मणिपुर में यौन उत्पीड़न के जघन्य अपराध के बारे में पीड़ित पक्ष ने कहा कि भगवान की दया से वह वीडियो वायरल हुआ। जलते मणिपुर पर सरकार अगर सक्रिय भी हुई तो वायरल वीडियो के कारण। क्या दिल्ली से लेकर राज्य के खुफिया विभाग तक वह वीडियो नहीं पहुंच पाया था? जिस धार्मिक यात्रा को लेकर गांवों की चौपालों से लेकर खलिहानों तक चर्चा थी वहां हालात कितने बिगड़ सकते हैं इसका अंदाजा मुख्यमंत्री खट्टर का खुफिया महकमा नहीं लगा पाया। मणिपुर के विकट हालात पर अगर-मगर चलती रहेगी, लेकिन दिल्ली की सीमा से सटी खट्टर सरकार किसान, पहलवान से लेकर हर मसले पर नाकाम रहने के बावजूद सवालों से परे क्यों रही? क्या इसलिए क्योंकि सत्ता की शीर्षस्थ हस्तियों से उनकी नजदीकियां हैं? और, शायद यही वजह है कि हरियाणा भाजपा पूरी घुड़साल बेच कर सोती है क्योंकि खट्टर को कोई खतरा नहीं। न सही, पर माननीय मुख्यमंत्री जी के नाम यह खत तो है। बेलाग। बेबाक।
आदरणीय मुख्यमंत्री
मनोहर लाल खट्टर जी।
यह बयान आपका ही है। आगे बढ़ने से पहले पुलिस और राज्य से जुड़े एक और बयान को याद कर लेते हैं। मणिपुर की घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि हम राज्य पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। आरोप है कि मणिपुर की पुलिस ने खुद पीड़ितों को दंगाइयों के हाथों सौंपा था।
किसी भी राज्य की पुलिस क्या कर सकती है, कितने लोगों को सुरक्षा दे सकती है यह राज्य के अगुआ और वहां की प्रशासनिक नीति पर निर्भर करता है। आज तक ऐसी तवक्को की भी नहीं गई है कि जिस राज्य की जितनी जनसंख्या हो उतने ही पुलिसकर्मी भी हों। यानी हर नागरिक के पीछे एक पुलिसकर्मी की मुस्तैदी। नहीं खट्टर साहब, ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। पुलिस का कार्यभार इससे तय होता है कि राज्य सरकार ने कैसा माहौल बनाया है।
खट्टर साहब, आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद से हरियाणा पुलिस का कार्यभार कितना बढ़ गया है आप ही बेहतर जानते होंगे। कुर्सी संभालते ही आपने विवादित बयानों के बाण छोड़ने शुरू कर दिए थे जो समाज में एक खाई पैदा कर रही थी। आपकी ही सरकार के मंत्री अनिल विज कहते हैं कि यह कोई लंबी साजिश है, इसके पीछे इंजीनियरिंग है। हमेशा मुखर रहने वाले विज साहब यहां जासूसी उपन्यास की पहेली ही छोड़ गए हैं। किरदारों की कतार में कातिल कौन, मतलब इंजीनियर कौन?
मुख्यमंत्री जी, कृपया आप अपने दफ्तर के सहायक से अपने पुराने बयानों की फाइल मंगवाइए। अनुरोध है कि फाइल की मोटाई देख कर आपको जरा भी घबराना नहीं है, खास कर उसके बाद उठे विवादों का विश्लेषण नत्थी कर दिया गया हो तब भी। आप जब अपने बयानों की फाइल पढ़ेंगे तो विज साहब का सवाल कौंधेगा? इंजीनियर कौन? वैसे जासूसी कथा में सीधे-सीधे कातिल का नाम लेना कु-कला है। तो हम भी इंजीनियर कौन, के सवाल पर प्रश्नसूचक निशान के साथ आगे बढ़ते हैं।
आते हैं आपके दूसरे बिंदु पर। हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से करेंगे। उत्तर प्रदेश से यह संवाद निकला, माना वहां हिट हो गया था। लेकिन, क्या आज यही संवाद मणिपुर में बीरेन सिंह दोहरा सकते हैं? बीरेन सिंह ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि नागरिक और दंगाइयों में फर्क ही खत्म हो गया। वहां तो पुलिस की साख ही खत्म हो गई। तो किनसे और किसके खिलाफ वसूली होगी?
सूचना गांवों तक पहुंच गई, राज्य की एजंसियों को भनक तक नहीं लगी
अगर आप और आपके मंत्री मानते हैं कि यह जानबूझ कर की गई साजिश है तो सबसे पहला सवाल कि आप लोगों को राज्य की कमान किस बात के लिए दी गई थी? साजिशों से सतर्क रहना किसी भी राज्य की एजंसियों का पहला काम होता है। इस देश में सरकारी स्कूलों के शिक्षक की शिकायत रहती है कि उन्हें जनगणना से लेकर इतने तरह के कामों में लगाया दिया जाता है कि वे अपने शिक्षण का काम नहीं कर पाते हैं। सवाल यह है कि आपने अपनी खुफिया एजंसी को किस काम में लगा रखा है कि उनके पास वह सूचना तक नहीं पहुंच पाती जो वाट्सऐप समूहों से गांवों की चौपालों और खेतों-खलिहानों तक पहुंच जाती है।
जिस धार्मिक यात्रा की चर्चा दूर-दूर के इलाकों तक थी, लोग अपने हिसाब से काम-काज का संयोजन कर रहे थे, जो संवेदनशील इलाके में था, वहां से आपको इस तरह की खुफिया खबर क्यों नहीं मिली? वैसे नाकाम तो आप किसान से लेकर पहलवान तक, प्रेमियों से लेकर पाल भक्तों तक से निपटने में रहे हैं।
साजिश या राज्य की नाकामी!
आप जिसे अपने बचाव में साजिश कहते हैं अलिखित कर्त्तव्य-पुस्तिका में उसे राज्य की नाकामी कहा जाता है। यह अपने-आप में अहम है कि नूंह की गतिविधियां एक हफ्ते पहले से हो रही थी, और आरोप है कि इसके बावजूद जिले के एसपी छुट्टी पर थे। इन गतिविधियों के बारे में राज्य सरकार को क्या रिपोर्ट मिली और उसे आपने कितनी गंभीरता से लिया इसकी जानकारी भी दी जाए। जब आग लगाने वाली चिनगारी भड़क कर हवा में उड़ रही थी तो इस आग को भड़कने से रोकने के लिए क्या आप लोगों ने आपस में मिल-बैठ कर बात की?
मणिपुर के लिए तो दिल्ली दूर ही रही है, इसलिए उसके जलने की तपिश वहां के लोगों के लिए छोड़ दी गई। लेकिन इस बार मामला गुड़गांव, दिल्ली-एनसीआर का है। गुड़गांव, नोएडा जैसे शहर तो आपके विकास के ध्वजवाहक हैं। ‘मिलेनियम सिटी’, ‘साइबर हब’ जैसे उपनाम वाले शहर की साख इस तरह से गिरेगी तो और जगहों के बारे में क्या बोला जा सकता है? वैसे, आपकी सरकार कुप्रशासन के मामले में दावा कर सकती है कि हम किसी तरह का भेदभाव नहीं करते। आपके शासन में जला तो चंडीगढ़ से सटा पंचकूला जैसा आभिजात्य शहर भी था।
सीएम के सहयोगी ही कह रहे हैं ‘खुफिया नाकामी’
अभी तो गुड़गांव से डर के मारे मजदूर पलायन कर रहे हैं। लेकिन इसके आगे के अंजाम को देखते हुए आपके मंत्री, केंद्रीय मंत्री और सहयोगी भी घबरा रहे हैं। गुड़गांव के सांसद राव इंद्रजीत सिंह का सवाल है कि धार्मिक जुलूस में भाग लेने वालों के पास तलवारें और लाठियां कैसे पहुंची? भाजपा सांसद इस पूरी घटना को खुफिया विफलता करार दे ही चुके हैं। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी आरोप लगा रहे हैं कि आयोजकों ने यात्रा की पूरी जानकारी नहीं दी। खट्टर जी, ‘खुफिया नाकामी’ शब्द इस्तेमाल करने वाले आपके सहयोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
एक, सबसे अहम बिंदु। नूंह की घटना की खबर आते ही आम जनता के मुंह से यही निकला-हां चुनाव है। चुनाव है तो? शायद यह बंगाल और कर्नाटक में भाजपा की नाकाम हो चुकी रणनीति का असर है कि इस तरह के कथित ध्रुवीकरण को आम जनता भी सीधे चुनाव से जोड़ दे रही है। यानी जनता की नजर में यह न तो खुफिया नाकामी है, न प्रशासनिक नाकामी, यह बस चुनाव है।
अगर इस रणनीति को भाजपा के साथ नत्थी कर दिया जा रहा है तो यह उसके चेतने का समय है। वाट्सग्रुप समूह में अब चर्चा चल रही है कि हमें इन नेताओं की बातों में नहीं आना। जाट समुदाय इस चीज को लेकर मुखर हो रहा है। तो, यह भाजपा से लेकर हर दल के लिए संदेश है कि इस तरह की चीजें एक-दो बार धनात्मक होने के बाद वोटों के हिसाब से ऋणात्मक हो जाती हैं। खास कर जहां कांटे की टक्कर होती है। कर्नाटक उदाहरण है।
राव इंद्रजीत सिंह के सवाल में छुपे उनके डर को समझिए। गुड़गांव में सिर्फ रेहड़ी पटरी वाले नहीं रहते, यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गढ़ है। अपने बहुमंजिला दफ्तर से सड़क किनारे जलती दुकान और रेहड़ी को देख कर आभिजात्य वर्ग भी यहां से डरने लगेगा। प्रभावित इलाकों के कर्मचारियों को कंपनियों ने घर से काम करने को कहा। कश्मीर, मणिपुर के बाद किस-किस जगह के इंटरनेट बंद होंगे? इंटरनेट बंद और ‘वर्क फ्राम होम’, यह बात सुन कर तो कोई बच्चा भी हंस देगा। वहीं, बड़ों को समझ नहीं आ रही कि हंसे या रोएं, कभी बारिश तो कभी दंगे के डर के कारण मेरा बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है। किसी भी समाज के लिए डरा हुआ समुदाय, संघर्षरत समुदाय फायदेमंद नहीं हो सकता है।
मणिपुर की घटना से नहीं लिया सबक
मणिपुर में केंद्रीय मंत्री का घर तक जला दिया गया। मणिपुर में पीड़ित महिला के परिवार का कहना है कि ‘भगवान की दया’ से उत्पीड़न का वीडियो वायरल हुआ। वह वायरल नहीं होता तो न्याय नहीं मिलता। मणिपुर से सबक लीजिए, जनता की पीड़ा पर बात करने के लिए इस तरह के ‘भगवान की दया’ और वायरल वीडियो का इंतजार नहीं कीजिए। खट्टर साहब, यह सब दिल्ली की सीमा पर हो रहा है। पहले बीरेन सिंह और अब आप। क्या आपको अहसास है कि इससे आपके केंद्रीय नेतृत्व की साख कितनी खराब हो रही है?
लगातार दो दोहरे इंजन वाले राज्य में कानून व्यवस्था के पतन का हाल देख कहीं ऐसा न हो कि चुनाव आते-आते आपके नेताओं को कहना पड़े कि हमारे भाषण से सभी दोहरे इंजन शब्द को सिरे से गायब कर दो।
आपका शुभेच्छु।