सात साल की अनया का जन्मदिन आने वाला था। जन्मदिन को लेकर वो बहुत उत्साहित थी। दो महीने पहले से ही अपने जन्मदिन समारोह की योजना बनाने लगी थी। ‘मम्मी इस बार अपने जन्मदिन पर मैं अपने स्कूल के दोस्तों को भी बुलाऊंगी।’ ‘हां हां इस बार अपार्टमेंट के दोस्तों के साथ स्कूल के दोस्तों को भी बुला लेंगे। खुश?’ ‘नहीं मम्मी मैं इस बार रोली को जन्मदिन में नहीं बुलाऊंगी।’ अनया ने निराश होते हुए कहा। ‘अरे … रे, ऐसा क्यूं? वो तो तुम्हारी अच्छी दोस्त है।’

कहानी में पर्यावरण बचाने की दी गई है प्रेरणा

‘वो मेरे साथ नहीं खेलती, वो तो मोनी की बात मानती है। मैं जो खेल बताती हूं वो बिलकुल नहीं खेलती।’ अनया ने अपना दुख बताया।
अचला को अनया की मासूम बातों पर हंसी आ रही थी। लेकिन अपनी हंसी रोकते हुए उसने कहा, ‘अच्छा एक बात बताओ जो खेल रोली बताती है क्या तुम वो खेलती हो?’ ‘नहीं मम्मी, उसका खेल मुझे समझ में नहीं आता है।’

‘हो सकता है जो खेल तुम उसे बताती हो, उसे भी अच्छा नहीं लगता हो? इसलिए दोनों को एक-दूसरे की बात माननी चाहिए।’ अनया को बात समझ आ गई और वो रोली को बुलाने के लिए राजी हो गई। अनया के जन्मदिन में दो दिन बच गए थे इसलिए मेहमानों की सूची, खाने-पीने की तैयारी और सबसे महत्त्वपूर्ण बच्चों को वापसी का तोहफा देने का काम पूरा कर लेना था। बच्चों को सबसे ज्यादा खुशी उनको मिलने वाले ‘रिटर्न गिफ्ट’ से होती है। बाकी चीजें तो तय हो गई थीं लेकिन वापसी के तोहफे पर माथापच्ची चल रही थी। अचला ने सोचा कि अनया से ही पूछ लेती हूं, शायद बच्चों की पसंद बच्चे ही बता सकते हैं।

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अनया से पूछने पर उसने कहा, ‘मम्मी हम चाकलेट, कलर बुक, गेम, दे सकते हैं।’ ‘बेटा ये सब तो हम पहले उन्हें दे चुके हैं।’अनया के जवाब से अचला संतुष्ट नहीं हुई। इस बार वह घर आए बच्चों को ऐसा तोहफा देने की सोच रही थी जिससे वे कुछ सीख सकें। तभी अचला की नजर समाचारपत्र में छपे कथन पर पड़ी ‘पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ।’ अब उसने तय कर लिया था कि बच्चों को क्या तोहफा देना है। उसने सभी बच्चों के लिए खिलौनेनुमा गमले के साथ एक-एक पौधा खरीद लिया।

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अनया के जन्मदिन के दिन सभी दोस्त नियत समय पर आ गए। केक काटते ही सबने ‘हैप्पी बर्थडे’ गाना शुरू किया। फिर सबने केक और साथ में घर के बने फ्राइड राइस, मंचुरियन और मिठाइयां खाईं। बच्चों के लिए खूब सारे खेल भी तैयार थे। बच्चों ने खूब मजा किया। अब बारी थी ‘रिटर्न गिफ्ट’ की। सारे बच्चे बहुत उत्साहित थे। अचला ने सबको बारी-बारी से एक-एक खिलौनेनुमा गमला दे दिया। सभी बच्चों को पौधे का तोहफा देखकर निराशा हुई। यह देख कर अचला ने सभी बच्चों से एक प्रश्न किया। ‘अच्छा बच्चों ये बताओ कि हमें आक्सीजन कहां से मिलता है?’
‘पेड़-पौधों से हमें आक्सीजन मिलता है।’ सब बच्चों ने एक स्वर में कहा।

‘तो हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए। है ना?’ ‘हां आंटी, हमारी टीचर ने भी हमें पर्यावरण के बारे में बताया था।’ अंशु बोल पड़ी।
‘क्या बताया?’ ‘यही कि हम सबको पर्यावरण को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने चाहिए।’ सभी बच्चों ने अंशु की हां में हां मिलाई। ‘अच्छा बच्चों, ये सारे पौधे फूलों के हैं। देखो सभी पौधे पर उन फूलों के नाम भी लिखे हैं।’ सारे बच्चे अपने-अपने पौधों पर लिखे नाम को पढ़ने लगे। किसी के गमले पर गेंदा तो किसी पर चमेली लिखा था।

सभी बच्चे अपने पौधे का नाम जानकर बहुत खुश हुए। ‘अगर आप इन पौधों में रोज पानी और खाद देंगे तो इनमें से बहुत सुंदर-सुंदर फूल खिलेंगे। खास बात है कि जो फूल खिलेंगे गमले भी उसी आकृति के हैं।’ अचला ने कहा। फूलों की आकृति के गमले में उसी तरह के फूल खिलने की कल्पना से बच्चे रोमांचित हो गए। सभी बच्चे गमले लेकर खुशी-खुशी अपने घर चले गए।