जब कोलकाता में भाजपा बलात्कार व हत्या के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रही है, तब बृजभूषण शरण सिंह विनेश फोगाट के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। बृजभूषण लगातार पहलवानों के आंदोलन को लज्जित करने की कोशिश कर रहे, अमर्यादित टिप्पणी कर रहे और भाजपा उन्हें इसकी छूट देती जा रही है। ऐसे में बृजभूषण की आंदोलन को लेकर समझ के तहत कहा जा सकता है कि कोलकाता का आंदोलन भाजपा सिर्फ ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने के लिए कर रही है। भाजपा ऐसे नेता को आंदोलनकारियों को खारिज करने की, स्त्री अस्मिता का उपहास उड़ाने की छूट देती रहेगी तो वह दिन भी आ ही सकता है जब वह विपक्ष के रूप में पुलिस से घसीटी जाए, लाठियां खाए। जब स्कूलों में बच्चों को अच्छी छुअन, खराब छुअन के बारे में पढ़ाया जा रहा है तो एक आरोपी टीवी पर सरेआम हंसते हुए कह रहा कि अब कहीं उन नेता पर भी न इल्जाम लगा दे। ‘खराब छुअन’ के आरोप को लेकर टीवी पर हंसता आरोपी और कोलकाता में बलात्कार के खिलाफ आंदोलन? इस विडंबना पर बेबाक बोल।
मोहनदास करमचंद गांधी ने आजादी के आंदोलन से पूरे देश को जोड़ कर ‘करो या मरो’ का नारा इसलिए दिया क्योंकि वे चाहते थे कि देश उन्हें ‘महात्मा’ कह कर बुलाए। जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजी हुकूमत में जेल में लंबा समय इसलिए बिताया क्योंकि उन्हें आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनना था। विनायक दामोदर सावरकर अंडमान में काला पानी की सजा के बीच यह सोच कर मुदित होते थे कि यह जुल्म इसलिए सहन कर रहा हूं क्योंकि आधुनिक पोर्ट ब्लेयर के हवाईअड्डे का नाम मुझ पर रखा जाएगा जहां मेरी विशालकाय मूर्ति होगी।
राजनीति और पहलवान: आंदोलन से सियासत तक का सफर!
ये हास्यास्पद, आपत्तिजनक, इतिहास विरोधी उदाहरण एक त्रासदी से उपजे हैं। पहलवान विनेश फोगाट के कांग्रेस में शामिल होते ही यौन उत्पीड़न का आरोपी हर जगह साक्षात्कार देते हुए एक पूरे आंदोलन को खारिज कर रहा है। विनेश के कांग्रेस में शामिल होने का मतलब एक आरोपी को पूरी तरह ‘क्लीन चिट’ मिलना कैसे हो सकता है? बृजभूषण शरण के मुताबिक विनेश फोगाट ने अन्य पहलवानों के साथ दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंदोलन इसलिए किया था क्योंकि उन्हें कांग्रेस में शामिल होना था। भाजपा की विचारधारा पर चमकते इस भूषण से सवाल है कि देश में कौन सा ऐसा सशक्त नेता है जो आंदोलन की उपज नहीं है? भारतीय जनता पार्टी की अग्रिम कतार में खड़े नेता जेपी आंदोलन की उपज रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर आंदोलन से लेकर, कश्मीर में धारा-370 खत्म करने के आंदोलन के कर्त्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता रहे तो इसलिए कि वे देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे?
बृजभूषण के सिद्धांत और भाजपा की राजनीति का नया रंग!
कांग्रेस के पक्ष रहते देश के जितने भी बड़े नेता हुए वे या तो जेपी आंदोलन की उपज थे या फिर राम-मंदिर आंदोलन के। इसके बाद जिस आंदोलन ने पूरे देश को एकजुट किया वह था अण्णा आंदोलन जिसके उत्पाद में अरविंद केजरीवाल मिले व केंद्र में प्रचंड बहुमत से भाजपा की सरकार बनी। बृजभूषण शरण सिंह के सिद्धांत के तहत अण्णा आंदोलन कांग्रेस की सरकार को गिराने के लिए भाजपा की साजिश रही होगी क्योंकि उनके हिसाब से इस आंदोलन में भी जनता की भूमिका नगण्य है। भाजपा ने कंगना रनौत को इसलिए खारिज किया क्योंकि उन्होंने किसान आंदोलन को लज्जित करने की कोशिश की थी। अभी पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में बलात्कार व हत्या के विरोध में आंदोलन चल रहा है। तो क्या भाजपा वहां इसलिए आंदोलन का समर्थन कर रही है कि वह ममता बनर्जी को खारिज कर बंगाल की सत्ता हथियाना चाहती है? यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के हिसाब से तो कोलकाता के आंदोलन में भाजपा की भूमिका की यही छवि बनती है।
कोलकाता से उपजे राष्ट्रीय गुस्से के संदर्भ में गंभीर बात यह है कि यौन उत्पीड़न के आरोपी बढ़-चढ़ कर अपना बाहुबल दिखाते हुए यौन उत्पीड़न के आरोप को लेकर हुए आंदोलन का मजाक उड़ा रहे हैं। सरेआम टीवी चैनल पर जिस तरह की भाषा बोल रहा है वह भी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। संबंधित संस्थाओं को तो इसका संज्ञान लेना चाहिए। बृजभूषण विनेश फोगाट को लेकर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं वही काफी है उन्हें एक राजनेता के तौर पर खारिज करने के लिए। अभी जब वे बेदाग नहीं हैं तो यौन उत्पीड़न के आरोप को लेकर हुए आंदोलन को लज्जित करती उनकी वाणी पर भाजपा लगाम क्यों नहीं लगा रही? दिल्ली में यौन उत्पीड़न के आरोपी का ऐसा समर्थन और कोलकाता में बलात्कार के खिलाफ आंदोलन?
बंगाल के मामले में ममता बनर्जी को तृणमूल के नेता भी बुरी तरह से घेर रहे हैं। जवाहर सरकार पार्टी छोड़ कर पूरी तरह सवालतलब हैं। वहां बलात्कार को लेकर कड़े कानून बन चुके हैं। ऐसे कानून कितने प्रभावी होंगे जब एक यौन उत्पीड़न का आरोपी सरेआम स्त्री के लगाए आरोपों और आंदोलन के लिए उसे लज्जित करे? पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट जब सौ ग्राम वजन के कारण पदक से चूक गई थीं तब खुद प्रधानमंत्री ने उन्हें विजेता कहा था। पूरा देश विनेश के साथ खड़ा हो गया। जिस तरह दिल्ली की सड़कों पर घसीटे जाने के बाद विनेश ने पेरिस में अपना दमखम दिखाया था उनकी हस्ती के आगे सब नतमस्तक थे।विनेश पेरिस से ही पहलवानी से संन्यास का एलान कर लौटी थीं। दिल्ली हवाईअड्डे से गृह-प्रदेश तक के रास्ते में विनेश का जो अभूतपूर्व स्वागत हुआ वह कांग्रेस की मेहरबानी से नहीं हो सकता था। वह स्वागत उस आंदोलन का अर्जित था जो उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर किया था।
आंदोलन का हासिल क्या होगा यह तो उसे शुरू करनेवाला भी नहीं जान सकता है। लाला लाजपत राय ‘साइमन कशीमन’ के खिलाफ आंदोलन करने के लिए इसलिए नहीं गए थे कि उन्हें ‘पंजाब केसरी’ कहा जाएगा। एक आंदोलनकारी यह नहीं जानता कि वह आंदोलन स्थल से कैसे वापस आएगा या आएगा भी नहीं। अंग्रेजों की लाठियों से मिले जख्म के बाद लाला लाजपत राय शहीद हो गए। लाला लाजपत राय की शहादत का बदला लेने के लिए निकले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव। उन्होंने जेम्स सांडर्स की स्काट समझ कर हत्या कर दी। यह होती है आंदोलन की भावना जिसमें त्याग के अलावा कुछ भी निश्चित नहीं होता। लाला लाजपत राय के शरीर पर लगी लाठियां, सांडर्स के सीने में उतारी गई बदले की गोलियां, ‘बहरों’ को सुनाने के लिए किए गए धमाके और भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी। लाला लाजपत राय से लेकर भगत सिंह तक के लिए आंदोलन कोई फसल साबित नहीं हुआ था जिसे वो अपनी इच्छानुसार काटते।
हर आंदोलन जनता का होता है, सत्ता के खिलाफ विपक्ष का होता है। आंदोलनकारियों को यह नहीं पता होता कि कुछ देर बाद आंसू गैस चलेगी, पानी के पैर उखाड़ते फव्वारे या लाठियां चलेगी। आंदोलनकारियों के खिलाफ एक ही चीज होती है जिससे सत्ता डरती है, वह है जनता के बीच बनी साख। जनता जितना आंदोलन का समर्थन करती है सत्ता उसके दमन में उतना ही पीछे हटती है। आंदोलन और दमन की इस खाई को भूल अगर हम एक समय के बाद चोटी पर बैठे आंदोलनकारी को लज्जित करने की कोशिश करेंगे तो जनता आपको उस खाई में फेक देगी जिसे आपने दमन के लिए खोदा था।
ममता बनर्जी जब कोलकाता में बलात्कार व हत्या के बाद ‘इंसाफ’ की मांग के लिए सड़क पर उतरीं तो हजारों की ‘सरकारी भीड़’ देख कर पूरे देश की जनता चिढ़ गई। आंदोलन हमेशा विपक्ष का ही होता है। अभी भाजपा वहां विपक्ष है तो उसके आंदोलन की साख है। अब भाजपा के नेता सिर्फ कोलकाता के आंदोलन को आंदोलन और बाकी जगहों के प्रदर्शन को कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश कहेंगे तो जल्दी ही फिर से जनता को जनार्दन के रूप में देखने की नौबत आ सकती है।
सत्ता के दबदबे से जुड़े बृजभूषण सिंह (मैं नहीं, मेरा बेटा सही) जैसे नेताओं को इस बात का अहसास कराना बहुत मुश्किल है कि यह भारत का लोकतंत्र है जिसकी रगों में आंदोलन बहता है। आंदोलन का मजाक उड़ाते हुए उनका बाहुबली वाला रूप देख कर समझ आ रहा कि क्यों कंगना रनौत के बोलने पर प्रतिबंध लगाने वाली भाजपा सिंह के स्त्री विरोधी बयान को बर्दाश्त कर रही है। लाला लाजपत राय ने आजादी के आंदोलन के विषय में कहा था, ‘हमारे ऊपर किया गया हर वार ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में ठोकी गई कील साबित होगा।’ राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता तो कोई कील अंतिम नहीं हो सकती। लेकिन, आंदोलन को लज्जित करनेवाले नेताओं की फौज के साथ हरियाणा में भाजपा शासन की ताबूत में कील की संख्या बढ़ती जा रही है।