प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 15-16 नवंबर को तुर्की में जी-20 सम्मेलन में हिस्सा ले रहे होंगे तो वहां वह शायद इकलौते होंगे जिसने बाकी सभी 19 देशों का दौरा किया हो। 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी जी-20 के बाकी सभी 19 देश होकर आ गए हैं। उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह का जी-20 में एक बौद्धिक, उम्रदराज राजनेता की छवि थी। एक ऐसे राजनेता की जो वहां मौजूद बाकी नेताओं की तुलना में अर्थशास्त्र का ज्यादा ज्ञान रखता था। यह अलग बात है कि जब उन्होंने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया तो उनका खुद का अर्थशास्त्र गड़बड़ाने लगा। लेकिन तब विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों का हाल भी बहुत अच्छा नहीं था। इसलिए मनमोहन का सिर ऊंचा ही रह गया था।
मोदी दूसरे देशों की यात्रा करने और वहां के नेताओं को अपने यहां बुलाने को लेकर हमेशा जोश में रहते हैं। इसकी वजह यह है कि वह खुद को दुनिया से परिचित कराना चाहते हैं और दुनिया को खुद से। उन्होंने भारत को एक ब्रांड के रूप में ज्यादा पुख्ता पहचान भी दिलाई है। बाकी कोई प्रधानमंत्री ऐसा नहीं कर पाए थे।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बात करें तो वह जी-7 के बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों तक ही खुद को सीमित रखते हैं। असल में वह और मोदी अमेरिका के दो दौरों के दौरान एक-दूसरे पर पूरी नजर रखते रहे थे। और अब मोदी ब्रिटेन पहुंचे हैं। कुछ ही सप्ताह पहले जिनपिंग वहां होकर आए हैं। हालांकि, दोनों देशों का आर्थिक स्तर काफी अलग है। ब्रिटेन ने चीन को बड़ी कीमत पर अपना परमाणु बिजली संयंत्र लगवाने के लिए राजी करने की पुरजोर कोशिश की। चीन की मुद्रा युआन अब महत्वपूर्ण करेंगसी हो चुकी है। लंदन युआन में फोरेक्स कारोबार पर जोर दे रहा है। चीन को अब उच्च तकनीक वाली चीजें निर्यात करने की नीति अपनानी होगी। चीन का इस साल का निर्यात 500 अरब डॉलर का रहा है। चीन को अपनी अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की जरूरत है। इसीलिए उसकी नजर अमीर देशों पर है।
भारत की स्थिति अलग है। यहां प्रति व्यक्ति आय चीन की तुलना में एक-तिहाई है। फार्मास्यूटिकल्स को छोड़ दें तो यहां निर्यात करने के लिए उच्च तकनीक वाले उत्पाद ही नहीं हैं। यहां मैन्यूफैक्चरिं सेक्टर काफी छोटा है। कच्चे माल की कमी नहीं है। कच्चे माल के निर्यात की काफी संभावनाएं हैं। भारत श्रम का बड़ा निर्यातक देश है। कुशल और अकुशल, दोनों तरह के कामगार बड़ी संख्या में भारत से दूसरे देश जाते हैं। मोदी इसकी अहमियत को समझते हैं। इसलिए वह दुबई और सिलिकॉन वैली जाकर निवेशकों को लुभाते हैं, मेक इन इंडिया की बात करते हैं। उनका मकसद जी-7 देशों से ज्यादा से ज्यादा निवेश और अत्याधुनिक तकनीक हासिल करना है। समस्या का हल सुधारों की गति तेज करने से होगा। शायद अब प्रधानमंत्री ज्यादा वक्त अपने देश में बिताएं।
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