किसान के मन में अगर संतोष है, तो वह सबसे ज्यादा अमीर है। इसी सिरे से यह भी कहा जा सकता है कि अगर व्यक्ति के मन में शांति है तो वह सबसे ज्यादा सुखी है। इसी तरह अगर किसी के मन में दया है तो वह श्रेष्ठ है और अगर वह स्वस्थ है तो भाग्यशाली है। ये सब बातें केवल कहने या पढ़ने मात्र के लिए नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने का एक ऐसा मंत्र हैं, जो व्यक्ति की निराशा में आशा का संचार करती हैं। इन विचारों की व्याख्या की जाए तो यही कहा जा सकता कि व्यक्ति अगर दूसरे के जैसा होने का प्रयास करेगा, तो उसके जीवन में असंतोष का भाव निर्मित होगा।

असंतोष का भाव ही अभाव का कारण

यह असंतोष का भाव ही अभाव का कारण बनता है, क्योंकि अपने मन में उपजी हर इच्छा को कई सीमाओं की वजह से पूरा करना संभव नहीं हो पाता है। इसके बाद जब अभाव का प्रभाव जीवन पर होता है, तब निराशा आती है। कहते हैं, जितनी बड़ी चादर होती है, उतना ही पैर पसारना चाहिए। यानी व्यक्ति की जितनी आय है, उतने में ही काम चलाना चाहिए। अगर हम अपनी आय से अधिक खर्च करते हैं, तो जीवन में कई प्रकार की समस्याएं बिना बुलाए ही आ जाएंगी।

परिश्रम का नतीजा अच्छा ही होगा

दुनिया में बहुत सारे लोग हैं, लेकिन सबके काम अलग-अलग प्रकार के हैं। मसलन, एक कक्षा के सभी विद्यार्थी आगे चलकर एक जैसे अधिकारी या कर्मचारी नहीं बनते। उनमें से कोई कलेक्टर या जिलाधिकारी बनता है, तो उन्हीं में से कोई चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी भी बनता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि युवा पढ़ाई के समय परिश्रम करता है, उसे बाद में आराम मिलता है और जो पढ़ाई के समय लापरवाही करता या मौज-मस्ती करता है, उसे बाद में परिश्रम करना पड़ता है।

माना जाता है कि जीवन में दो अवस्थाएं होती हैं। व्यक्ति के जीवन में अच्छे दिन भी आते हैं और बुरे दिनों का भी सामना करना होता है। बुरे दिन यानी अभाव का दौर, जिसमें खुद को बचाने के लिए केवल परिश्रम करना पड़ता है। यों युवा अवस्था परिश्रम करने के दौर के रूप में देखी जाती है। इस दौर में परिश्रम नहीं किया तो भविष्य में उसे परिश्रम करने के लिए तैयार रहना ही होगा। अगर हमारा पेट दस रुपए में भर जाता है तो उसके लिए पचास रुपए व्यय करने की इच्छा करना उचित नहीं। इसलिए कहा जाता है, संतोष जीवन का सबसे बड़ा धन है। जिसके पास संतोष है, वह सबसे बड़ा अमीर है, क्योंकि व्यक्ति की इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता। यह सही है कि किसी चीज की इच्छा करने से ही वह प्राप्त होती है। मगर क्या उसकी कोई सीमा होगी? आज एक इच्छा पूरी हुई तो कल दूसरी इच्छाएं पैदा हो जाएंगी। एक बात जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कुदरत का दिया हुआ कभी अल्प नहीं होता। हमारी इच्छाएं उसे अल्प बना देती हैं।

इसी प्रकार अशांत मन दुख को बढ़ावा देता है। जीवन में जितने भी तनाव आते हैं, उसके पीछे का मुख्य कारण मन की अशांति ही है। हमारे मन के किसी कोने में सुख और दुख दोनों ही विद्यमान रहते हैं, जो अलग-अलग परिस्थितियों के मुताबिक उभरते हैं। किसी वस्तु के प्रति बेलगाम आसक्ति अशांति लाती है। खासतौर पर तब, जब वह अप्राप्य हो। वर्तमान में अशांत मन को शांत करने के लिए व्यक्ति अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहा है, लेकिन उसे शांति नहीं मिल रही। दरअसल, ज्यादातर लोगों के जीवन में भटकाव है। लोगों ने स्थिरता को एक तरह से भुला दिया है या उन्हें भूलना पड़ा है। इससे निवृत्ति के लिए योग का सहारा लेना पड़ रहा है।

अगर मन की शांति चाहिए तो सबसे पहले अपने विचारों को सात्विक करना होगा। ऐसा करने से सकारात्मक दिशा का बोध होगा, जो जीवन को सार्थकता प्रदान करेगा। ऐसा करने के लिए हमको सबसे पहले अपनी दिनचर्या को ठीक करना होगा। यह जीवन को व्यवस्थित करेगा। इस दिनचर्या में स्वकेंद्रित जीवन के मुकाबले सबके हित के बारे में सोचना और अपनी बनाई चारदीवारी से बाहर आना होगा। मन को शांत रखने के लिए संतोष को माध्यम बनाने से लेकर एकांत और विचार का रास्ता अपनाया जा सकता है। कुछ रास्तों से मिली शांति ही सुख का जरिया बनेगी।

अपने मन को निर्मल बनाने के लिए हमें दूसरों के दुख को महसूस करने की जरूरत है। हमारे अंदर दया का भाव होगा तो हम एक गरीब व्यक्ति का हौसला बढ़ाने का कार्य कर सकते हैं। आज व्यक्ति को ‘मैं’ में घिरे भाव ने बुरी तरह घेर लिया है। यह ‘मैं’ अहंकार लाता है। हमको व्यक्ति-केंद्रित सोच के मुकाबले सामूहिकता की तरफ कदम बढ़ाना होगा। जब ‘हम’ का बोध होगा, तो यहीं से हमको समाज भी अपना दिखाई देगा।

यह वास्तविकता है कि हम अकेले नहीं हैं। हम एक बड़े समाज के हिस्सा हैं। हमारी पहचान समाज ही कराता है, लेकिन आज का व्यक्ति समूह में जीना नहीं चाहता। अगर समूह में जिएगा तो उसे हमेशा यह अहसास होगा कि संगठन में शक्ति है। अकेलापन व्यक्ति को भय से ग्रस्त कर दे सकता है। अपने दायरे से बाहर निकल कर जीकर देखने से एक ऐसी सुखद अनुभूति हो सकती है, जिसकी हमें तलाश रहती है।