मेघा राठी
आज के समय में अगर किसी भी व्यक्ति से पूछा जाए कि वह जीवन में खुश है या नहीं, तो पहले वह कहेगा कि हां, सब ठीक है। पर बाद में या तो खुद ही अपनी समस्याएं बताएगा या मन में उनके विषय में सोचेगा और खुद को दुखी महसूस करेगा। सभी या फिर ज्यादातर व्यक्ति किसी न किसी कारण से दुखी है और ऐसा नहीं कि यह केवल वर्तमान युग में ही है।
मनुष्य अपनी परिस्थितियों या स्वभाव के कारण दुखी रहता है। देखा जाए तो दुख एक स्थायी भाव बन गया है और खुश रहने के लिए व्यक्ति को कारण तलाशने पड़ते हैं। ऐसा क्यों है? जब दुख के लिए कारण नहीं ढूंढ़ने पड़ते हैं, वे अपने आप ही प्राप्त हो जाते हैं तो सुख के लिए वजह क्यों ढूंढ़नी है? माना जाता है कि दुख एक मानसिक अवस्था है। मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक दुखी रहता है, क्योंकि वह उस दुख के विषय में ज्यादा सोचता है… विचार करता रहता है।
जीवन में जब भी कठिन परिस्थिति आए तो एक बार यह चिंतन अवश्य करना चाहिए कि क्या यह समस्या वास्तव में दुख कहलाने के लायक है? क्या वास्तव में यह इतनी बड़ी बात है कि इसका कोई समाधान नहीं? दूसरी बात- यह दुख किस कारण से है? अगर कोई अपने कार्यक्षेत्र में सफल नहीं हो पा रहा है तो इसका अर्थ है कि वह सही दिशा में परिश्रम नहीं कर रहा।
अगर परिश्रम की दिशा सही है, तो ऐसे में वह व्यक्ति बीच में आई बाधाओं से घबरा कर अपने लक्ष्य के अंतिम चरण तक नहीं जा रहा और हताश होकर बैठ गया है। फिर तो इस कष्ट के कारण वह खुद है और निदान भी वही है। अपने उत्साह को जीवित रख कर पूरी तरह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए जुट जाना चाहिए, किसी का भी दुख सुख में अवश्य बदलेगा।
अगर हम अकेलेपन से दुखी हैं, हमको लगता है कि हमारे प्रिय आपका साथ छोड़ गए तो विचार करने की जरूरत है कि ऐसा होने का क्या कारण था? अगर हमारे स्वभाव में कमी है तो हमें उसे बदलने की जरूरत है। अगर वे प्रिय हमारी सफलता के समय के साथी थे, तब तो निश्चित है कि हमारे बुरे दिनों में वे हमें छोड़कर जाएंगे ही, क्योंकि वे सिर्फ सुख के साथी थे। ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए क्यों दुखी होना! हां, अगर हमारे बुरे दिनों में भी जिन्होंने हमारा साथ नहीं छोड़ा, पर अब वे हमसे दूर हो रहे हैं तो अवश्य विचार करना चाहिए, क्योंकि उनका जाना अवश्य ही किसी बड़े कारण से है।
सांसारिक सुविधाओं का अभाव इतना बड़ा कारण नहीं कि जिसके लिए दुखी हुआ जाए। रोग दुख के कारण हैं, क्योंकि ये कहीं न कहीं हमारी अपने प्रति लापरवाही से अर्जित किए गए हैं। कुछ लोग उस बात से भी दुखी हो जाते हैं, जिसका कोई अस्तित्व है ही नहीं। पर कुछ वजहों से दुखी होना उनके स्वभाव में घुल जाता है। दूसरी ओर कई लोग सुख की अधिकता के कारण उस बात को भी दुख समझने की भूल कर बैठते हैं जो दुख किसी भी प्रकार से नहीं है। जैसे कार सस्ती है, महंगी वाली नहीं… हमारा घर तीन कमरों का ही है… मेरे पास बड़ी ब्रांड के कपड़े नहीं हैं, आदि। वे दूसरों से अपनी तुलना करके ज्यादा दुखी रहते हैं।
दुख के अनेक कारण हैं। उसी प्रकार सुखी रहने की भी अनेक वजहें हैं। छोटी-छोटी बातों पर जिस तरह हम दुखी हो जाते हैं, उसी प्रकार छोटी-छोटी बातों पर खुश होने की आदत डालना चाहिए। मसलन, किसी नई क्रीम या साबुन का पहली बार प्रयोग करना है तो हम इसी बात पर प्रसन्न हो सकते हैं। आज खाना अच्छा बना… सुबह जल्दी उठ कर प्रकृति का सामीप्य पाना, टीवी पर मनपसंद फिल्म आ जाना आदि।
छोटी-छोटी खुशियां बिखरी हुई हैं। कभी अचानक खुद को उपहार दें, कभी-कभी यों ही बेवजह तैयार होकर घूमने की योजना बनाई जा सकती है। आसपास के लोगों से परिचय बढ़ाना बेहतर होता है। कोशिश करना चाहिए कि दिन में एक अच्छा काम जरूर करें। फिर अपने आप पता चल जाएगा कि दुख ज्यादा मात्रा में आपके समीप रहेंगे या फिर खुशी।
यह सही है कि दुख के राजनीतिक या सामाजिक आधारों पर कई बार हमारा बस नहीं चलता और इसके हल के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत पड़ती है। लेकिन अगर रोजमर्रा के आम दुखों की बात करें तो एक स्तर पर उसका हल हम खोज सकते हैं। प्रार्थनाएं सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और हमें हमारे दुख की नकारात्मकता से हटाकर उसके समाधान खोजने की ओर प्रेरित करती हैं।
अब जब भी कभी हम महसूस करें कि हम दुखी हैं तो पहले कारण तलाशने कोशिश करें कि क्या यह वास्तव में दुख है या एक समस्या है। अगर हम वास्तव में दुखी हैं तो भी मानसिक तौर पर कमजोर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि चिंतन, प्रयास और मजबूत इच्छाशक्ति ही उसे खत्म भी करेंगे। खुद पर ध्यान देने की जरूरत है, दूसरों पर नहीं, क्योंकि जीवन हमारा है।