एकांत और अकेलापन दो अलग अवस्थाएं हैं। अकेलापन जहां बोझ, मानसिक संताप और अभाव की स्थिति पैदा करता है, वहीं एकांत रचनात्मकता और सृजन की ओर ले जाता है। दरअसल, अकेलेपन को लेकर बचपन से हमारे मन में एक भय बैठा दिया गया है। ऐसी अवधारणा प्रचलित है कि जो अकेला है, वह उपेक्षित, अव्यावहारिक और असामाजिक भी है।

दूसरी ओर, अकेला रहना अब समय की मांग है और आगे चलकर कभी न कभी आजीविका के लिए, अध्ययन के लिए या किसी अन्य विवशता की वजह से हममें से किसी को भी अकेला रहना पड़ सकता है। अकेला होना या रहना हमारे परिपक्व होने की निशानी हो सकती है। यह मनुष्य ही है, जो अतिरिक्त रागात्मकता के कारण युवा होने तक अपने बच्चों की सार संभाल के लिए चिंतित रहता है, वह भी खासतौर पर भारतीय समाज में। जबकि कई अन्य देशों में स्वावलंबन का पाठ किशोरावस्था में ही सिखा दिया जाता है। इससे न केवल आत्मविश्वास को बल मिलता है, बल्कि नए विचार और अपने आपको समझने का मौका भी मिलता है।

अकेलापन कोई घबराहट की स्थिति नहीं है। इसका सीधा अर्थ है कि हम खुद के साथ हैं। कई अध्ययनों और विद्वानों ने इस पर अपनी राय दी है कि अकेलापन तब नहीं होता, जब हमारे आसपास लोग न हों। अकेलापन उसे कहते हैं, जब हम खुद को अपने भीतर नहीं खोज पाते।

अकेलापन कोई बीमारी नहीं है, यह एक अभ्यास है, उत्तरोत्तर ज्यादा समृद्ध और परिपक्व होने का। स्वयं को कोसना बंद कर देना चाहिए। आत्म प्रेम करने, अपने अंदर की योग्यता और क्षमता को पहचानने की जरूरत है। खुद को किसी से कम नहीं समझना चाहिए, लेकिन इसका मतलब अहंकार से नहीं है।

वहीं, एकांत इससे कहीं उच्चतर मूल्य है। यह एक साधना और एक किस्म की आत्मान्वेषी यात्रा है, जिसमें स्वयं को खोजना है। जिनके पास एकांत है, वे दूसरों से कहीं अधिक वैभवशाली और संपन्न हैं। एकांत एक तरह का वरदान है। इससे हमारे आत्मबोध की प्रक्रिया तेज होती है और गहरे व स्वतंत्र विचारों का विकास होता है। बाहरी झूठी और तात्कालिक अपेक्षाओं से मुक्ति मिलती है। हमारे ऋषियों-मुनियों ने वनों और एकांत में जाकर ही वेदों और उपनिषदों की रचना की, सिद्धियां प्राप्त कीं।

ऐसे उदाहरण आम रहे हैं कि अपने शोध कार्यों में तल्लीन वौज्ञानिक कई दिनों तक प्रयोगशाला से बाहर नहीं निकलते हैं। असल में वैज्ञानिकों, कलाकारों और लेखकों को सृजनात्मक कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है। जब तक खुद से साक्षात्कार नहीं होता है, मौन बैठा रचनात्मकता का बीज भी अंकुरित नहीं होता। ध्यान और जागरूकता भी तभी विकसित होती है।

बाहरी दुनिया के शोर-शराबे और आपाधापी से दूर एकांत हमें प्रेरणा देता है, चिंतन का अवसर देता है। अपने एकांत का हमें बेहतर उपयोग करना चाहिए। उसे उड़ान का मौका देना चाहिए। आज का इंसान रात-दिन भीड़ और शोर-शराबे के बीच रहता है।

जब कभी वह खाली बैठता है तो मोबाइल फोन समय बिताने वाला साथी बन जाता है। और कुछ बेहद जरूरी काम नहीं हो, तो हम आमतौर पर सोशल मीडिया पर समय बिताने में व्यस्त रहते हैं। मगर इस बहाने हुआ यह है कि हम अपने मस्तिष्क में कूड़ा-करकट भरने में लगे हैं। मौलिक रचनात्मकता के स्थान पर अब ‘कट पेस्ट’ यानी कहीं से उठाओ और चिपकाओ की संस्कृति का चलन बढ़ने लगा है। इस सवाल को इस तरह देखा जा सकता है कि दुनिया में सबसे बड़ी बात यह समझना है कि खुद से कैसे जुड़ा जाए।

हमें स्वयं को खुश रहना और अच्छा अनुभव करना सीखना होगा। अंदर से नकारात्मकता से भरकर हम खुद का, परिवार का या समाज का उत्थान नहीं कर सकते। हमारे अंदर जो है, वही हम बांटेंगे। अगर प्रसन्नता है तो खुशी और उमंग बांटेंगे। अगर हम शत्रुता से लबरेज हैं तो घृणा और वैमनस्य ही बांटेंगे।

इसके लिए अंत:करण की शुद्धि और एकाग्रता, शांतचित्त होना अनिवार्य है। ओशो कहते हैं कि भीड़ से आत्मा को अलग कर पाने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। मौन की शक्ति की खोज ही वास्तविक खोज है, जो एकांत को ऊर्जादायी और सृजनशील बनाती है।

ध्यान, योग, ब्रह्म ज्ञान सब एकांत में ही संभव है। जब हम एकांत में होते हैं तो स्वयं की कार्य योजना बना पाते हैं, अपनी कमजोरियों को देख पाते हैं। अपना वास्तविक आकलन इस मुंह देखी प्रीत वाले संसार में कर पाते हैं।

हमारी कल्पनाशीलता एकांत में प्रबल होती है, सृजनात्मक कल्पना शक्ति से ही श्रेष्ठ रचनाओं और आविष्कारों का जन्म हुआ है। प्रख्यात चित्रकार विंसेंट वैन गाग अधिकतर एकाकी जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने अपने अकेलेपन का इस्तेमाल अपनी कला की ऊंचाइयों को विकसित करने में किया। लेकिन हमारी युवा पीढ़ी को हर समय पार्टी चाहिए, शोर-शराबा चाहिए, परिणास्वरूप मौलिक सृजन का अभाव हो गया है।

अगर मौलिक सृजन हो भी रहा है तो उसमें गहराई के बजाय भावात्मक छिछलापन दिखाई देता है। अगर प्रकृति का अनुभव करना हो या स्वयं की क्षमताओं का आकलन करना हो तो हमें अकेलेपन की जरूरत पड़ेगी। अपने सपनों और लक्ष्यों पर काम करने के लिए भी एकांत के क्षण चाहिए होते हैं। एकांत में रहने वाले व्यक्ति की आत्मनिर्भरता चरम पर होती है, वह विवेकपूर्ण निर्णय ले सकता है।

इसलिए एकांत के महत्त्व को जानने की जरूरत है और इसे किसी अभाव के बजाय एक अवसर की तरह लना चाहिए। यह हमें मानसिक और आत्मिक समृद्धि की ओर ले जाएगा तथा जीवन को गहराई से समझने का मौका भी देगा।