कोलकाता में हुआ बलात्कार और हत्याकांड भारत जैसे सभ्य होने का दावा करने वाले देश के लिए एक और शर्म का विषय है। देश में बेटियां हर जगह असुरक्षित महसूस कर रही हैं। आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, मगर सरकारों की कुंभकर्णी नींद नहीं टूट रही है। अब तो जैसे कोई भी विश्वास के योग्य नहीं रहा। अपने ही हैवान बन रहे हैं। बहू-बेटियां घर में भी असुरक्षित हैं। ऐसी घटनाओं से सरकारों के सुरक्षा संबंधी दावों की पोल खुल गई है। आखिर कब तक बेटियां दरिंदगी का शिकार होती रहेंगी। कोलकाता की घटना पर लोगों का रोष अभी शांत भी न हुआ था कि महाराष्ट्र के बदलापुर में यौन उत्पीड़न के खिलाफ लोगों की नाराजगी फट पड़ी।
सुरक्षा को लेकर दावे बहुत हैं, लेकिन धरातल पर सच्चाई की बेहद खतरनाक हैं तस्वीरें
अपराध की तारीख बदल जाती है, मगर तस्वीर नहीं बदलती। बेशक प्रतिवर्ष आठ मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है, मगर ऐसे आयोजन मात्र औपचारिकता भर रह गए हैं। हर वर्ष एक संकल्प लिया जाता है कि महिलाओं को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई जाएगी, अत्याचारों का खात्मा किया जाएगा। उनकी सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, मगर धरातल पर सच्चाई की बेहद खौफनाक तस्वीरें हैं। यों, आज महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी की बुलंदियां छू रही हैं, चांद तक अपनी काबिलियत का परचम लहरा रही हैं। महिला सुरक्षा के लिए कई कड़े कानून भी हैं, मगर व्यवहार में उनका कोई खौफ नजर नहीं आता। अगर वे कानून सही तरीके से लागू होते, तो ऐसे मामलों में इजाफा न होता। हर वर्ष के आंकड़े में महिलाओं के साथ दरिंदगी लगातार बढ़ी दर्ज होती है।
दरिंदों को जब तक कड़ी सजा नहीं मिलेगी, तब तक ऐसी घटनाओं पर नहीं लगेगी रोक
16 दिसंबर, 2012 को हुए निर्भया कांड को लेकर हर भारतीय उद्वेलित हुआ था। तब कानूनों को और कठोर बनाया गया था, और उम्मीद जगी थी कि महिलाओं के साथ हैवानियत की घटनाएं बंद हो जाएंगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। तबसे अब तक लगातार बलात्कार और हत्या की घटनाएं बढ़ती गई हैं। दरिदों की अराजकता बढ़ती ही जा रही है। 12 सितंबर, 2018 को हरियाणा के रेवाड़ी में उन्नीस वर्ष की एक मेधावी छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया गया था। 27 जून, 2018 को मध्यप्रदेश के मंदसौर में एक सात साल की नाबालिग स्कूली बच्ची से सामूहिक बलात्कार किया गया था। वह बच्ची तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। उसके साथ हुई हैवानियत दिल दहलाने वाली थी। दरिंदों को जब तक ऐसी कड़ी सजा नहीं मिलेगी, जो दूसरों के लिए सबक साबित हो, तब तक ऐसी घटनाओं पर रोक लगना कठिन रहेगा।
यह बहुत चिंता का विषय है कि ऐसे प्रकरण थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। देश में लड़कियां कितनी महफूज हैं, इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है। देश में हर रोज अबोध बच्चियों से लेकर अधेड़ उम्र की महिलाओं से बलात्कार हो रहे हैं। 2024 के पहले ही दिन से महिलाओं पर अत्याचारों की शुरुआत हो गई थी। अब देश में प्रतिदिन ऐसे मामले हो रहे हैं और निरंतर इनमें वृद्वि हो रही है। छेड़छाड़ और तेजाब फेंकने जैसी घटनाएं भी रुकने का नाम नहीं लेतीं।
वर्ष 2019 में एक खौफनाक और दरिंदगी की हदें पार करने वाली घटना पंजाब के मोगा में हुई थी, जब बदमाशों ने चलती बस में लड़की से छेड़छाड़ की और विरोध करने पर बस से फेंक दिया, जिससे उस लड़की की मौत हो गई थी। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश का बदायूं एक बार फिर शर्मसार हुआ था, जहां दो नाबालिग चचेरी बहनों से सामूहिक बलात्कार का मामला प्रकाश में आया था। पांच आरोपियों ने शौच के लिए गई नाबालिगों को अगवा करके उनसे बंदूक की नोक पर बलात्कार किया था।
विडंबना है कि देश में महिलाओं पर जुल्मों की सूची लंबी होती जा रही है। मगर जब राष्ट्रीय राजधानी ही सुरक्षित नहीं है, तो गांवों और कस्बों का क्या हाल होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। समझना मुश्किल है कि आज आपराधिक मानसिकता वाले लोगों को महिलाओं से इतनी नफरत क्यों है। आदमी यह कैसे भूल रहा है कि जिसने उसे जन्म दिया वह भी एक महिला थी। अबोध बच्चियों तक से बलात्कार हो रहे हैं। कुछ बीमार मानसिकता के लोगों ने भारत की छवि को दागदार किया है। जनमानस को अब संकल्प लेना तथा एकजुट होकर ऐसे लोगों के खिलाफ खड़ा होना होगा, जो देश के लिए कलंक हैं। अगर अब भी कानूनी रूप से सख्ती नहीं बरती गई, तो ऐसे दरिंदे फिर से घिनौनी वारदात को अंजाम देते रहेंगे।
केंद्र सरकार को चाहिए कि देश के सार्वजनिक स्थलों पर हर समय सुरक्षा व्यवस्था कायम की जाए। सादी वर्दी में महिला पुलिस तैनात करनी चाहिए। सरकार को बिना समय गंवाए इन दरिंदों को कठोर से कठोर सजा देनी चाहिए। ऐसे लोगों को सामाजिक ताने-बाने की कोई फिक्र नहीं होती। समाज में ऐसे लोग बहुत घातक सिद्ध हो रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। ऐसे दुष्कर्म दर्शाते हैं कि समाज में विकृत मानसिकता के लोगों का बोलबाला होता जा रहा है।
समाज को ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की पहचान करनी होगी। कानून के रखवालों को भी समाज में घटित इन हादसों पर गहराई से चिंतन करना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे प्रकरणों पर विराम लग सके। पुलिस को अपने कर्तव्य का निर्वाह करना होगा, ताकि समाज में ऐसे हादसे रुक सकें। सरकार को प्राथमिक स्कूलों से लेकर कालेज स्तर तक की लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाने होंगे, ताकि वे दरिंदों के चंगुल से खुद को बचा सकें। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए हर गांव से लेकर शहर तक जागरूकता शिविर लगाने चाहिए।