सबके लिए शिक्षा का नारा 1986 में दिया गया और अब नई शिक्षा नीति 2020 लागू होने को है। यह नारा नया नहीं है। भारत के संविधान में सबको शिक्षा सुलभ हो, सभी शिक्षित हों, यह बात अच्छी तरह लिखी गई है। शिक्षा का सार्वजनिकीकरण हो, शिक्षा सबको मिले। मगर इन सबका उद्देश्य क्या हो? क्या शिक्षा से लोगों में पढ़ने-लिखने की क्षमता आएगी? या उनमें कोई अपनी शक्ति जागृत होगी, जिससे वे अपने-आप को कमजोर महसूस न करें और दूसरों पर निर्भर महसूस करने के बजाय खुद अपनी शक्ति जागृत कर सकें? शिक्षा का मूल उद्देश्य जागृति है। शिक्षा उस शक्ति को जगाती है, गुणों को अर्जित करती है, विकसित करती है। शिक्षा कोई नई बात लाने के बजाय व्यक्ति में निहित शक्तियों का ही विकास करती है, लेकिन विकास कितना होगा, यह नई शिक्षा नीति की शिक्षा-पद्धति पर निर्भर है।

हम जब शिक्षित होने की बात करते हैं तो किसान पूछता है कि इससे मुझे क्या लाभ होगा! महिला पूछती है कि इससे मुझे क्या लाभ होने वाला है! जो खेती करना जानते हैं, उनको रोज की आमद हो जाती है, वे भी रोटी, कपड़ा और मकान किसी तरह जुटा लेते हैं। फिर पढ़ने-लिखने से उन्हें कोई खास फायदा होगा, शिक्षा उनको नई जानकारी देगी और उससे उनको नई चीज मिलेगी, नई रोशनी मिलेगी, हम ऐसे सवालों का जवाब हां में नहीं दे पाते। हम केवल यही कहते हैं कि पढ़ने-लिखने से अंधकार मिटेगा, हम कुछ पढ़-लिख पाएंगे तो पहले से बेहतर हो जाएंगे। ‘क-ख-ग’ या किताब के कुछ अक्षर पढ़ने से कोई पहले से बेहतर हो जाएगा यह समझ में अभी तक नहीं आया।

शिक्षा जब तक किसी की सोई हुई शक्ति को नहीं जगाएगी, तब तक उसमें शक्ति और गुणों का विकास नहीं होगा, वह शिक्षा नहीं कहला सकती। उसे अक्षर ज्ञान तो हो जाता है, पर वह क्या पढ़े, यह तय करना संभव नहीं है। अपनी समस्याओं का विश्लेषण कैसे करें, उसका हल कैसे खोजें और कैसे सामूहिक रूप से हल करें- शिक्षा जब तक इन बातों पर चर्चा नहीं करेगी, जब तक लोगों को सामूहिक रूप से रहना नहीं सिखाएगी और सामूहिक रहकर अपनी ताकत को जागृत करने का लक्ष्य नहीं बनाएगी, तब तक आगे बढ़ना संभव नहीं है।

आखिर क्या है साक्षरता

लोकशिक्षा अपने आप में बहुत व्यापक है। लोकशिक्षा जागृति के लिए हो। लोकशिक्षा से लोकशक्ति का प्रादुर्भाव होना आवश्यक है। लोकशिक्षा के लिए सबको इकट्ठा होना होगा, इसके लिए हमें सबको जागृत करना होगा और साक्षरता अभियान में जागृति लाई जाए, यह आवश्यक है। लोकशक्ति जगाई जाए, यह अत्यंत आवश्यक है।

साक्षरता अभियान की बात करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक होगा कि साक्षरता आखिर है क्या? साक्षरता का अर्थ है समाज के वे लोग, जो लिखना-पढ़ना नहीं जानते और अक्षरों के आलोक से दूर हैं, उन्हें साक्षर बनाना। जिसे औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिला, वह वास्तव में संसार के अनुभवों से सजा व्यक्ति है। साक्षरता समाज को समझने की नई दृष्टि देती है, समस्याओं को समझने के लिए मार्गदर्शन करती है। यह एक सार्थक कर्तव्य है, जिससे हम भावों को सही ढंग से व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई असाक्षर शिक्षा से जुड़ जाए तो उसकी समझदारी में कुछ अपनापन अवश्य आएगा। आज की तेजी से भागने वाली दुनिया में वह औपचारिक शिक्षा के अभाव में कागजों के संसार में सहारा नहीं है। वह किसी और के और अंगूठे के घेरे से भी कुछ बाहर निकल सकेगा।

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साक्षरता केवल अक्षरों और अंकों का खेल नहीं है। कई मार्ग इसमें एक साथ खुलते हैं। सामाजिक और भावनात्मक एकता, सांप्रदायिक सद्भाव, छोटे परिवार की अवधारणा, पर्यावरण की सुरक्षा और महिलाओं की समानता- सब इसी के हिस्से है। अक्षरों का संसार आलोक का संसार है। आलोक जब फैलता है तो किसी भी कोने में अंधकार नहीं रह सकेगा। अतीत में झांकें मार्च, 1990 कोई ज्यादा दूर नहीं लगता। थाइलैंड की जोमेटिन नामक संस्था ने एक विश्व सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसका विषय क्षेत्र काफी व्यापक था। शिशुओं के लिए पूर्व प्राथमिक, बालक-बालिकाओं के लिए प्राथमिक युवा, प्रौढ़ों के लिए साक्षरता और कौशल का प्रशिक्षण आदि अनेक बातें एक ही मंच पर कही-सुनी और सोची गई।

शिक्षा पर खर्च मानव पर खर्च

जहां विकास की पहली शर्त शिक्षा है, शिक्षा के क्षेत्र में जो कुछ भी खर्च होता है वह मानव पर खर्च होता है। एक कारखाने में मशीन लगाते हैं, उससे जो उत्पादन होता है, वह हमारे काम आता है, लेकिन शिक्षा के माध्यम से हम एक प्रकार से मनुष्य पर कुछ ज्यादा खर्च करने, देश को एक ऐसा संसाधन देने की कोशिश करते हैं, जिससे विकास की गति को तीव्रता से आगे बढ़ाया जा सके। इसी उद्देश्य से देश के करोड़ों स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाकर उन्हें राष्ट्रीय विकास में भागीदार बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को लोक अभियान के रूप में प्रारंभ किया गया।

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नई शिक्षा नीति में 2030 तक संपूर्ण साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करने पर बल दिया गया है। यह सबके लिए विचार का विषय होना चाहिए कि शिक्षा और साक्षरता की कोशिश यह है कि हम अपने लोगों को व्यावहारिक हुनर सिखाएं। ऐसे हुनर, जिससे उन्हें उनके रोजमर्रा के जीवन में मदद मिले और वे अपने पैरों पर आसानी से खड़े हो सकें। लिखना और पढ़ना एक व्यावहारिक हुनर ही है। बगैर इस हुनर के जीवन जटिल हो जाता है। प्राथमिक शिक्षा बीच में छोड़ व्यक्ति निरक्षरता की दहलीज पर आ जाता है। समाज में उन्हें दबाने की कोशिश की जाती है और व्यक्तिगत विकास के रास्ते में बाधाएं डाली जाती हैं। अब हमें तय करना है कि क्या शिक्षा और साक्षरता के एक ही मायने हैं?