किसी भी काम की नींव दिमाग में उत्पन्न विचार से बननी शुरू होती है। हर नया अनूठा विचार हम सभी को विस्मित करता आया है। विचारों का मंथन जटिल प्रक्रिया है, जिसे पूरी गंभीरता से निभाना बेहद आवश्यक है, क्योंकि एक सामान्य-सा विचार भी बहुत बड़ा परिवर्तन लाने में सक्षम होता है। जब भी हम दुनिया, समाज, स्वयं की बेहतरी, समृद्धि की बातें करते हैं या किसी और महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करके समाधान निकालने की कोशिश करते हैं, कभी-कभी अपने ही विचारों में उलझ से जाते हैं। ऐसी बातें भी कहने लगते हैं, जिनका हमारे उद्देश्य की सफलता से कोई सीधा संबंध नहीं होता है। संभवत: इसका कारण मनुष्य का जटिल मन है जो कई सारी चीजों से लगातार प्रभावित होता रहता है।

जब हम किसी महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा कर रहे होते हैं, निर्णायक भूमिका में होते हैं या हमारे विचारों से दूसरों या स्वयं के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता दिखाई देता है, तो हमें अपने मन को संतुलित करना, उस पर लगाम लगाना बेहद जरूरी हो जाता है। पूर्वाग्रहरहित, निष्पक्ष और विश्लेषणात्मक सोच के साथ हमें अपने विचार प्रस्तुत करने चाहिए। उद्वेलित मन कभी भी सार्थक सुझाव नहीं दे सकता है। अगर हमारे विचार हम पर हावी होने लगें और हम अपने भीतर का संतुलन खोता हुआ महसूस करें, तो हमें खुद को शांत कर लेना चाहिए।

अशांत मन के साथ हम आशावाद का चोगा पहनकर प्रयास करते हैं

अक्सर अशांत और कुंठित मन के साथ हम आशावाद का चोगा पहनकर प्रयास जरूर कर रहे होते हैं कि भविष्य से जुड़ी उम्मीदों की बातें की जाएं, समाधान खोजे जाएं, पर हमारे भीतर का भय, भावनात्मक संताप हमें संतुलित नहीं रहने देता। हम अपने उलझनों से भरे मन से कभी स्थितियों, परिस्थितियों की निंदा करने लगते हैं तो कभी स्वार्थ और कुंठा के वशीभूत होकर वास्तविक मुद्दे को किसी और ही दिशा में ले जा रहे होते हैं।

समाधान पर चिंतन करने की जगह हम दूसरों पर दोषारोपण कर खुद को विमुख कर लेते हैं। अपने विचारों की गाड़ी पर सवार होकर कभी भूतकाल और कभी भविष्य में स्वयं को और अपने अनुयायियों को घुमा रहे होते हैं। ऐसा अगर हमारे द्वारा हो रहा हो तो हमें सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि यह रवैया हमारे लक्ष्य तक हमें पहुंचाने में असमर्थ है। हमारी यह असंतुलित, अस्पष्ट मानसिकता हमें पहले से भी अधिक पीछे की ओर धकेल देती है।

उलझनों के जंजाल में हम खुद को और उलझाते जाते हैं, जबकि अगर हम खुली सोच के साथ, संतुलित और स्वस्थ मानसिक स्थिति लिए आगे बढ़ें तो निश्चित ही ऐसा कोई भी मुकाम नहीं है जो इतना पेचीदा हो कि वह केवल विचार-विमर्श, बहस-मुबाहिसे में ही बना रहे और कभी उसे ठोस जमीन ही न मिल सके।

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विचारों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित बनाए रखना, मुद्दे से हटकर किसी भी तरह के विचार जो केवल भटकाव के रूप में हमारे मन मे प्रवेश कर रहे हो, उन्हें पूरी तरह से निष्क्रिय कर देना ही अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए एक सही शुरुआत कही जा सकती है। जब भी हम अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें तो हमें अभी तक हमारे साथ जो भी अवांछित हुआ है, जिन लोगों ने हमें निराश किया है, हमारे जीवन के जो अभाव रहे हैं, इन भटकाव भरे विचारों में डूबकर दुखी होने में समय नहीं व्यर्थ करना चाहिए। अपने आप को सभी उलझनों से आजाद कर अपने विचारों और प्रयासों को आगे की सफलता की रणनीति बनाने पर केंद्रित कर देना चाहिए।

इसी तरह, जब हम अपनी दुनिया, अपने समाज को लेकर सपना देखते हैं, जिसमें हम सुंदर, समृद्ध और स्वस्थ समाज की परिकल्पना कर रहे होते हैं, तब हम मनुष्य को हटाकर परियोजना नहीं बना सकते हैं। समाज मनुष्य से बनता है। हमारे प्रयास मनुष्य को सशक्त बनाने के लिए होने चाहिए। मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के साथ ही, इस पर भी चिंतन किया जाना चाहिए कि उसे कैसा परिवेश मिल रहा है, सम्मान, स्नेह, आत्मीयता से हर इंसान के भीतर के अच्छे गुणों को उभरने के लिए जमीन मिलती है। अच्छी सुविधाएं, शिक्षा, सुरक्षा, बेहतर जीवन स्तर गरिमामय, जीवन बिताने में सहायक बनता है। वहीं उम्मीदों और सपनों को पूरा करने के अच्छे अवसर मुहैया करवाना- यह इंसान के जीवन को खुशियों और संतुष्टि के भाव से भर देते हैं।

सुंदर समाज बनाने के विचार के केंद्र में इंसान के उत्थान के मुद्दे से इतर किसी और मुद्दे पर बात करते समय यह समझना चाहिए कि कहीं यह किसी तरह का वैचारिक भटकाव तो नहीं है। हमारे विचार हमारी ही जीवन यात्रा और अनुभवों का परिणाम होते हैं, जिनका बार-बार हमें अवलोकन करते रहना चाहिए। नकारात्मक अनुभवों के बाद भी हम संतुलित, स्वस्थ, निष्पक्ष सोच बनाए रख सकते हैं। हमें अपने मन में उत्पन्न हो रहे अनावश्यक भटकावों से खुद को मुक्त करने की कोशिश करते रहना चाहिए।

विचारों के मंथन में ढेर सारे विचारों के बीच कुछ ही विचार ऐसे होते हैं, जिनकी हमेशा मिसाल दी जाती है, वे हमेशा सबके लिए पथ-प्रदर्शक बन जाते हैं और हर समय प्रासंगिक बने रहते हैं। ये विचार गहरे चिंतन, मनन, दूरदर्शिता, एकाग्रता, उदारता, परिपक्वता, अध्ययन , ठहराव और बिना पूर्वाग्रह सीखने-समझने की इच्छाशक्ति से उत्पन्न होते हैं। हमें प्रयास करना चाहिए कि हम अपने विचारों को हमेशा संतुलित, स्वस्थ और परिष्कृत करते रहें।