जीना तो है उसी का, जिसने ये राज जाना/ है काम आदमी का, औरों के काम आना।’ इस लोकप्रिय गाने में सुखी, स्वस्थ, समृद्ध और सफल जीवन का गहरा राज छिपा हुआ है। हमारे बड़े बुजुर्ग सदा से हमें सामाजिक, मिलनसार, परोपकारी और दरियादिल होने की सलाह देते रहे हैं। वे कहते थे कि समझदार लोगों के दो हाथ होते हैं। एक हाथ अपनी मदद करने के लिए और दूसरा औरों की मदद के लिए। व्यवहार विशेषज्ञ, समाजशास्त्री और आध्यात्मिक गुरु कहते हैं कि मदद करने से सिर्फ दूसरों को ही लाभ नहीं होता, बल्कि यह प्रवृत्ति हमारे लिए भी फायदेमंद होती है। दुनिया की तमाम संस्कृतियां और धर्म-दर्शन तो ये बातें कहते ही रहे हैं, विज्ञान भी इसे मानता है।

कहीं लिखा था, हमारी जिंदगी के कई स्तर और तरीके हैं। यहां एक दूसरे से टकराए बिना मिलजुल कर भी जिया जा सकता है। जैसे संगीत की आर्केस्ट्रा में भिन्न-भिन्न साज अलग-अलग सुरों में बजकर एक सुरीला संगीत तैयार करते हैं, वैसे ही इंसान भी कर सकता है। किसी के संघर्ष में खुद का योगदान देकर देखा जा सकता है कि कितनी खुशी और आत्मसंतुष्टि मिलती है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री क्रिस्टीन का मानना है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद कई लोगों को मदद करने की इच्छा क्यों होती है! इसकी एक वजह यह है कि हमारा विकास समूहों में हुआ है, न कि अकेले। एकजुट होने से हमें अकेलेपन का अहसास कम होता है। जब हमारे जीवन पर खतरा आता है, तो हम अपने आसपास के लोगों से संबंध मजबूत करने लगते हैं। हम उदारता और दया दिखाते हैं, क्योंकि ये भावनाएं हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं।

छोटी-छोटी ईर्ष्या ने पूरे समाज पर कर लिया कब्जा

कई बार किसी के द्वारा मदद या मार्गदर्शन मांगने पर ईर्ष्या के वशीभूत लोग यह सोचते हैं कि मैं जिन कठिन हालात से गुजरा हूं, दूसरों को भी उस चीज का अनुभव होना चाहिए। यह एक आम प्रवृत्ति है। ऐसी छोटी-छोटी ईर्ष्या ने ही हमारे पूरे समाज पर कब्जा कर लिया है। दोस्त या किसी स्वजन के पद, प्रतिष्ठा या संपत्ति में इजाफा होने से कई बार इंसान को ऐसा एहसास होता है जैसे खुद की शांति और खुशी छीन ली गई हो। रिश्तेदार के बच्चे अच्छी डिग्री या नौकरी हासिल कर लें, कार या मकान खरीद लें तो मन बुझ-सा जाता है। जबकि मदद करने और दूसरों की खुशी में खुश रहना मनुष्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है। मददगार और बड़ा दिल रखने वालों के दिल और दिमाग को सुकून मिलता है, स्वास्थ्य अच्छा रहता है, वे सफल भी होते हैं।

अज्ञातवास पर जाना चाहता है मन, भटकाव से बचने के लिए करना पड़ता है उपाय

मनोवैज्ञानिकों ने इस संबंध में अध्ययन किया तो सामने आया कि मदद करने वाले के दिमाग पर तीन तरह के सकारात्मक असर होते हैं। पहला, दिमाग के दाएं भाग में तनाव पैदा करने वाली गतिविधियों में कमी आती है। दूसरा, दिमाग में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पाने जैसी भावना आती है और तीसरा, देखभाल करने में सक्षम होने की अनुभूति होती है, जो आत्मविश्वास बढ़ाती है। कुछ शोधों के अनुसार, सहयोग देने से आयु भी बढ़ती है। मृत्यु-दर में कमी आती है। सप्ताह में पांच बार किसी भी तरह की मदद करने से मन-मिजाज बेहतर होता है। वहीं पचास वर्ष पार के लोगों में दूसरों की मदद का भाव उनमें रक्तचाप से जुड़ी समस्याओं की आशंका को चालीस फीसद तक कम कर देता है। अवसाद दूर रहता है। दर्द से उबरने में मदद मिलती है।

मदद और ईर्ष्या रहित भावना से मिलती है सच्ची खुशी

मदद और ईर्ष्या रहित भावना से मिलने वाली खुशी ही सच्ची खुशी है। हमारे स्वास्थ्य पर इस बात का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है कि हम अपने रिश्तों से कितने खुश हैं। जितना जरूरी अपने शरीर की देखभाल करना है, उतना ही रिश्तों को संभालना भी है। पैसे या शोहरत से ज्यादा खुशी हमें करीबी रिश्तों से मिलती है। ये रिश्ते हमारी शारीरिक और मानसिक गिरावट को टालने में मदद करते हैं। रिश्ते ही लंबे और खुशहाली खुशहाल जीवन के बेहतर संकेतक हैं। जाहिर है, रिश्ते सुलझे हुए और मददगार लोग ही निभा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने आंकड़ों का अध्ययन और सैकड़ों व्यक्तियों से बातचीत करने के बाद पाया कि समृद्ध जीवन का गहरा संबंध परिवार, दोस्तों और समाज के साथ हमारे मधुर रिश्तों से है। रिश्तों से संतुष्टि मिलने पर कोलेस्ट्राल का स्तर भी सही रहता है।

तनावपूर्ण जिंदगी जीने के आदी होते जा रहे लोग, चिंता की गुत्थियां को समझना टेढ़ी खीर

दूसरों की मदद या दान करने से संतोष और खुशी का अहसास होता है। यह भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक, तीनों तरह के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करता है। हावर्ड बिजनेस स्कूल ने दो हजार से भी ज्यादा लोगों पर एक अध्ययन किया। इसमें पता चला कि जिन लोगों ने दूसरों को वक्त जरूरत पर पैसे दिए, उनकी मदद की उन्हें अधिक खुशी महसूस हुई। जबकि जिन्होंने खुद पर खर्च किया, उनकी संतुष्टि का स्तर वैसा नहीं रहा। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, आर्थिक मदद देने, दान देने या किसी भी प्रकार की मदद देने से दीर्घकाल तक खुशी मिलती है।

मदद करने वालों को अवसाद बहुत कम करता है परेशान

जो लोग नियमित सेवा कार्य करते हैं, लोगों की मदद करते हैं वे खुद को समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं, जिससे उनके आत्मसम्मान में भी बढ़ोतरी होती है। यों भी, यह देखा गया है कि जो लोग दान करते हैं, उन्हें अवसाद बहुत कम परेशान करता है। इससे सामाजिक संबंध भी मजबूत होते हैं और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार आता है। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ की ओर से किए गए शोध में पाया गया कि जब लोग दूसरों की मदद करते हैं तो उनके मस्तिष्क में ‘रिवार्ड सिस्टम’ सक्रिय हो जाता है, जिससे वे ज्यादा सकारात्मक महसूस करते हैं।

जब हम मुसीबत में दूसरों की मदद करते हैं, उनके लिए किनारे हटकर रास्ते छोड़ते हैं या उन्हें सुगम मार्ग देते हैं, तो हम एक अच्छा लचीला सद्भावनापूर्ण समाज तैयार कर रहे होते हैं। यह भी एक बहुत बड़ा और संतुष्टि देने वाला कार्य है।