जब से कांग्रेस और उनके युवराज राहुल गांधी समेत वंशवादी राजनीति को भारत की जनता ने नकारा है, तब से एक राजनीतिक वर्ग भारत और भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने का हर संभव प्रयास करता है। भारत को दोहन तंत्र का अंग बनाने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन भी स्वाभाविक तौर पर ऐसे प्रचार अभियानों को बल प्रदान करते हैं। जॉर्ज सोरोस जैसे लोग और उनके प्रायोजन से संचालित टूल किट आए दिन प्रचारित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है। संवैधानिक संस्थाएं विलुप्त हो रही हैं। मीडिया की स्वतंत्रता छीन ली गई है, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को पंगु बना दिया गया है। निर्वाचन आयोग पक्षपाती चुनाव करवा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से चुनाव को मनचाहे ढंग से प्रभावित किया जा रहा है। भारत को लंगोटी पूंजीवाद का क्रीड़ा स्थल बना दिया गया है। ऐसे काल्पनिक आरोपों की लंबी फेहरिस्त है।
कुछ दिन पहले जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ब्रिटेन के दौरे पर गए तो वहां उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन को लोकतंत्र का संरक्षक करार देकर उनसे भारत में लोकतंत्र की बहाली के लिए हस्तक्षेप की अपील भी की। इन दिनों एक बार फिर राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर हैं और वहां भी उन्होंने एक बार फिर भारत और भारतीयता के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान को गति प्रदान करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से तमाम लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर फासीवादी लोगों को बैठा चुके हैं। लोकतंत्र की आए दिन हत्या की जा रही है। राहुल गांधी के बयान अभी तक सुर्खियों में थे ही तब तक पूर्व अभ्यास के अनुकूल ही पाकिस्तानी लाबी अमेरिका में भारत विरोधी अभियान में जुट गई।
बीते वर्षों में राहुल गांधी के भारत विरोधी बयानों का दुरुपयोग पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में भी कर चुका है। स्वाभाविक तौर पर इस बार भी एक पाकिस्तानी मूल की अमेरिकी पत्रकार अस्मा खालिद ने राहुल गांधी के बयानों के संदर्भ में भारतीय लोकतंत्र के पतन के बारे में अमेरिकी अधिकारियों से सवाल पूछा। सवाल पूछने का उद्देश्य स्पष्ट था यदि अमेरिकी अधिकारी राहुल गांधी के आरोपों को गंभीरता से लेकर किसी भी प्रकार का भारत विरोधी बयान देते हैं तो उससे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी अमेरिकी यात्रा में अपशकुन का अवसर होगा। पाकिस्तानी मूल के पत्रकार के इरादे पर अमेरिकी अधिकारियों के बयान ने पानी फेर दिया।
जॉन किर्बी अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास ‘व्हाइट हाउस’ के नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं। पाकिस्तानी ने भारतीय लोकतंत्र पर राहुल गांधी की टिप्पणी के संदर्भ में किर्बी को घेरना चाहा। उसकी घेराबंदी में फंसने की बजाए किर्बी ने ऐसा जवाब दिया जिसमें पाकिस्तानी इरादा तो धराशाई हुआ ही, साथ ही साथ राहुल गांधी के दुष्प्रचार अभियान पर भी करारा तमाचा लगा। किर्बी ने कहा “भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और जिसे भी कोई शक हो वो नई दिल्ली जाकर खुद इसे देख सकता है। मुझे उम्मीद है कि लोकतांत्रिक संस्थानों की मजबूती और सेहत चर्चा का विषय बना रहे। हम कभी इसमें शर्माते नहीं हैं और दोस्तों के बीच ये चलता रहता है। दुनिया में किसी के साथ भी हम अपनी चिंताओं को साझा कर सकते हैं। पीएम मोदी का अमेरिका दौरा गहरे और मजबूत दोस्ती एवं साझेदारी को आगे लेकर जाएगा।”
जॉन किर्बी ने कहा कि राष्ट्रपति जो बायडेन भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ विभिन्न मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार हैं। भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने वाले अकेले जॉन किर्बी ही नहीं हैं बल्कि अमेरिका के अन्य अधिकारियों ने भी जिस तरह के बयान दिए उससे सोरोस गिरोह के एजेंडे को चोट पहुंचना तय है। अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे को लेकर बयान दिया है। विभाग के प्रिंसिपल डिप्टी सेक्रेटरी वेदांत पटेल ने कहा कि भारत के साथ साझेदारी अमेरिका के सबसे बड़े रिश्तों में से एक है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था, कारोबार और सुरक्षा के क्षेत्र में अमेरिका-भारत के संबंध और मजबूत होंगे।
इसी तरह अमेरिकी सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भी लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा गया है कि उनके संबोधन में भारत के भविष्य को लेकर उनके विजन और दोनों देशों की चुनौतियों के बारे में पता चलेगा। सनद रहे कि आगामी 22 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिकी संसद के संयुक्त सदन सीनेट और हाउस आफ रेप्रेसेंटेटिव्स को भी संबोधित करेंगे। अमेरिका में किसी विदेशी अतिथि के लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होता है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी का ये छठवां अमेरिका दौरा होगा। कांग्रेसियों और सेकुलरों ने गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी को अमेरिकी वीजा लेने से भी उनके मुख्यमंत्रित्व काल में वंचित करने का षड्यंत्र रचा था।
2014 के चुनाव में कांग्रेस समेत तमाम सेकुलर दल यही तर्क देते थे कि नरेंद्र मोदी का विदेशी मामलात में अनुभव और अध्ययन ना के बराबर है। महाशक्ति अमेरिका संवैधानिक पद पर होने के बावजूद जिस व्यक्ति को वीजा देने के लिए राजी नहीं है वह व्यक्ति भारत को अंतरराष्ट्रीय मामलों में महत्व कैसे दिलाएगा? नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर आते ही जैसे विदेश यात्राओं का क्रम प्रारंभ किया तब उनके विरोधी कहने लगे कि इनका अधिकांश समय तो विदेश में ही बीत रहा है। जिस अमेरिका ने भारत के तथाकथित सेकुलरों के अभियान के चलते नरेंद्र मोदी को वीजा नहीं दिया था, उसी अमेरिका में बारंबार रॉकस्टार की तरह उनका स्वागत होना, विपक्षियों की छाती पर सांप लोटने का कारण तो बनता ही है।
चाहे बराक ओबामा का कार्यकाल रहा हो या डोनाल्ड ट्रंप का, नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्राध्यक्षों पर अपने व्यक्तित्व और भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। और अब अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन टोक्यो में जिस अंदाज में नरेंद्र मोदी से मिलते हैं और कहते हैं “आपका तो ऑटोग्राफ लेना पड़ेगा क्योंकि आपकी लोकप्रियता अमेरिका में इतनी ज्यादा है कि आपके सम्मान में आयोजित रात्रिभोज के कार्यक्रम में हर कोई आना चाहता है। मेरे पास तमाम लोग उस कार्यक्रम का पास पाने के लिए निवेदन कर रहे हैं।” तमाम विश्लेषकों का 2020 के बाद यह मानना था कि ह्यूस्टन के कार्यक्रम में जिस तरह नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक तरह का चुनावी अभियान कर दिया था उसके चलते बाइडेन, नरेंद्र मोदी को नापसंद करेंगे।
कांग्रेस के तमाम नेता बाइडेन के बदले रुख के चलते हैरान हैं। इससे उपजी हताशा का ही परिणाम है कि राहुल गांधी और उनकी मंडली यूरोप और अमेरिका की धरती पर हर संभव भारत और उसके लोकतंत्र को बदनाम करने का प्रयास करता है। किंतु समग्र विश्व, भारत के जीवंत लोकतंत्र, जिम्मेदार और सशक्त सामरिक सामर्थ्य और द्रुतगति से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था से अवगत है। इसलिए हर बार जॉर्ज सोरोस, पाकिस्तान और राहुल गांधी की मंडली को मोदी से मात खानी पड़ रही है।
(प्रेम शुक्ल, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)