कुमकुम सिन्हा

प्रकृति अपने मूल में जीवन है। लेकिन उससे छेड़छाड़ का रास्ता अपना कर मानव ने अपने लिए विपरीत परिस्थितियां ही पैदा की हैं। ये तब भी हो रहा था जब मानव विकास की प्रक्रिया में था और आज भी हो रहा है, जब दुनिया भर में विकास अपने चरम पर है। अंतर बस यही है कि अपने विकास की प्रक्रिया में वह प्रकृति से उतना ही ले रहा था, जितनी की उसे सख्त जरूरत थी।

इसीलिए प्रकृति और मानव के बीच एक अच्छा-सा तालमेल था। प्रकृति मानव के लिए और मानव प्रकृति के लिए। धीरे-धीरे यह तालमेल बिगड़ने लगा और बिगड़ता ही गया, जिसके कारण स्थितियां बेकाबू होने लगीं। आज के दौर में हम मानव इतने स्वार्थी और लालची बन गए हैं कि अपनी बढ़ती आवश्यकताओं पर रोक लगाना हमारे वश की बात नहीं रह गई है।

हम अपनी हर छोटी-बड़ी आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रकृति पर आश्रित हो गए हैं। हवा, पानी, भोजन जैसी जीवन रक्षक चीजों से लेकर भोग-विलास की चीजें भी प्रकृति की गोद में तलाशने लगे हैं। हमने पहाड़ी वादियों में एक से बढ़ कर एक पर्यटन स्थल खोज निकाले हैं और अपने हिसाब से पेड़ों और पहाड़ों को काट कर सड़कें, होटल, ‘होमस्टे’ यानी घर में ठहरने की व्यवस्था और भी न जानें क्या-क्या बना लिया है।

इतना ही नहीं, बढ़ती आबादी ने इन सड़कों पर दबाव भी कम नहीं बढ़ाया। शायद इसीलिए बिना सोचे-समझे पहाड़ों को बड़े-बड़े यंत्रों से काट डाला गया, ताकि चौड़ी सड़कों पर पर्यटकों की गाड़ियां द्रुत गति से आ-जा सकें।

कश्मीर के श्रीनगर में स्थित डल झील के स्वच्छ पानी और उस पर चलने वाले शिकारे के बारे में सबने सुना होगा। शिकारे आज भी हैं, पर पानी स्वच्छ नहीं रहा। पानी का गंदला रंग देखकर किसी का भी मन दुखी हो जाएगा। डल एक प्राकृतिक झील है जो सदियों से पर्यटकों को आकर्षित करता आया है। इसकी न केवल पर्यावरण संरक्षण में भूमिका है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करने में भी उसकी अहम भागीदारी है। इस असलियत से हम बिल्कुल बेपरवाह हैं।

उसके रखरखाव की चिंता करने की जगह उसका बेदर्दी से दोहन किए जा रहे हैं। झील पर खड़े हाउसबोट्स यानी घर जैसे नाव के नीचे का पानी कुछ ज्यादा ही गंदला हो चुका है, क्योंकि उसमें सैकड़ों-हजारों प्लास्टिक की पन्नियां और बोतलें फंसी हुई दिख जाती हैं। इतना ही नहीं सोनमर्ग के रास्ते में धूल ही धूल देखा जा सकता है, क्योंकि चारों तरफ निर्माण प्रक्रिया चलती रहती है।

पहाड़ों से घिरे हरियाली से भरे इलाके में आकर भी लोगों को चेहरे पर मास्क लगाने की जरूरत पड़ सकती है। ध्वनि प्रदूषण भी बिल्कुल शहरों जैसी। गाड़ियों का हार्न लगातार बजता रहता है। भीमताल जाने वाले रास्ते में भी ऐसी ही निर्माण प्रक्रिया चलती दिख जाती है।

यह कहानी केवल कश्मीर और भीमताल की ही नहीं है, बल्कि मोटे तौर पर अब सभी पहाड़ी क्षेत्रों की हो गई है। यही कारण है कि पहाड़ों में प्राकृतिक आपदा बार-बार आने लगी हैं। कभी भूस्खलन तो कभी भारी बारिश से बाढ़। जब भी ऐसा होता है तो जान-माल को भारी क्षति पहुंचती है। हाल में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को ऐसी ही तबाही का सामना करना पड़ा है।

हजारों घर, स्कूल, सड़कें, पुल, बैंक, दुकान अचानक आई बाढ़ में बह गए। आपदा प्रभावित क्षेत्रों को देख कर ऐसा लगा जैसे वहां भीषण आक्रमण हुआ हो, जिसमें सब कुछ तहस-नहस हो गया। ठीक इसी समय कई मैदानी इलाके भी बाढ़ की चपेट में आ गए। देश की राजधानी दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में भी बुरा हाल हुआ।

यमुना नदी का जल स्तर इस साल इतना बढ़ गया कि नदी के निचले इलाके में बसे लोग भारी संख्या में रातों रात बेघर हो गए। किसी ने कहा कि इस साल नदी ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया तो किसी ने कहा महाविनाशक रूप। सच कहें तो इसमें नदी का क्या दोष! नदी में बाढ़ तो आती ही है। यह जानते समझते हुए भी लोगों ने उसके घर में अपना घर बसा लिया। अब आप बताएं दोष किसका है!

हम सह अस्तित्व की बात करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। जब जरूरत हुई, पेड़ काट डाले, नदियों के किनारे मकान, दुकान, होटल बना डाले। कभी यमुना नदी काफी चौड़ी हुआ करती थी। लेकिन जनसंख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के कारण पूरभूमि यानी ‘फ्लडप्लेन’ में निर्माण कार्य होने लगे और धीरे-धीरे नदी संकरी होती गई। लोगों ने समझ लिया कि अब यह अपने मौलिक रूप में कभी नहीं आएगी। लेकिन यह उनकी भूल थी।

सरकार की भी भूल थी, जिसने अवैध निर्माण को नजरअंदाज किया। लंबे समय के बाद इस साल यमुना ने अपना विस्तार दिखा कर यह साबित कर दिया कि उसके तटीय इलाके पर कब्जा करना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए अब यह आवश्यक हो गया है कि हम प्रकृति को समझें और उसके साथ अच्छा तालमेल बैठाएं।

प्रकृति में विद्यमान सभी चीजों के अस्तित्व को स्वीकार करें। जो जिस तरह है, उसी तरह रहने दें और उनका दोहन न करें। ऐसा करके हम खुद को तो बचाएंगे ही, प्रकृति भी फलती-फूलती रहेगी जो हमारे जीवन को समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए बेहद जरूरी है।