राम चंद्र प्रसाद (आरसीपी) स‍िंंह भाजपा (बीजेपी) के हुए। इस बात की पूरी उम्‍मीद है क‍ि जदयू से लड़ाई में भाजपा आरसीपी को सीधे नीतीश के सामने खड़ा कर सकती है। इस उम्‍मीद के पीछे ठोस कारण हैं।  

आरसीपी ब‍िहार के उसी ज‍िले (नालंदा) के हैं जहां के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार हैं। दोनों की जात‍ि भी एक (ओबीसी कुर्मी) ही है। वह भले ही व्‍यापक जनाधार वाले नेता नहीं बन पाए, लेक‍िन करीब 12 साल नीतीश की करीबी और ‘कृपा’ के चलते वह ब‍िहार की राजनीत‍ि के मंझे हुए ख‍िलाड़ी जरूर बन गए हैं। संगठन सच‍िव के तौर पर उन्‍होंने सालों तक जदयू को चलाया है। जदयू के हर बड़े नेता से उनके संपर्क हैं। नीतीश कुमार से असंतुष्‍ट नेताओं से वह आसानी से संपर्क साध सकते हैं और उन्‍हें बीजेपी के खेमे में लाने में मददगार बन सकते हैं। 

आरसीपी का अपना व्‍यापक जनाधार भले नहीं हो, लेक‍िन बीजेपी के झंडे के साथ कम से कम नीतीश के इलाके (नालंदा) में कुर्मी-कोयरी (लव-कुश) वोट समीकरण को प्रभाव‍ित कर सकते हैं।

नीतीश पर हमला बोलने के ल‍िए आरसीपी की तरकश में ऐसे कई तीर हो सकते हैं, ज‍िनका वार गंभीर घाव कर सकता है।

आरसीपी का सफर 

आरसीपी 2010 तक कद्दावर आईएएस अफसर थे। 2010 में नेता बनने के ल‍िए नौकरी छोड़़ दी। वीआरएस ले ल‍िया। नीतीश कुमार ने जदयू से राज्‍यसभा भ‍िजवा द‍िया। 2016 में फ‍िर राज्‍यसभा सांसद बन गए। इस बीच, पार्टी में कद बढ़ता गया। नंबर 2 तक की हैस‍ियत में आ गए। 2020 में पार्टी अध्‍यक्ष बना द‍िए गए। 2021 में मोदी सरकार में मंत्री पद ले ल‍िया। बताया जाता है क‍ि आरसीपी ने नीतीश की सहम‍त‍ि के ब‍िना ही केंद्रीय मंत्री के ल‍िए अपना नाम भेज द‍िया था। यहीं से मामला गड़बड़ होने लगा। 2022 में जदयू ने राज्‍यसभा नहीं भ‍िजवाया। भ्रष्‍टाचार के आरोपों पर जवाब तलब भी कर ल‍िया। आरसीपी समझ गए अब यहां दाल नहीं गलने वाली। पहले जबान तल्‍ख क‍िए। बयानबाजी की। बाद में जदयू को बाय-बाय बोल द‍िया। बीजेपी से करीबी के संकेत देते रहे। 11 मई, 2023 को अंतत: औपचार‍िक रूप से बीजेपी के हो गए।

आरसीपी ने अगस्‍त 2022 में जदयू से इस्‍तीफा द‍िया था। उन पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगे। उन्‍होंने इसे ‘अपमान की कोश‍िश’ बता कर खार‍िज क‍िया। लेक‍िन, पार्टी ने 2013 से उनकी संपत्‍त‍ि का ब्‍योरा मांग ल‍िया। तब उन्‍होंने पार्टी ही छोड़ दी। तभी से समय-समय पर बीजेपी से करीबी के संकेत देते रहे थे।  

नीतीश को कैसे म‍िले थे आरसीपी 

आरसीपी से नीतीश पहली बार तब म‍िले थे जब वह तत्‍कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के न‍िजी सच‍िव थे। नालंदा के और कुर्मी होने के कारण दोनों के बीच संपर्क मजबूत हुआ। जब नीतीश कुमार केंद्र में रेल मंत्री बने तो आरसीपी को अपना स्‍पेशल सेक्रेटरी बनवाया। नवंबर, 2005 में जब नीतीश ब‍िहार के सीएम बने तो आरसीपी को भी ब‍िहार बुलवा ल‍िया। उन्‍हें अपना प्र‍िंंस‍िपल सेक्रेटरी बनाया। आरसीपी इतने पावरफुल थे क‍ि नौकरशाही में सीएम की आवाज आरसीपी ही माने जाने लगे। एक अफसर के तौर पर उनके काम से नीतीश बड़े प्रभाव‍ित थे। उन्‍होंने 2010 में उन्‍हें जदयू में लेकर राज्‍यसभा सांसद बनवा द‍िया।

लव-कुश समीकरण की काट सोच रही बीजेपी 

ब‍िहार में लव-कुश की आबादी 12 प्रतिशत है। नीतीश कुमार का यह मुख्‍य वोट बैंक है। भाजपा इसमें सेंधमारी के ल‍िए लगातार कदम उठा रही है। ब‍िहार में 2025 में व‍िधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले 2024 में लोकसभा चुनाव है। इससे पहले बीजेपी ने लव-कुश समीकरण की काट के तौर पर सम्राट चौधरी (कोयरी) को प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया है। चौधरी भी पहले जदयू में ही थे। नीतीश से अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा की भी भाजपा खेमे से करीबी की खबरें हैं। हो सकता है जल्‍द ही वह भी औपचार‍िक रूप से एनडीए के साथ आ जाएं। अम‍ित शाह से उनकी मुलाकात हो चुकी है। चुनाव (लोकसभा) में अभी थोड़ा वक्‍त है, लेक‍िन भाजपा जल्‍दी में है। नीतीश को भी उसी रफ्तार से मुकाबले की तैयारी करनी होगी।