‘अपना चेहरा तो हमको नजर नहीं आता आईना दूसरों को दिखाने लगे हैं हम कुछ इस तरह से खतरा अंधेरों का बढ़ गया अब तो चिराग दिन में जलाने लगे हैं हम’
संसदीय लोकतंत्र के शरीर में संवाद यानी बहस हृदय की तरह होता है। बहस का जरिया विपक्ष ही बनता है। यह संसद उन 146 सीटों की जनता की भी है जिन्होंने मौजूदा सत्ता के खिलाफ वोट दिया था और जिनके सांसद निलंबित कर दिए गए। दसवीं तक के नागरिक-शास्त्र की किताब को ही ठीक से पढ़ने वाले समझ सकते हैं कि लोकतांत्रिक राजनीति-शास्त्र में सत्ता की पीठ पर सहिष्णुता की जिम्मेदारी का बोझ होता है। सत्ता को समझने के लिए स्कूल में बच्चे ‘बाल संसद’ लगाते हैं। बेबाक बोल की संसद से अपील है, लोकतंत्र को समझने के लिए वहां स्कूल की कक्षाएं लगाई जाएं ताकि संवाद के इस मंच को एकालाप से बचाया जाए।
सुखप्रीत की बेटी जसप्रीत को स्कूल में विज्ञान का माडल दिखाना है। जसप्रीत एक मेहनती व मेधावी विद्यार्थी है और स्कूल की ‘हेड गर्ल’ है। सुखप्रीत जब बेटी की प्रदर्शनी देखने स्कूल पहुंचती है तो पाती है कि उसकी बेटी कक्षा के बाहर अपनी सहपाठी को सजा दे रही है। वह लड़की खास दिन के हिसाब से स्कूल की वर्दी पहन कर नहीं आई है तो ‘हेड गर्ल’ उसे अपनी शक्ति के हिसाब से शासित करना चाहती है।
सुखप्रीत अपनी बेटी को समझाती है कि सहपाठी के साथ इतनी कठोरता ठीक नहीं है। इस तरह तो वह अपने लिए दुश्मन तैयार कर रही है। कल जब उसके साथ कुछ होगा तो स्कूल में कोई भी उसके लिए खड़ा नहीं होगा। क्योंकि सब यही याद रखेंगे कि ‘हेड गर्ल’ बनते ही जसप्रीत ने सहपाठियों पर शक्ति प्रदर्शन किया था। कोई उसका दोस्त नहीं होगा।
पिछले दिनों आई फिल्म ‘सुखी’ के इस दृश्य के बहाने स्कूल बनाम संसद की बात करते हैं। मध्य चीन में लंदन जितना बड़ा शहर है वुहान। चीन के इस कारोबारी शहर में फिल्म निर्माता विजुन चेन एक प्रयोग करते हैं। इसे वे लोकतंत्र के लिए प्रयोग कहते हैं। इस प्रयोग के तहत ‘एवरग्रीन’ प्राथमिक स्कूल के तीसरे दर्जे में ‘क्लास मानीटर’ चुनने के लिए चुनाव प्रक्रिया का एलान होता है।
एक आठ साल का बच्चा जो ‘मानीटर’ चुना जाता है तो उसके पीछे प्रभावी अभिभावकों और शिक्षकों की क्या भूमिका होती है, यह भी लोकतंत्र के एक पहलू को उजागर करता है। प्राथमिक स्कूल में मानीटर चुनने के जरिए चेन का मकसद यह दिखाना था कि वैश्विक मूल्य का लोकतंत्र जब चीन में प्रवेश करेगा तो उसका चेहरा कैसा होगा।
आदर्श रूप में लोकतंत्र को अंतिम जन के लिए प्रतिबद्ध माना जाता है। लोकतंत्र के साथ विडंबना रही है कि जिस बेआवाज की वह आवाज बनता है वह अपने से कमजोर की आवाज को सुनने से इनकार करने लगता है। कमजोर की आवाज उसे अपनी शक्ति में खलल पैदा करती सी लगती है। संसद पर बात करने के लिए स्कूल से उपयुक्त और कोई बिंब नहीं सूझा।
अभी फिजा में सबसे ज्यादा गूंजने वाला शब्द लोकतंत्र है। स्कूलों में पढ़ाया जाता है लोकतंत्र। स्कूलों की पसंदीदा गतिविधि होती है ‘बाल संसद’। देश का हर नागरिक जो स्कूल का विद्यार्थी रहा है उसके पास वाद-विवाद की सुनहरी यादें होती हैं। या तो वक्ता के रूप में या श्रोता के रूप में। स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता क्यों होती है? ताकि विद्यार्थी पक्ष और विपक्ष दोनों को सुनने का प्रशिक्षण ले सकें। स्कूल के पाठ्यक्रम में वाद-विवाद का मकसद देश के संसद के लिए भावी नेता तैयार करना होता है।
लेकिन, अभी जो संसद में हो रहा है उसे देख कर लगता है कि स्कूलों में वाद-विवाद प्रतियोगिता खत्म कर एकालाप का प्रशिक्षण शुरू कर दिया जाए। सिर्फ एक ही व्यक्ति अपनी बात बोले और दूसरे की न सुने। एकालाप में भी एक ही बात की दुहाई दी जाए-लोकतंत्र।आज पक्ष, विपक्ष और मीडिया तीनों ‘लोकतंत्र’ को बारंबार दुहरा रहे हैं। कुछ शब्द, महज शब्द नहीं होते हैं।
लोकतंत्र एक ऐसा ही शब्द है जिसकी पीठ पर जिम्मेदारी का बोझ है। इसकी पीठ पर है इतिहास का संघर्ष, इतिहास का सबक। दिशा-सूचक यंत्र की खोज के सहारे समुद्रों में उतरे मजबूत नाव और साम्राज्यवाद का विस्तार। इस दुनिया की कहानी आप शुरू जहां से भी कीजिए, लोकतंत्र पर आकर ठहर जाती है।
सत्ता के सारे रूपों को आजमाकर निकाला गया अब तक का सबसे खूबसूरत ढांचा है लोकतंत्र। लोकतंत्र के ढांचे की बुनियाद में है सहिष्णुता। यानी बर्दाश्त करने की क्षमता। अपनी पसंद के विपरीत लोगों की जगह का भी अतिक्रमण नहीं करना है सहिष्णुता। सत्ता के साथ सहिष्णुता की संधि होकर ही बना है लोकतंत्र का ढांचा।
भारत की संसद की नई इमारत में जो ‘ऐतिहासिक’ हो चुका है लोकतंत्र के इतिहास के किताब में एक नकारात्मक अध्याय लिखेगा। यह ‘कीर्तिमान’ लोकतंत्र को लेकर हमारे मान में कमी करेगा। कुछ युवाओं ने संसद भवन की सुरक्षा घेरे को तोड़ा और दावा किया कि उनका मकसद बेरोजगारी पर ध्यान दिलाना था। विपक्ष इस मसले पर सत्ता पक्ष से चर्चा चाहता था जिसके एवज में भयावह आंकड़े सामने आने लगे।
एक दिन में 45, 90 तो कुल 146 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। पहले दिन विपक्ष के इतने सांसदों को निकालने की आलोचना हुई तो दूसरे दिन और सांसदों को निकाला गया जिसकी उससे ज्यादा आलोचना हुई तो तीसरे दिन और सांसदों को निलंबित कर दिया गया।
सरकार 146 विपक्षी सांसदों के निलंबन के साथ जो नया कीर्तिमान बना रही है उसे आगे कैसे देखा जाएगा? आपने ‘प्रचंड’ बहुमत हासिल किया है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप सहिष्णुता के उलट विरोध के प्रति बर्बर हो जाएं। आरोप है कि आप संसद के मंच पर अपनी आवाज के सिवा किसी और की आवाज गूंजने ही नहीं देना चाहते हैं। चर्चा से बचने और विपक्ष की आवाज को रोकने के लिए आप अध्यादेश प्रेमी हो गए हैं। किसी भी संवेदनशील मुद्दे को आप संसदीय समिति में चर्चा के लिए नहीं भेजना चाहते हैं।
‘सुरक्षा’ और हर तरह की सुरक्षा आपका ही केंद्रीय मुद्दा था। लेकिन, विपक्ष को लेकर जिस तरह का आपका व्यवहार है तो यह काल्पनिक सवाल पूछा ही जा सकता है कि अगर प्रदर्शनकारी युवाओं की आगंतुक पर्ची पर विपक्षी दल के किसी नेता के दस्तखत होते तो क्या होता? विपक्ष का वह नेता, उसका पूरा परिवार और पूरी पार्टी देश के दुश्मन करार दिए जाते।
हर जांच एजंसी उसके घर दस्तक दे चुकी होती। या मान लिया जाए कि महुआ मोइत्रा को संसद से बर्खास्त कर देश की सुरक्षा पर हर खतरा मिट गया है और सत्ता पक्ष के सांसद के बारे में सवाल कर देना ही देश को खतरे में ले आना है। चूंकि आप प्रचंड बहुमत से जीते हैं तो आपका हर काम देश-हित में ही होगा।
लोकतंत्र सिर्फ उतनी सीटों का नहीं होता है, जो सत्ता पक्ष ने जीती है। लोकतंत्र उन 146 सीटों का भी है जिन सांसदों को निलंबित कर दिया गया है। विपक्ष के सीटों की संख्या देखिए तो 35 से 40 फीसद जनता ने उन्हें चुना है। 146 सांसदों को निलंबित कर आप देश की संसद से बड़ी संख्या में जनता को भी निलंबित कर देते हैं।
देश के लोकतंत्र पर सिर्फ सत्ता पक्ष को वोट देने वाली जनता का हक नहीं है, उनका भी हक है जो संसद में बैठने की व्यवस्था का गलियारा बनाती है। भारत के संविधान में पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसदों के बराबर संवैधानिक अधिकार हैं। लोकतंत्र की शब्दावली में विपक्ष को पक्ष से ज्यादा पवित्र माना गया है।
अगर आपके पास शाही गाड़ी है और आप महंगा टोल टैक्स देकर किसी राजमार्ग पर उच्च गति से जा रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आपको अपने अगल-बगल चल रही छोटी गाड़ियों को कुचल देने का अधिकार मिल गया है। राजमार्ग पर छोटी व बड़ी दोनों गाड़ियों के लिए एक समान नियम होता है-कृपया गति सीमा का ध्यान रखें। सत्ता पक्ष की जीत की गाड़ी जिस तरह से गति सीमा की बेपरवाही कर रही है वह न सिर्फ उसके लिए बल्कि उस राह पर चल रही सभी गाड़ियों के लिए कोई हादसा आमंत्रित कर सकती है।
संसद की नई इमारत को भी लोकतंत्र की हर इमारत की तरह सहिष्णुता की शरण-स्थली बने रहने देना चाहिए। आज के दौर में सत्ता पक्ष को अपना एकालाप अच्छा लग रहा होगा। प्रचंड बहुमत के बीच भी अगर आप कमजोर आवाजों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तो यह आपके आगे की राजनीतिक सेहत यानी श्रवण सहिष्णुता के लिए बिलकुल अच्छा नहीं है। देश की संसद से इतनी बड़ी संख्या में सांसदों का निलंबन कर आप स्कूलों के उन बच्चों को निलंबित कर रहे हैं जो वाद-विवाद में प्रस्तुत विषय के खिलाफ बोलने का साहस करते हैं।