जीवन सतत गतिमान बने रहने का नाम है। जब तक जीवन है, हमें सक्रिय रहना है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी भी है कि हम खुद को क्रियाशील बनाए रखें। लगातार लोगों से मिलते रहना, बोलते और सुनते रहना, सोचते रहना, अपने काम में मसरूफ रहना, एक तरह की अनवरत यात्रा में बने रहना, यकीनन खुशियां देता है, अवसाद से दूर रखता है। पर, जब भीतर से मन ठहराव चाह रहा हो, तब क्या कुछ देर के लिए किनारे जाकर खुद को मुक्त कर देना सक्रियता की तरह ही आवश्यक और स्वाभाविक नहीं होना चाहिए? ऐसा भी नहीं कि हमें लगातार चलते ही जाना है। लंबी यात्रा के लिए कुछ पड़ाव भी जरूरी होंगे। जीवन मे गति जरूरी है, लेकिन उतना ही जरूरी है थोड़ा-सा ठहराव।

कुछ देर का ठहराव आगे की यात्रा को सहज बनाता है

कुछ भी न करने का भाव, किसी को कुछ भी जताने, दिखाने, अपने आप को सिद्ध करने, उम्मीदों पर खरे उतरने, खुद को बदलने या लगातार बेहतर करते रहने की सनक में तब्दील होती तीव्र इच्छा जैसे अनावश्यक बोझ से खुद को कुछ समय के लिए मुक्त करने का भाव। यही जीवन का मानसिक ठहराव और तनिक विश्राम का जरूरी पड़ाव है, जो हमारी आगे की यात्रा को अर्थपूर्ण और सहज बनाता है। कुछ भी न करने का मन, स्वस्थ और सक्रिय व्यक्ति के मन में भी आ सकता है। असल में यह मानसिक परेशानी नहीं है। यह अपने मन को आराम देने का तरीका हो सकता है, जिससे मानसिक दबाव, अवसाद से भी बचाव संभव है। यह जरूर है कि अगर ऐसा लगातार बना हुआ है, शारीरिक, मानसिक परेशानियां भी हम महसूस कर रहे हैं तो हमें चिकित्सक या अपनों से सलाह लेनी चाहिए। अपनी तात्कालिक परिस्थिति को पूरी तरह स्वीकार करते हुए हर हाल में संतुष्ट बने रहने का भाव या ठहराव, यात्रा की गति में अवरोधक नहीं बनता है।

ठहराव के बाद ही सही और सार्थक शुरुआत होती

यह अल्प विराम बहुत जरूरी है, ताकि हम सही दिशा में सही तरीके से गतिवान बने रह सकें। जिस तरह सतत सक्रिय बने रहना ही हमारे अस्तित्व या जीवन का प्रमाण नहीं है, वैसे ही विश्राम या ठहराव की स्थिति भी किसी अंत की घोषणा नहीं होती। कभी-कभी ठहराव के बाद ही सही और सार्थक शुरुआत होती है। नया रास्ता दिखाई देने लगता है जो लक्ष्य के करीब पहुंचना सुगम कर देता है। स्वस्थ, नवोन्मेषी विचारों का प्रादुर्भाव भी समुचित ठहराव के बाद और शांत मन:स्थिति में संभव हो पाता है। मुश्किल यह है कि जीवन की तमाम आपाधापी में इस आवश्यक विश्राम या ठहराव के बारे में हम सोच नहीं पाते। लगातार जुटे रहते हुए हमारा ध्यान इस बात पर जाता नहीं कि वास्तव में इतने क्रियाशील और अधिक व्यस्त हो गए हैं कि रुकने, थमने का थोड़ा भी समय हम नहीं निकाल पा रहे।

हम सभी के पास सीमित शारीरिक क्षमता होती है। अपने सामर्थ्य से अधिक काम करने पर थक जाना एक स्वाभाविक लक्षण है। हमें विश्राम की जरूरत पड़ने लगती है। विचारों के उद्वेग से उत्पन्न मानसिक दबाव को लंबे समय तक झेला तो जा सकता है, लेकिन उसका दुष्प्रभाव हमारे मस्तिष्क को भी थकाने का काम करता है। यही कारण है कि मनुष्य को नींद लेने की नैसर्गिक सौगात मिली हुई है। यह एक ऐसा दैनिक ठहराव या विश्राम का दैनिक पड़ाव है, जिससे हमारे तन और मन का जरूरी रखरखाव होता रहता है।

जल्दी से जल्दी गंतव्य तक पहुंचने की जिद में शरीर और दिमाग को तेज दौड़ाने के प्रयास भी हम करते हैं कभी-कभी। दिमाग को निरंतर अनावश्यक रूप से सक्रिय बनाए रखते हैं। थोड़ी फुर्सत में खाली बैठते हैं, तब भी दिमाग मे कोई न कोई विचार उछलकूद करता रहता है। भूतकाल के कष्ट और भविष्य के सपने और सवाल मन को बेचैन बनाए रहते हैं। जबकि वर्तमान, जो हमारा वास्तविक जीवन है, उसमें सक्रियता और ठहराव के लिए निकट के प्रत्यक्ष अवसर हम नहीं देख पाते।

मानसिक विश्राम को लेकर समाज में, हमारे खुद के मन में बड़ी उदासीनता मौजूद है। रात को भरपूर नींद लेना या किसी पर्यटन स्थल पर चले जाना ही जीवन में ठहराव नहीं है। इस जरूरी सुकून और ठहराव के लिए रोजमर्रा की गतिविधियों में भी अपने ध्यान को केंद्रित कर राहत और विश्राम के पलों को जीया जा सकता है। किसी निर्माणाधीन मकान के सामने आराम से बैठ कर उसके बनने की प्रक्रिया को निहारने के अलावा किसी बगीचे में माली को काम करते या बालकनी में बैठकर सड़क की ओर देखा जा सकता है। समय निकालकर अपनी घरेलू सहायक या सहायिका के दुख-दर्द को सुना और उसकी खुशियों के भागीदार बना जा सकता है। जिन्हें हम देख रहे हैं, वे क्रियाशील हैं और हम विश्राम की स्थिति में होते हुए भी थकान का अनुभव करने लगते हैं।

कई बार गैरजरूरी सक्रियता के चंगुल में हम फंस जाते हैं। जब शरीर को आराम देने का वक्त होता है, तब भी हम लगातार सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ पढ़, देख रहे होते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी किसी एक गतिविधि को लंबे समय तक प्रसारित करते हुए सक्रिय बने रहते हैं। यह सक्रियता अनावश्यक-सी व्यस्तता में तब्दील हो जाती है। यह हमें ऊर्जा तो नहीं देती, थकावट अवश्य दे जाती है। सक्रियता के साथ ठहराव को भी खुले मन से स्वीकार करने की जरूरत है। हमने ठहरना ठीक से सीखा नहीं है। हम अपने आप को सक्रियता, दौड़-भाग से अलग करके सोच ही नहीं पाते। जब हम खुद को बंधे-बंधाए प्रारूप से मुक्त करके तनिक ठहराव की मानसिकता बनाएंगे तो सचमुच एक खूबसूरत दुनिया हमारे सामने होगी।