खेल हमारे बहुत करीब होते हैं, क्योंकि पराक्रम हमारे अंदर से उसी के माध्यम से प्रकट होता है। यों तो हर खेल जीत या हार के लिए ही रचा गया और अपने अंदर के पराक्रम, वीरता को सुशोभित करने के लिए ही खेल को प्रत्येक संस्कृति में रचाया-बसाया गया। शारीरिक श्रम से श्रेष्ठ रक्त संचालन, स्फूर्ति, मानसिक क्रियाशीलता बढ़ाने और आपसी सामंजस्य, एकता, सौहार्द के संप्रतीक खेल खेलने वाले के साथ-साथ देखने वाले के लिए भी जीवन का पर्याय बन पड़ते हैं। हार के करीब जाकर जीत का अनुभव हमारी तंत्रिकाओं को विशेष प्रोत्साहन देता है।

दो देशों की मजबूत टीमों के बीच मैच होता है, तो रोमांच बना रहता

कभी हमारी भृकुटियां तन जाती हैं, तो कई बार उत्साह कई गुना हो जाता है। प्रार्थना या दुआओं में जुड़े हाथ बढ़ी हुई धड़कनों के साथ कितनी बार ऊपर वाले को पुकारते हैं, पता नहीं। इस अर्थ में कहें तो क्या ऊपरवाला भी सोचता होगा इस तरह के खेल के चक्कर में कि मुझे धर्मसंकट में डाल रखा है, गजब है! आमतौर पर किसी खेल में दो देशों की मजबूत टीमों के बीच मैच होता है, तो रोमांच बना रहता है। जीतने और हारने को लेकर उत्सुकता जिस स्तर की होती है, वह दर्ज करने के लायक होती है। मगर इसके विपरीत कोई मैच अगर किसी कमजोर मानी जाने वाली से हो तो जीत भले ही बहुत बड़ी हो, मगर जीतने पर शायद उतना उत्साह नहीं होता। हमारी बुराई और अच्छाई में कई बार महीन-सा अंतर गौर किया जा सकता है।

अगर जीत का पता पहले से हो तो कोई उत्साह नहीं पैदा होगा

ऐसे ही जीवन की कल्पना सभी के लिए, जहां सब स्वीकार्य हो। जीवन को भी करीब से देखा जाए, तो ऐसे ही कोई हमारे लिए बुरा है और कोई अच्छा। अच्छा जीत से संबद्ध है, तो हार बुराई से। समय गुजरने के साथ कई बार बुरे लोग भी उतने बुरे नहीं रह जाते या अच्छे हो जाते हैं और जो अच्छे हैं, वे कई बार बुरे हो जाते हैं। जीवन बहुत ही मायावी है, किसी रोमांचकारी खेल की तरह। कभी कोई जीतता है तो कभी कोई हारता है। अगर पता हो कि कौन पक्ष जीतेगा तो एक ईमानदार खेल प्रेमी के भीतर उस खेल के मैच को लेकर कोई उत्साह नहीं पैदा होगा। इसी तरह जीवन भी है। सरलता से मिली सफलता और जीतोड़ मेहनत कर मिली सफलता में भी उतना ही अंतर है। जो जीत ठोकरें खाकर मिलती है, वह सिखाती इतना है कि जीवन तर जाता है। वह गर्व को महसूस कराती है। वहीं सीधे और आसानी से मिली सफलता सिखाती भी कम है और उस पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। वह घमंड लाती है।

किसी मैच में जीत ने मन के समीकरण ही बदल दिए। एक अलग उत्साह और एक-एक पल की चर्चा। ‘यह नहीं किया होता तो वह नहीं होता’ जैसे विश्लेषण उस खेल को पराकाष्ठा तक पहुंचा देते हैं और मन के किसी कोने में मन यह भी कह रहा होता है कि सामने वाली टीम भी शानदार और प्रतिबद्ध होकर खेली। वास्तव में उसकी प्रतिबद्धता ने ही हमारे उत्साह को इतना ज्यादा कर रखा है। प्रतिद्वंद्वी टीम की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता ने ही हमें यह अपार खुशी दी है और इस तरह एक टीम हार कर भी परोपकार कर रही है।

इसलिए कोई भी हारने वाली टीम के साथ एक गोपनीय-सी सहानुभूति जुड़ ही जाती है। यह सही है कि किसी भी खेल में कोई भी टीम कभी भी हारना नहीं चाहती, मगर व्यवहार में सच यह है कि कोई एक टीम हार कर किसी एक को जीतने का मौका दे रहा होता है। इसलिए प्रत्येक हार आधी हार है और प्रत्येक जीत आधी जीत। जीवन में भी कई तरह की प्रतिद्वंद्विता रहती है और जब भी हमारा प्रतिद्वंदी किसी भी जगह हारता है, कुछ गलत करता है, गिर जाता है तो हमें एक छिपी हुई राहत मिलती है। बल्कि इससे ज्यादा कई बार अपने प्रतिद्वंद्वी की हार से खुशी होती है। यह एक आम मानवीय कमजोरी है। मगर उस थोड़ी-सी खुशी को पाने के लिए उस प्रतिद्वंद्वी को हमें अपने अंदर कितना समाया हुआ रखना पड़ता है! उसके पल-पल की खबर के साथ हमारे अंदर कहीं न कहीं वह जी रहा होता है।

हम खुश होकर भी बहुत कुछ हार रहे होते हैं। हम भी अपने प्रतिद्वंद्वी की तरह ही बनने लगते हैं और उसका जाप करते हुए एक दिन हम उसी की तरह बन जाते है। उसके बाद दोनों में कोई अंतर नहीं रह जाता है। जीवन का खेल ही निराला है। इसलिए संत कहते हैं कि इस जीवन को खेल समझो, उसमें ज्यादा संलग्न मत रहो, वरना यह जुनून कहीं का नहीं छोड़ेगा।

किसी खेल के मैच के बहाने एक ही सवाल मन में घूमने लगा है कि अब खेल क्या वास्तव में खेल रह गए हैं! घनघोर व्यावसायिकता के चलते ‘जेंटलमेन्स गेम’ अब ‘जेंटल’ न होकर अपनी अलग ही शक्ल ले चुके हैं। कई बार बेचारा खेल तो हाशिये पर होता है और मध्य में दौड़ता रहता है सिर्फ पैसा। सट्टेबाजी के आरोपों, आपसी छींटाकशी, मारपीट के प्रकरण और ऐसे विज्ञापनों की होड़, जो शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। मगर इनके बीच से निकलकर खेल शारीरिक, मानसिक, व्यक्तित्व विकास का अपना मूलभूत संदेश दे भी पा रहे हैं या नहीं।

यह भी जरूर हो गया है कि खेल से ज्यादा उसके आसपास का आभामंडल ही आजकल के युवाओं को प्रभावित कर रहा है। किसी ने कहा है कि एक खिलाड़ी हमेशा सच्चा और ईमानदार होता है। लेकिन वर्तमान में यह उक्ति कितनी ठीक बैठती है, उस पर विचार करना आवश्यक है।