सपनों की एक अलग दुनिया होती है। हर किसी को सपने देखना पसंद होता है। हर आयु वर्ग के लोगों के सपने अलग-अलग होते हैं। यह सिलसिला बच्चे के जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाता है। हम देखते हैं कि बच्चा जन्म लेने के बाद नींद में भी मुस्कराता है। होठों को हिलाता है। इसका मतलब है कि वह सपनों की दुनिया में खोया हुआ है। शायद उसे सपने में मां थपकी दे रही हो या दूध पिला रही हो, झूला झुला रही हो। यह सब महसूस कर वह उमंग में रहता है। थोड़ा बड़ा हो जाने पर उसे चाकलेट, परियों वगैरह के सपने आने लगते हैं। कई बच्चों को कक्षा में प्रथम श्रेणी में पास होने या फिर क्रिकेट में छक्का मारने के भी सपने आते हैं।
युवाओं के भीतर धैर्य, परिश्रम जैसे गुणों का हो रहा है लोप
यह दौर चलता रहता है। तरुणाई के सपने अलग तरह के होते हैं। प्रेमी और प्रेमिकाओं के सपनों की उमंग कुछ और ही होती है। धीरे-धीरे इंसान जीवन के उस पड़ाव पर भी पहुंचता है, जब वह खुली आंखों से सपने देखने लगता है। इस दौर में यह क्रम जवानी से ही शुरू हो जाता है। जल्दी अमीर बनने के सपने, कम समय में अधिक ख्याति प्राप्त करने के सपने। इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के मंचों की रील वाली दुनिया युवाओं को भी सपनों के रील में उलझाए हुए है। अब युवाओं के भीतर धैर्य, परिश्रम जैसे गुणों का लोप होता दिखाई दे रहा है। यह सब खुली आंखों से सपने देखने के कारण हो रहा है। सपने ऐसे, जिनकी हकीकत बनने की चाह तो है, लेकिन उसके लिए समर्पित होकर कार्य करने की क्षमता नहीं है, न ही उस क्षमता को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
मासिक किस्त और ऋण के दम पर पूरे किए जा रहे हैं सारे शौक
गृहस्थी में रमे हुए मध्यवर्ग के दंपती के सपने भी उसे अपने भार से दबाए जा रहे हैं। अच्छा मकान, बड़ी गाड़ी, देशाटन, बैंक में पैसे के सपनों ने अवसाद को आमंत्रित कर दिया है। सीमित संसाधनों के साथ ये सब सपने खुली आंखों से देखे जा रहे हैं। फिर जब ये सब हकीकत में नहीं बदलता तो पारिवारिक कलह सामने आती है। इससे परिवार में टूटन और बिखराव देखने को मिल रहा है। इस सबसे बच्चों में अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कुछ दंपती यह सब प्राप्त करने के लिए ऋण लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति को अपनाते हैं। जो कुछ समय के लिए सुखद अहसास तो देता है, लेकिन उसके परिणाम सदैव सुखद नहीं होते। आज बड़े-बड़े महानगरों में रहने वाले युवा दंपती अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करने की प्रवृत्ति रख रहे हैं। मासिक किस्त और ऋण के दम पर सारे शौक पूरे किए जा रहे हैं।
ऐसे लोग अपने भविष्य से अनजान हैं। आजकल बहुत सारी ऐसी घटनाएं सुनने को मिल रहीं हैं, जो पीड़ादायक हैं। जो सभ्य समाज और बुद्धिजीवी समाज के लिए बड़ा प्रश्नचिह्न हैं। सपनों को टूटता देख, पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा न कर पाने पर दंपती आत्महत्या जैसा त्रासद कदम उठा रहे हैं। पिछले दिनों इन्हीं सब कारणों से एक इंजीनियर ने उफनती नदी में कूदकर अपनी जीवनलीला को समाप्त कर लिया। यह सब सपनों की अति के कारण है। सपने देखना अच्छी बात है। उन सपनों के लिए प्रयास करना उससे भी अच्छी बात है। लेकिन सपनों के पूरा न होने पर टूट कर बिखर जाना सबसे बुरी बात है। हमें संयम, समझ और धैर्य से काम लेना चाहिए। सीमित संसाधनों में कैसे खुशी को खोजा जा सके ऐसा उपक्रम करना चाहिए।
हमारे पूर्वजों ने जो जीवन पद्धति हमें विरासत में दी, हमने उसको जीवन में आत्मसात नहीं किया। हमने उसे भुलाकर सिर्फ उपभोग के पीछे भागते रहने का सिद्धांत अपना लिया। आज हम आत्मनियंत्रण जैसे विचारों को छोड़ चुके हैं। जब हम आत्मनियांत्रित होकर कार्य करेंगे तो निश्चित ही सारे संकटों से बचे रहेंगे। सपनों की अप्रतिम शाखाओं में झूलने का मन सभी का करता है, लेकिन उन शाखाओं में इतना भार न पड़े कि वे टूटकर बिखर जाने लगें और हम कोई गलत कदम उठा बैठें। जीवन में सपनों की अति से बचना अति आवश्यक है। इच्छाओं के अप्रतिम विस्तार से बचना चाहिए। चाह की भूख कभी खत्म नहीं होती। प्रतिपल बढ़ती ही जाती है।
सपनों की अति के पीछे भागना एक ऐसी दौड़ है जो कभी खत्म नहीं होती, बल्कि बढ़ती ही चली जाती है। बिना लक्ष्य के अप्रतिम आकांक्षाओं के साथ भगाना कहां की बुद्धिमत्ता है? आज के इस दौर में सपनों के मकड़जाल में महानगर से लेकर गांव, कस्बों तक के लोग फंसे हुए हैं, जो इससे बाहर निकलने का उपक्रम नहीं कर पाते। जीवन में लक्ष्य बड़े होने आवश्यक हैं, लेकिन जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है। उस विचार का अनुगमन करना भी आवश्यक है। अन्यथा हम स्वयं ही कलह, विशाद, बेचैनी और अवसाद को आमंत्रित कर बैठेंगे। जीवन की राह में सपनों का अनियंत्रित हो जाना दुर्घटना को आमंत्रित करने जैसा है।
इस दौर में हर आयु वर्ग के लोगों को जीवन की रफ्तार को थोड़ा-सा विराम देकर विचार करने की जरूरत है। यह बेवजह की रफ्तार हमसे हमारा सुकून छीन रही है। हमारे भीतर अनेक तरह के विकारों को जन्म दे रही है। इन विकारों का मर्दन संयमित जीवन चर्या से ही संभव है। इस दौर में आत्मवालोकन की जरूरत सबसे ज्यादा है। बेवजह के सपनों के बोझ तले जीवन के उमंग और आनंद को दबने देने से बचाना होगा।