Discussion On the Power Struggle Of The oppositions In Jansatta Baradari: पवन वर्मा ने कहा कि यह हिंदू समाज की उपलब्धि है कि धार्मिक ध्रुवीकरण के उच्चतम बिंदु पर भी उसने बतौर नागरिक ही मतदान किया है। उनके मुताबिक मुसलिम तुष्टिकरण के आरोप कुछ हद तक सही भी हैं जो खिलाफत आंदोलन के महात्मा गांधी के द्वारा समर्थन करने से ही शुरू हो जाते हैं। ममता बनर्जी अगर चंडी पाठ कर अपनी छवि संतुलित कर रही हैं तो यह बिलकुल सही है। कोई अगर खुद को हिंदू मान कर मंदिर जाता है तो इससे उसकी धर्मनिरपेक्षता खत्म नहीं हो जाती है। विपक्ष विमर्श पर जनसत्ता बारादरी की बातचीत का संचालन कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज ने किया।
मृणाल वल्लरी: अभी बिहार, नीतीश कुमार व प्रशांत किशोर की राजनीति के संदर्भ में बात करें तो आपकी कड़ी जुड़ती है। बिहार में राजनीतिक परिवर्तन ने नया सियासी माहौल पैदा कर दिया है। 2014 के बाद कई सरकारों के सत्ता में आने का श्रेय राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी दिया गया। भारतीय जनतंत्र में राजनीतिक रणनीतिकार व छवि प्रबंधन जैसी प्रवृत्ति को आप किस तरह देखते हैं?
पवन वर्मा : इस संदर्भ में एक चीज तो तय है, जो मैंने बहुत करीब से देखी है। जो राजनीति पहले केवल रैलियों व पोस्टरों के जरिए होती थी वह अब इतनी ज्यादा आंकड़ा आधारित है कि हम कूट गणना बना सकते हैं कि पिछले आठ चुनावों में मतदान का रुख कैसा रहा। किस समुदाय के कितने फीसद लोगों ने कब, किसे और क्यों वोट दिया, इसका सटीक आंकड़ा मिल सकता है। दूसरी बात यह है कि अब संवाद के साधनों में बहुत इजाफा हुआ है। इन सबके बीच प्रशांत किशोर ने राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में शुरुआत की, जिसे हम चाणक्य की भूमिका के रूप में समझ सकते हैं। शुरू में तो प्रशांत किशोर का यही मकसद था और उन्होंने यह काम लगभग आठ सालों तक किया। वे इस क्षेत्र में कामयाब भी रहे। मैं जानता हूं कि उनमें इस तरह का काम करने की पूरी क्षमता है। प्रशांत किशोर बहुत मेहनती हैं। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के समय महीनों 18-18 घंटे तक काम किया। उनमें संगठनात्मक ढांचा खड़ा करने का कौशल है। पश्चिम बंगाल के चुनाव के बाद मेरी भी सोच थी, हालांकि सोच तो निर्णायक रूप से उन्हीं की होती। मैंने उनसे कहा कि आप यह काम कब तक करते रहेंगे? आपको राजनीति में भी रुचि है। आप बिहार से हैं, तो अब वह समय आ गया है कि आप इस किरदार को छोड़ कर मुख्यधारा की राजनीति में आइए। व्यवस्था परिवर्तन को लेकर, नए तरह के लोकतंत्र को लेकर आपकी सोच है। देश को लेकर नई प्राथमिकताओं पर आपका जोर है। तो यह सब काम आपको खुद करना चाहिए। आपको राजनीति में आना चाहिए। यह काम आपको करना चाहिए। मेरे ख्याल से इसका नतीजा यह है कि बिहार में इन दिनों वे ‘जनस्वराज पदयात्रा’ कर रहे हैं।
सूर्यनाथ सिंह : बिहार में राजनीतिक बदलाव के बाद तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार साथ हैं। चुनाव के वक्त दोनों के वादे-इरादे अलग-अलग थे। हां, बेरोजगारी दूर करने और शिक्षा को दुरुस्त करने का वादा दोनों की तरफ से हुआ था। उसमें स्थिति बदलती नजर नहीं आ रही, न तो बेरोजगारी के स्तर पर और न शिक्षा के स्तर पर। अपराध भी कम नहीं हो रहे हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?
पवन वर्मा : इसमें अवसरवादिता तो है ही जो सिर्फ नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर लागू नहीं होती है। भाजपा ने 2014 से लेकर 2015 तक नीतीश कुमार को क्या-क्या नहीं कहा। लेकिन, 2017 में उसी नीतीश कुमार की पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी बनाया। अब नीतीश कुमार की पुरानी बाते हैं तेजस्वी के खिलाफ तो तेजस्वी की बातें हैं नीतीश के खिलाफ। लालू यादव की नीतीश के खिलाफ तो नीतीश की लालू के खिलाफ। राजनीति में आप नैतिकता को पुरानी तराजू में तौल ही नहीं सकते। सत्ता अपने हिसाब से सत्य तय कर सकती है। असत्य को सत्य बना सकती है। राजनीति में यह दुखद परिवर्तन है। मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि 2005 में बिहार में जब नीतीश कुमार थे उस समय उनकी छवि सुशासन लाने वाले की ही थी। जिस तरह का बदलाव वे बिहार में लाना चाहते थे, उसके लिए जमीनी स्तर पर प्रशासनिक क्षमता भी दिखाई। अपराध पर काबू करने की पूरी कोशिश हुई। मुझे लगता है कि लोगों की निगाहों में आज उनकी इस तरह की क्षमता नहीं रही है। पिछले लंबे समय से बिहार में एक पार्टी सत्ता में नहीं रही है। यह सच है कि बिहार तीस साल बाद भी आज भी उसी हालत में है। इसलिए, कुछ लोगों को लगता है, उनमें मैं प्रशांत किशोर को भी गिनता हूं जो ये कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में राजनीति की बुनियाद बदलने के बाद ही विकास होगा।

धर्मस्थलों पर पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस नेता राहुल गांधी। (सभी फोटो- पीटीआई)
सुशील राघव : पिछले साल अपने एक साक्षात्कार में आपने कहा था कि 2024 का चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम ममता बनर्जी होगा। क्या आप आज भी अपने इस बयान पर कायम हैं?
पवन वर्मा : नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर मुझे और प्रशांत किशोर को एक ही दिन और एक ही पत्र के जरिए जद (एकी) से निष्कासित किया गया था। मैंने सिद्धांत के आधार पर नागरिकता संशोधन कानून की मुखालफत की थी। आज भी मैं और नीतीश कुमार एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते हैं। तब मैं किसी पार्टी में नहीं था। लेकिन, मेरे जेहन में इतना जरूर था कि विपक्ष को एक चेहरा भी चाहिए, एक विमर्श भी चाहिए। इसके लिए देशव्यापी स्तर पर संगठनात्मक ढांचा बनाने की सोच थी। ममता बनर्जी ने जिस तरह से पश्चिम बंगाल के चुनाव में जीत दर्ज की उसे देख कर लगा कि उनमें ऊर्जा है, वे जमीनी लड़ाई से आगे बढ़ी हैं, सड़क पर उतरने वाली नेता हैं। अगर हम उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लाएं और तृणमूल कांग्रेस का संविधान बदल कर उसे अखिल भारतीय स्वरूप दें तो एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में काम हो सकेगा। ममता जी से मैं दिल्ली में मुलाकात करने पहुंचा तो उन्होंने मुझसे सीधे कहा कि आप पार्टी की सदस्यता कब ग्रहण कर रहे हैं। जैसी जीवंतता उनमें है तो उन्होंने कहा कि आज बहुत ही अच्छा दिन है। दूसरे कमरे से वे एक शाल लेकर आईं। उन्होंने कहा कि यह मैं आपके लिए दार्जीलिंग से लाई हूं। शाल ओढ़ाने के बाद उन्होंने मुझे पार्टी का पटका पहनाया। बाहर खड़े मीडियाकर्मियों को उन्होंने बताया कि ये हमारे नेता हैं। उनका बड़प्पन है कि उन्होंने मुझे पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया। आज भी मेरे मन में उनके प्रति बहुत सम्मान है क्योंकि वे मजबूत नेता हैं। इस समय बंगाल की राजनीति में उलझी हुई हैं। जो समय उन्हें राष्ट्रीय पार्टी का निर्माण करने में देना चाहिए, वह अभी नहीं है। फिर मैंने तृणमूल कांग्रेस छोड़ ही दी।

दीपक रस्तोगी : क्या आपको लगता है कि धार्मिक ध्रुवीकरण वोट में तब्दील होता है?
पवन वर्मा : यह एक भ्रम है। लोगों को और बहुत से राजनीतिक दल के नेताओं का मानना है कि जिस देश में हिंदुओं की आबादी 80 फीसद है और आपकी आबादी ही धर्म पर आधारित है, तो फिर भाजपा को हराना बहुत मुश्किल काम हो गया है। लेकिन, हमारे सर्वेक्षण कुछ और आंकड़े देते हैं। आप अधिकतम ध्रुवीकरण वाली स्थिति का भी उदाहरण ले लीजिए तो भी आपको पचास फीसद से ज्यादा हिंदू प्रभावित नहीं दिखेंगे। गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश के आंकड़े हैं। हिंदुओं का एक तबका है जो सिर्फ हिंदू के रूप में वोट नहीं डालता, बल्कि एक नागरिक के तौर पर भी वोट डालता है। यह हिंदू समाज की बड़ी उपलब्धि है। कभी-कभी एक-दूसरे को लेकर आक्रोश में दंगे भी हुए हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों की, आम आदमी की मध्य-वर्ग की यह मंशा शांति और भाईचारे की होती है। हिंदू समाज भी जिओ और जीने दो के सिद्धांत पर ही चलता है। हिंदू समाज के पास मुसलिमों के तुष्टिकरण की जो शिकायत है वह कुछ हद तक सही भी है। आप तुष्टिकरण करो, उसमें दिक्कत नहीं है, लेकिन हिंदू धर्म को, उसकी संस्कृति को कुछ और अहम भूमिका दो। मगर इतना मत करो कि रोजमर्रा की जिंदगी पर खतरा हो। यह समझना कि धर्म के आधार पर हराया ही नहीं जा सकता, बिलकुल गलत है।

दिल्ली के दशहरा मेला में रामलीला स्थल पर निशाना साधते मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। (फोटो- पीटीआई)
मुकेश भारद्वाज : हो तो यह रहा है कि धर्म के आधार पर सब भाजपा की नकल कर रहे हैं। ममता बनर्जी चंडी पाठ कर रही हैं, अरविंद केजरीवाल हनुमान भक्त बन चुके हैं तो राहुल गांधी जनेऊधारी बन जाते हैं। नरम हिंदुत्व की अवधारणा लेकर आए।
पवन वर्मा : मेरी किताब का नाम है ‘द ग्रेट हिंदू सिविलाइजेशन’। उसके पहले आदि शंकराचार्य पर लिखी थी, उससे पहले श्रीरामचरितमानस पर लिखी थी। बहुत से लोग मुझे संघी करार देते हैं। अगर अपने धर्म और दर्शन, अपनी संस्कृति के बारे में आपकी मजबूत पकड़ नहीं है तो आप इन ताकतों का सामना ही नहीं कर सकते। मैंने इन चीजों पर कई किताबें लिखी हैं। अपनी जड़ों से उखड़े हुए महानगरीय लोग कभी भी जमीनी लड़ाई नहीं लड़ सकते। अगर राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल को हिंदू होने की झिझक नहीं है तो इनका मंदिर जाना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है। अच्छा हिंदू ही धर्मनिरपेक्ष हो सकता है अगर वह अपने धर्म का मर्म जानता हो। भारतीय राजनीति में हिंदुओं की उपेक्षा का आरोप पूरी तरह से गलत भी नहीं है। भारत की आजादी के पहले तुर्की में खिलाफत आंदोलन हुआ तो महात्मा गांधी ने समर्थन किया। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि उसका समर्थन क्यों हुआ। बल्कि कांग्रेस में ही बीआर आंबेडकर जैसे नेताओं ने उसकी मुखालफत की। कहा कि खिलाफत आंदोलन से हमें क्या लेना-देना। बात होती है सोमनाथ मंदिर की। जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से कहा कि आपका जाना ठीक नहीं। मैं समझता हूं हिंदू उससे आहत हुए थे। एक मंदिर जिसका बारह ज्योतिर्लिंग में अहम स्थान है वहां अगर राष्ट्रपति जाएंगे तो उनकी धर्मनिरपेक्षता खत्म हो जाएगी? ‘पर्सनल ला’ में बदलाव किया तो सिर्फ ‘हिंदू पर्सनल ला’ को बदला और बाद में शाह बानो के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन पर पूरे वामपंथी-उदारवादी वातावरण की चुप्पी थी। अभी एक हिंदू जागरण की स्थिति तो है, बस हमें उग्र होने से बचना है। ममता बनर्जी जिन पर सदा से मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप रहा है वे अगर चंडी पाठ करके अपनी छवि को संतुलित करती हैं तो क्या गलत है? नरम हिंदुत्व शब्द मेरी समझ से परे है। भाजपा करे तो ठीक, हम करें तो नकल। हमें एक समझदार समाज बनाना है जिसमें न धर्म से परहेज किया जाता है और न धर्म के आधार पर विभाजन किया जाता है।

15 अक्टूबर को पश्चिम चंपारण में जन सूराज अभियान पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर। (पीटीआई फोटो)
पंकज रोहिला: 2024 में आप सक्रिय राजनीति में आएंगे? अगर प्रशांत किशोर कोई ढांचा खड़ा करेंगे तो आप उसमें शामिल होंगे?
पवन वर्मा : प्रशांत किशोर 44 साल के हैं युवा हैं, जिस तरह की राजनीति की कल्पना करते हैं उसके लिए काम कर रहे हैं। 2024 तक बिहार का कोई ऐसा गांव, पंचायत नहीं होगा जहां तक वह पहुंच कर कोई ठोस काम नहीं कर चुके होंगे।
मुकेश भारद्वाज: अंतिम सवाल, क्या आप प्रशांत किशोर के साथ शामिल हो सकते हैं?
पवन वर्मा : मैं विपक्ष के रवैए से मायूस हूं। लेकिन, प्रशांत किशोर में ऊर्जा देखता हूं। कांग्रेस तो सारे दलों की मातृ-संस्था है लेकिन आज भाजपा को 200 से 250 सीटें उसी की वजह से उपहार में मिल जाती हैं। प्रशांत किशोर ने इस ऐतिहासिक पार्टी का ढांचा दुरुस्त करने की कोशिश की थी लेकिन बात बनी नहीं थी। अब वे खुद मैदान में हैं। अभी इस बारे में बोलना जल्दी होगा। कुछ महीनों के बाद ही राजनीतिक तस्वीर तय होने के बाद इस बारे में कुछ कह सकता हूं।