इंडोनेशिया के मौलवियों के एक संगठन ने कोविड-19 की वैक्सीन के बारे में क्या कह दिया कि सारी दुनिया में बहस छिड़ गई। उसने कहा कि कोविड की रोकथाम के लिए बनी वैक्सीन हराम है क्योंकि इसमें कहीं पर सूअर की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है। मामला हलाल से हराम तक जा पहुंचा है। ध्यान रहे कि इंडोनेशिया में कोरोना वायरस से 10,000 लोग मर गए।

मलेशिया में भी कुछ मुस्लिम संगठन इस पर आवाज़ उठा रहे हैं और एक बार फिर हलाल बनाम हराम का मुद्दा सिर उठाए खड़ा हो गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में हैं लेकिन सौभाग्यवश यह बात यहां अभी तक ज़ोर नहीं पकड़ पाई है, सिर्फ रज़ा फाउंडेशन ने यह मामला उठाया है। दरअसल वैक्सीन को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सूअर की चर्बी या मांस का इस्तेमाल जिलेटिन बनाने में इस्तेमाल होता है जो पहले किसी समय आइसक्रीम में भी होता था।

कई तरह के ब्यूटी प्रॉडक्ट में भी इसका इस्तेमाल होता था। अरब देशों में भी इन उत्पादों की काफी खपत थी लेकिन जब यह बात उठी तो उन कंपनियों ने इसमें सुधार किया। अब कुछ कट्टरपंथी इस बात को अगर उठा रहे हैं तो इससे आगे चलकर समस्या खड़ी हो सकती है। लेकिन उससे भी बड़ा खतरा सोशल मीडिया से है जिस पर अभी चर्चा शुरू हो गई है। यह खतरनाक प्रवृति है क्योंकि सोशल मीडिया व्यवधान पैदा करने वाला प्लेटफॉर्म है जो किसी भी अच्छे काम पर तुरंत गर्त डाल देता है। इंडोनेशिया और मलेशिया के कुछ मुस्लिम संगठन चीन में बनने वाले वैक्सीन सिनोवैक के हलाल उत्पाद होने की गारंटी मांग रहे हैं।

यह वैक्सीन जल्दी ही बाज़ार में आने वाला है। कंपनी ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया कि यह प्रॉडक्ट हलाल है या नहीं और इससे भ्रम फैल रहा है। वैसे चीनी कंपनियां कभी भी पब्लिक प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया या उसमें डाले जाने वाले तत्वों के बारे में कभी नहीं बताती हैं। उसने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वैक्सीन निर्माण में सूअर के मांस या हड़्डियों या उसके डीएनए का इस्तेमाल किया गया है। मलेशिया ने तो सिनोवैक बायोटेक के अलावा फाइज़र से भी यह मांग की है कि वह इसके हलाल होने की गारंटी दे।

इस मामले ने अभी तूल नहीं पकड़ा है लेकिन आगे कट्टरपंथी क्या करेंगे इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि कट्टर यहूदी भी इस पर सवाल उठा रहे हैं कि यह हलाल नहीं है। उनके लिए भी सूअर हराम है और वे उससे दूर रहते हैं। इससे एक विवाद पैदा हो गया है। इस्लामी देश पाकिस्तान में भी कट्टरपंथी विचारधारा के कुछ नेता इसका विरोध कर रहे हैं, हालांकि बहुमत इसके पक्ष में है। यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान में पोलियो की दवा पिलाने वाले कई स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कट्टरपंथियों द्वारा गोली मारकर हत्या की जा चुकी है।

भारत में भी पोलियो की खुराक के खिलाफ कुछ मज़हबी ताकतों ने आवाज़ उठाई थी लेकिन बाद में वे इसके लिए तैयार हो गए थे और यह अभियान सफल रहा। क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर लेकिन इस्लामिक विद्वानों का कहना है कि इस तरह का मुद्दा उठाना गलत है। मनुष्य को जान बचाने के लिए वह सभी प्रयास करना चाहिए जो जरूरी हैं। जाने-माने मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने साफ कहा है कि इस्लाम में जान की हिफाजत सबसे जरूरी है।

इतना ही इस्लाम में सुनी- सुनाई बातों पर फैसला लेना नाजायज है। बगैर किसी जांच के किसी चीज को हराम या हलाल कैसे कहा जा सकता है। जो लोग वैक्सीन को हराम बता रहे हैं वे पहले स्पष्ट करें कि उन्होंने क्या किसी डॉक्टर से जानकारी ली है। पैगंबर साहब ने दवा के जरिये इलाज कराने का हुक्म दिया है।

मौलाना सुफियान निजामी ने कहा कि हर वो मुसलमान जो इस्लाम को मानता है और उसके नियमों का पालन करता है, उसे इस बात को मानना पड़ेगा जिसमें कहा गया है कि जान की हिफाज़त करना और उसे बचाना सबसे पहली प्राथमिकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर जान बचानी हो तो कोई दवा जिसमें गैर इस्लामिक चीजें भी हों तो उसका इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

इसी तरह कुछ अन्य विद्वानों ने अपनी राय रखी है लेकिन मुंबई की रज़ा एकेडमी ने तो इसे लेकर फतवा जारी किया है कि पहले जब तक मेडिकल विशेषज्ञ और मुफ्ती इसकी इजाजत नहीं देते तब तक मुसलमान इसका इस्तेमाल न करें। लेकिन इंग्लैंड के एक इस्लामी विद्वानों के संगठन ने फाइजर की वैक्सीन को अनुमति दे दी है। उनका कहना है कि यह इस्लामी कानूनों के तहत ही है। उधर इस्राइल के प्रमुख रब्बी असर वीस ने भी अपने समर्थकों से कहा है कि उन्हें यह वैक्सीन ले लेना चाहिए।

एक अन्य रब्बी ने कहा है कि सूअर का मांस खाना हराम है लेकिन इंजेक्शन के जरिये दवा के रूप में इसे लिया जा सकता है। क्या कहते हैं डॉक्टर देश-विदेश के डॉकटर इस बात पर सहमत हैं कि कोरोना वैक्सीन में कुछ भी गलत नहीं मिला है और न ही इसमें कोई गलत मिलावट हुई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक और केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव रहे डॉकटर वीएम कटोच ने कहा कि लोगों को पहले यह समझना चाहिए कि यह वैक्सीन कैसे काम करता है।

उन्होंने कहा कि इसके लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि यह वैक्सीन एक प्रभावी टीका है जो किसी भी संक्रामक बीमारी को रोकने में महतवपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होने यह भी कहा कि यह डर निराधार है कि यह सुरक्षित नहीं है। वैज्ञानिकों ने निश्चित रूप से टीकों की सुरक्षा की जांच के लिए सभी जरूरी मानकों का उपयोग किया होगा और तभी तो इसका विकास हुआ होगा। डॉकटर कटोच ने यह भी कहा कि यह धारणा गलत है कि वैक्सीन लगा लेने के बाद मास्क पहनने की जरूरत नहीं होगी। दरअसल मास्क का इस्तेमाल करके ही हम इस बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं।

अब पूरी दुनिया में वैक्सीन लगाने की तैयारी हो रही है और सभी देश जल्दी से जल्दी इसे लागू करना चाहते हैं। इसे बनाने में कंपनियों और विभिन्न राष्ट्रों ने अरबों डॉलर खर्च किए हैं। उन्होंने पूरी तरह से सुरक्षित वैज्ञानिक फॉर्मूलों का सहारा लिया है। तीन बड़ी कंपनियों फाइज़र, मॉडर्ना और ऐस्ट्राजेनेका ने विज्ञप्ति जारी करके कहा है कि इस वैक्सीन में किसी भी तरह से सूअर का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

लेकिन ऐसे में अगर विघ्नसंतोषी तत्वों ने इसके खिलाफ फतवा या ऐसे फरमान जारी करना शुरू किया तो आने वाले समय में विकट परिस्थितियां खड़ी हो जाएंगी। इस तरह की हरकत से वह श्रृंखला नहीं बन पाएगी जो वैक्सीन देने के बाद जरूरी होती है। इस मामले में सभी को समझदारी से काम लेने की जरूरत है और इस मज़हब से जोड़ना उचित नहीं होगा। यह मानवता की भावना के खिलाफ होगा। सभी को सामने आकर इस तरह की ताकतों के खिलाफ एकजुटता दिखानी होगी।