हमें रोजाना की जिंदगी में शोरशराबा, अच्छी बुरी घटनाओं, लोगों के साथ नोकझोंक आदि का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हमारी भावनाओं में उतार-चढ़ाव होता रहता है और मन एक अजीब-सी वितृष्णा, उलझन और चिढ़न से भर उठता है। यह स्थिति हमें न तो सुकून से रहने देती है, न एकाग्रचित्त होकर कोई काम करने देती है। इस कोहराम से खुद को बचाने या दूर रखने के लिए कुछ बातें समझनी होंगी।

हम उन बातों पर ध्यान दें जो हमारे नियंत्रण में हैं

इस दुनिया में चारों तरफ जो कुछ घट रहा है, जो बातें लोग कह रहे हैं, वह सब विभिन्न संचार माध्यमों से जानने को मिलता है, लेकिन यह हमें तय करना है कि कौन-सी बातें हमारी सेहत, आर्थिक स्थिति या परिवार पर असर डाल सकती हैं और कौन नहीं। किन बातों पर हमारा नियंत्रण है और किन पर नहीं। जो बातें हमारे मतलब की नहीं हैं और हमारी स्थिति पर असर नहीं डालतीं या फिर जो हमारे काबू में नहीं हैं, उन्हें नजरंदाज करना ही अच्छा है। बेहतर होगा कि हम उन बातों पर ध्यान दें जो हमारे नियंत्रण में हैं।

साधारण रोजमर्रा की चीजों को लेकर चिड़चिड़ापन ठीक नहीं

साधारण रोजमर्रा की चीजों को लेकर चिड़चिड़ापन ठीक नहीं। हम रोज अपने कार्यस्थल पर या खरीदारी के लिए बाजार जाने के लिए निकलते हैं, तो रास्ते में जाम, अचानक बरसात आना, कड़ी धूप या उमस होना आदि चीजें होती हैं। इनको लेकर जी जलाना, तनाव में आना बेमानी है। इसी तरह चीजों के भाव ज्यादा होना, दुकानदार या बैंक कर्मचारी का धीमी गति में काम करना आदि सब भी सामान्य चीजें हैं, जिन्हें हम चाह कर भी पूरी तरह नहीं बदल सकते। हम हर मामले में अपने मुताबिक परिणाम की फिक्र नहीं करें। जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। हमें हर रोज बहुत सारे काम करने होते हैं। कुछ में हम सफल होते हैं और कुछ में वांछित परिणाम नहीं मिल पाते हैं। यह जीवन का हिस्सा है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम हर काम शुरू करने से पहले चिंता में ही घुलते रहें और अपना समय बर्बाद करते रहें।

कई बार हम जो चिंता करते हैं, वे तर्कहीन और पुराने अनुभवों पर आधारित होती हैं, जो जरूरी नहीं कि बार-बार घटित हों। ‘डोंट बिलीव एवरी थिंग यू थिंक’ के लेखक जोसेफ एनागुएन ने बहुत अच्छी बात कही है- ‘विचार संज्ञा है और विचार करना क्रिया है। उन्हें अपने स्वभाव के अनुसार ही रहने दें।’ समस्या यह है कि हम सोचने में कुछ ज्यादा ही समय खर्च करते हैं। जब भी हमें नकारात्मक विचार घेरें, हम सजग हो जाएं। बहुत संभव है कि उस समय हम जरूरत से ज्यादा सोच रहे होंगे। यही वह समय है जब हमें बिल्कुल शांत हो जाने की जरूरत है।

कुछ मामले में माहौल से निरपेक्ष रहना सीखना होगा। कछुए किस तरह अपने सारे अंगों को अपने खोल में समेटकर अपनी ही दुनिया में रहता है, बाहरी माहौल से पूरी तरह निरपेक्ष। भय और असुरक्षा की भावना हर किसी में होती है। कभी हमें नए लोगों से, कभी नई स्थिति से, कभी नई घटनाओं से डर लगता है, लेकिन हमें इनसे निरपेक्ष भी रहना चुनना होगा। इसी के समांतर देखें तो जीवन में सुरक्षा ही सब कुछ नहीं है। हमें थोड़ा निडर होना पड़ेगा। फिर हमारी उड़ान को कोई नहीं रोक सकेगा।

एक बार हम इन चीजों से बेपरवाह हो जाएं तो शांति और सफलता की ओर आराम से आगे बढ़ सकेंगे। हमें सिर्फ अपने लक्ष्य निर्धारित करने हैं और पूरा ध्यान उन्हें हासिल करने में केंद्रित करना है। हम अपने मूल्यों और लक्ष्यों को जानते हैं तो आप अपनी एक मौलिक शैली विकसित कर लेंगे, ताकि हमको कोई पीछे नहीं खींच सके। जीवन अपने सिद्धांतों और मूल्यों के निर्वाह के लिए है और उनके साथ-साथ अपने वास्तविक सपनों को पूरा करने के लिए। इसलिए हमारे लिए दूसरी सभी चीजें बेकार हैं।

हम अपने माहौल को जिस रंग के चश्मे से देखते हैं, वह हमें वैसे ही दिखता है। हम चाहे तो अपने आसपास के माहौल से सकारात्मक ऊर्जा खींच सकते हैं। इसका मतलब है कि हम दुनिया में जिस तरह की ऊर्जा को प्रस्तुत करते हैं, वह उसी प्रकार की ऊर्जा को अपनी ओर खींचता है। लोकप्रिय पुस्तक ‘मेनिफेस्ट’ में लेखिका राक्सी नफूसी ने लिखा है, ‘मेनिफेस्टिंग’ का पहला सिद्धांत है कि हम अपने दिमाग में उस चीज की एक स्पष्ट और व्यावहारिक छवि बनाएं, जिसे हम चाहते हैं। छवि निर्माण का यह चरण बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हमारा दिमाग मानसिक छवियों को सच मानकर ही उन पर प्रतिक्रिया करता है। एक बार हमारा दिमाग यह करने लगे तो फिर हम सकारात्मक भावनाओं को महसूस कर सकते हैं। कुदरत ने हमें जो नेमतें दी हैं, उनके प्रति शुक्रगुजार होने की आदत डालने की जरूरत है।

अनिश्चितता से घबराना नहीं चाहिए। हम हमेशा उन बातों के लिए चिंता कर लेते हैं जो हमारे वश में नहीं होतीं। हम चाहते हैं कि जीवन में वही हो जो हमने सोच रखा है। यानी हम सब कुछ निश्चित और तयशुदा चाहते हैं। जबकि सच यह है कि इस दुनिया में तय सिर्फ मृत्यु है। बाकी सब कुछ अनिश्चित है। हम जितनी जल्दी इस बात को समझ लेंगे, उतनी जल्दी और सहजता से अपने जीवन की ज्यादातर चिताओं से मुक्त हो जाएंगे। अनिश्चितताओं और आकस्मिक घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया को संयत रखना चाहिए और इनसे डरना, घबराना और चिंतित होना छोड़ देना चाहिए।

हमारे साथ अतीत में या वर्तमान में जो कुछ हुआ है और वह हमें पसंद नहीं या हमारे लिए नुकसानदायक हो गया है तो उसे दिमाग में बार-बार दोहराने से हमें क्या फायदा हो सकता है! फायदा तभी होगा जब हम या तो एक बुरा सपना या बुरा दौर समझ कर उसे भूल जाएं या फिर शांत मन से बैठकर घटना का अविवेकपूर्ण विश्लेषण करें और उसका हल निकालने की कोशिश करें।