंबाकू नियंत्रण के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह पहला सामूहिक स्वास्थ्य समझौता है, जिसके अंतर्गत तंबाकू और इससे संबंधित उत्पाद बनाने के लिए अनुज्ञप्ति, यंत्र-समूह के लिए उचित उद्यम और सुरक्षा आदि शामिल है। इस समझौते का अनुच्छेद 13 तंबाकू के प्रचार, अनुच्छेद 15 तंबाकू का अवैध व्यापार और अनुच्छेद 16 तंबाकू उत्पादों का अवयस्कों को और उनके द्वारा विक्रय से संबधित है।

वर्ष 2007-08 में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत ने राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) भी चलाया, जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को मिला था। तंबाकू के उपभोग से बचने तथा इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2011 में भारत सरकार के 2009 की अधिसूचना में संशोधन प्रस्तुत करते हुए एक नियम बनाया, जिसमें तंबाकू उत्पादों पर चार नए चित्र चेतावनी को शामिल किया गया। इस नियम के तहत कंपनियों को अपने तंबाकू उत्पादों पर चार चित्रों के समूह में से किसी एक चित्र को उन उत्पादों पर लगाना अनिवार्य है। कुछ ऐसा ही नियम जीएचडब्लू (ग्राफिक हेल्थ वार्निंग) या आरए नंबर-10643 के रूप में फिलीपींस ने जुलाई 2014 में पारित किया था।

तंबाकू और इससे संबंधित उत्पादों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए भारतीय स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा डब्लूएचओ के सहयोग से ‘तंबाकू निवारण क्लिनिक’ की स्थापना एक अभूतपूर्व प्रयोग है। ऐसे क्लिनिक तंबाकू के स्वास्थ्य ह्रास परिणाम से जूझ रहे लोगों को वैज्ञानिक तरीके से तंबाकू छोड़ने में मदद करते हैं।

2003 में ‘सिगरेट एवं तंबाकू उत्पाद अधिनियम’ के प्रावधानों के उल्लंघन पर अंकुश लगाने हेतु राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण हेल्पलाइन की स्थापना भी एक अद्वितीय विधि है। सांख्यिकी आंकड़े बताते हैं कि इस हेल्पलाइन पर प्रतिमाह एक हजार से अधिक फोन आते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में उपभोग किए जाने वाले तंबाकू के लगभग 69 प्रतिशत पर कोई कर नहीं लगाया जाता। करों के माध्यम से भी तंबाकू की कालाबाजारी, अवैध व्यापार और संवर्धन को नियंत्रित किया जा सकता है। तंबाकू प्रभाव निरोध हेतु सिविल सोसायटी की भूमिका भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

भारत में तंबाकू से जुड़े सर्वेक्षणों के मुताबिक देश में इस्तेमाल होने वाले पूरे तंबाकू का अस्सी प्रतिशत उपभोग मुख्य रूप से गरीब, अशिक्षित, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों द्वारा किया जाता है। यह आंकड़ा अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के सर्वांगीण विकास के लिए चलाए जा रहे सरकारी योजनाओं की पोल खोलता है।

जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर तेंदू के पत्तों से चल रहे बीड़ी उद्योग में लगे लोगों को अन्य जंगली उत्पादों जैसे, शहद, लकड़ी और भोज्य साम्रग्री पर आधारित एक ‘जंगली उत्पाद विकास कार्यक्रम’ के अंतर्गत उद्योग में स्थानांतरित कर उन्हें वैकल्पिक रोजगार सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं, जिससे भारत में तंबाकू उत्पादन को कम किया जा सकता है।

ऐसे प्रयोग से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के क्रमश: प्रथम, नौवें और दसवें लक्ष्य जैसे शून्य गरीबी, उद्योग और नवाचार तथा असमानताओं में कमी को बढ़ावा दिया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर तंबाकू के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए युवा संसद और शौच मुक्ति के लिए आयोजित शौचालय संसद की भांति ‘तंबाकू संसद एवं तंबाकू पंचायत’ को भी आयोजित किया जा सकता है।