पूनम पांडे

हमारा नजरिया और हमारी सकारात्मक समझ ही हमारे उत्कृष्ट जीवन का निर्धारण करते हैं। यानी सीधा चले तो आराम से पहुंचोगे, और टेढ़ा-मेढ़ा चले तो रास्ते में लुढ़क जाओगे। मगर कुछ लोग जीवन को इतना जटिल बना देते हैं कि यह जैसे कोई अंधा कुआं, कोई अनसुलझी पहेली या कोई ऐसी भूलभुलैया है, जिसका मकसद बस उलझाना ही है। मगर गहराई से सोचें तो ऐसा कतई नहीं है।

एक चिंताग्रस्त कारोबारी ने एक संत से पूछा कि अपने मानसिक तनाव से वह किस तरह बाहर निकल सकता है। संत ने कहा, बहुत आसान है, भीतर बाहर एक जैसे रहो। इससे चेहरे पर मुखौटा नहीं लगाना पड़ेगा। दिमाग को पता रहेगा कि आगे करना क्या है। पर कैसे? उस कारोबारी ने पूछा। संत ने कहा, देखो उस किसान को।

उसके भीतर और बाहर के मानसिक भाव में किसी तरह का विभाजन नहीं है। वह अपने दुख और परेशानी का कारण जानता है। बीज नहीं फूटे तो वह किसी से दुबारा बीज मांगने चला गया। उसे अपनी समस्या का निवारण करने आता है। इसलिए वह मानसिक रूप से मजबूत है।

यह सच है कि जीवन रंग-बिरंगा है और समय-समय पर इस जीवन में प्रलोभनों की बाढ़ भी चली आती है और वही समय ऐसा होता है कि सजग रहा जाए। यहां पर हमको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि किसी का अंधानुकरण घातक है। इसके दो बड़े नुकसान हैं। पहला यह कि हम अपनी स्वाभाविकता को भूल जाते हैं, क्योंकि किसी और के हिसाब से जीने लगते हैं।

दूसरा यह कि दूसरे हमें झूठा, मक्कार और कृत्रिम मानने लगते हैं, क्योंकि हम औरों के इशारे पर चलने लगते हैं। एक समय ऐसा था जब हर कलाकार को अमेरिका और यूरोप से वजीफे मिल रहे थे, उनको विदेश में बंगले उपहार में मिल रहे थे। ऐसे ही समय में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां से पत्रकारों ने सवाल किया था कि, ‘अब आप नब्बे बरस के होने जा रहे हैं।

सारी दुनिया आपको अपने यहां रहने को बुला रही है, यहां तक कि अब भी पाकिस्तान सरकार मान-सम्मान के साथ आमंत्रण दे रही है, पर आप वहां जाने से साफ इनकार कर देते हैं, क्यों? बिस्मिल्ला खां ने जवाब दिया कि अरे, कैसे चले जाएं हम, वहां पर हमारा बनारस है क्या। हमारी गंगा मैया की लहरें हमको रोज दर्शन कैसे देंगी।… ऐसा कितने लोग सोच पाते हैं।

एक बात और है, जीवन को समरस बनाए रखने के लिए हम पानी जैसे बन जाएं। सबमें समाना सीख लें। मगर होता इसका ठीक उलटा है, जो आज मानसिक अवसाद और आत्महत्या तक का कारण बन रहा है। दरअसल, कुछ लोग एकदम ही मौन रहना सीख लेते हैं और किसी से भी अपनी बातें साझा नहीं करना चाहते।

ऐसे लोग काफी नकारात्मक, उदास और घुटे-घुटे से होकर रह जाते हैं। यह महत्त्वपूर्ण बात है कि बस में, राह में, बाजार में, जिससे संभव हो बात करनी चाहिए और अपनी सामाजिकता बढ़ानी चाहिए। कोई न हो तो दूधवाले, सब्जीवाले से ही संवाद करना चाहिए।

एक बार एक प्रबंधक अपने कुछ युवा सहायकों के साथ कंपनी के प्रचार पर गया। वे लोग एक गांव में गए। सर्वे करते हुए एक सुनसान जगह पर जोर की भूख लगी। रात हो गई, अब क्या हो। तभी उनमें से एक युवक ने, जिसके पास डिब्बा भर कर सत्तू रखा था, एक कुएं से पानी लिया और सत्तू घोल कर सबको पिला दिया। वह सत्तू सबको तृप्त कर गया। पूछने पर युवक ने बताया कि यह नुस्खा उसके सब्जीवाले भैया ने बताया था। इस तरह वह युवक अपने प्रबंधक का सबसे भरोसेमंद कार्मिक बन गया।

सबसे खास बात है कि अपनी दिनचर्या की रूपरेखा एक बार मन में सोच लें। आपको उत्साह से काम करते हुए दिन सफल बनाना है, तो उसके लिए अपना स्वभाव और अंदाज सोचकर अपने लिए माहौल खुद बनाएं। ऐसा अभ्यास हर दिन करते रहेंगे, तो जीवन बनेगा सचमुच आसान। इधर जीवन को इलेक्ट्रानिक उपकरणों और कपड़ों से लाद कर बोझिल बनाने की आदतें भी खूब परवान चढ़ने लगी हैं। एक बटन दबाया तो सामान मंगा लिया।

एक घंटी बजी, सामान आ गया। जबकि कहते हैं कि थोड़ा हमेशा बहुत होता है, इसे अपना जीवन मंत्र बनाना चाहिए। कुछ दिन पहले एक खबर पढ़ी थी कि किसी देश में एक महिला ने एक लाख डालर एक संस्था को सौंप दिए, इस शर्त के साथ कि उसके ब्याज से गांव और देहात के किशोरों को खिलाड़ी बनने में सहायता मिलेगी।

खुद वह महिला एक उद्योगपति है। मगर वह कमाई को खुद पर ही खर्च करने की हिमायती नहीं है। जो थोड़े में और दूसरों के लिए जीना सीख ले, उसके जीवन में आनंद सदा बना रहेगा। उमंग कभी कम न होगा, संगीत की तरंगें सदा उठती रहेंगी।